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सस्ती आयुष पद्धतियां विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्राथमिकता में क्यों नहीं ?

-विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य दिवस पर डब्‍ल्‍यू एच ओ से प्रश्‍न करता होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा का लेख

आज विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य दिवस हैविश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य दिवस का आयोजन करने वाला विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यू एच ओ) की स्‍थापना विश्‍व के सभी देशों की जनता को स्‍वस्‍थ रखने की दिशा में कार्य करने के उद्देश्‍य के लिए की गयी थी। सभी को स्‍वास्‍थ्‍य का अर्थ है प्रत्‍येक नागरिक चाहे वह अमीर हो या गरीब को स्‍वस्‍थ रखना है, ऐसे में स्‍वास्‍थ्‍य में अपनी खासी पहचान रखने वाली आयुष पद्धतियों से विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन आखिर दूरी क्‍यों बनाये है। प्रस्‍तुत है आयुष पद्धतियों को मुख्‍य धारा में शामिल करने का सुझाव देते हुए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के समक्ष इसी प्रश्‍न को उजागर करता केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के पूर्व सदस्‍य डॉ अनुरुद्ध वर्मा का लेख…

डॉ अनुरुद्ध वर्मा

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिवर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन 7 अप्रैल को किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना दुनिया के ज़्यादातर देशों की सहमति से वर्ष 1948 में जेनेवा में हुई थी और इस संस्था ने 1950 से विधिवत कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन का उद्देश्य दुनिया के सभी देशों के नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं बिना जाति, धर्म, समाज, संप्रदाय, रंग, क्षेत्र, लिंग, आर्थिक स्थिति के भेदभाव के उपलब्ध कराना है क्योंकि गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा प्राप्त करना दुनिया के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। डब्लू एच ओ ने अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता उत्त्पन्न करने,  रोकथाम एवं गुणवत्तापरक चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए महत्तवपूर्ण अभियान चलाये हैं जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुये हैं। इस वर्ष के विश्व स्वास्थ्य दिवस का विचार बिन्दु निष्पक्ष स्वस्थ दुनिया का निर्माण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनेक प्रयासों के बाद भी ऐसा देखा गया है अमीर और गरीब लोगों की चिकित्सा सुविधाओं में जमीन आसमान का अंतर है और आज भी गरीब लोग अपनी बीमारियों का उपचार नहीं करा  पाते हैं और अपने परिवारीजनों के लिए उपचार नहीं चुन पाते हैं। दुनिया की 50%आबादी आज भी गुणात्मक चिकित्सा से दूर है जबकि गुणात्मक चिकित्सा उनका मौलिक अधिकार है। कोरोना महामारी के दौरान यह दृश्य सामने आया है कि गरीब लोगों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा उपलब्ध नहीं हो पाई है जिसके कारण उन्हें जिंदा रहने के लिए ज्यादा जद्दोजेहद करनी पड़ी है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का सबसे अधिक सामना उन लोगों को करना पड़ता है जो पहले सी ही बीमारियों की गिरफ्त में है औऱ महंगी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने में समर्थ नहीं हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का उद्देश्य है कि दुनिया के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने, किफायती, वहन करने योग्य, कम ख़र्चीली, स्वीकार्य, पर्याप्त, दो देशों के बीच मे स्वास्थ्य की सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए दिशा निर्देश जारी कर उनका अनुपालन सुनिश्चित कराना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्य सभी देशों के नागरिकों के स्वास्थ्य के उन्नयन,  रोगों से रोकथाम, प्रशामक उपचार,पुनर्वास एवं उपचार की सुविधाएं उपलब्ध कराकर गुणात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना सुनिश्चित करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनेक प्रयासों के बाद भी सबको स्वास्थ्य का संकल्प अभी बहुत दूर की बात है यहां तक कि‍ विकासशील देशों की ज्यादातर आबादी स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सार्वभौमिक स्वास्थ्य आच्छादन की भी बात करता है और उसके लिये नीति भी बनाई है परंतु यह संकल्प कैसे पूरा होगा यह विचारणीय विषय है। अनेक देश ऐसे हैं जो डब्लू एच ओ के दिशा निर्देशों का पालन नहीं करते हैं औऱ अपना एकाधिकार चलाते हैं। ज्यादातर देशोँ में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के पीछे पर्याप्त बजट मुहैया न कराना भी है क्योंकि जनता का स्वास्थ्य उनकी प्राथमिकता नहीं है। इसका प्रमाण चुनाव घोषणा पत्रों में स्वास्थ्य मुद्दा नहीं बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी समय-समय पर कुछ देशों के दबाव में काम करने का आरोप लगता रहता है। गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण भी बहुत बड़ी बाधा है क्योंकि महंगा इलाज करा पाना उनके बस की बात नहीं है। पूरक एवं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, सिद्धा, योग, प्राकृतिक पद्धतियों के चिकित्सकों का आरोप है कि डब्लू एच ओ एक चिकित्सा पद्धति मॉडर्न मेडिसिन के दवाव में काम करता है इसका प्रमाण हैं उसके द्वारा बनाई जाने वाली नीतियां।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आयुष पद्धतियां विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्राथमिकता में नहीं है उनके लिये वह कभी दिशा निर्देश नहीं जारी करता है ज्यादातर मामलोँ में इनकी रोगोँ के उपचार एवं बचाव में कार्यकारिता को नजरअंदाज करता है। इसका प्रमाण है अनेक देशोँ में कोविड-19 की रोकथांम एवं बचाव में इन पद्धतियों के सफलता पूर्वक प्रयोग करने के बाद भी इन पद्धतियों पर कोई सकारात्मक बयान न देना औऱ ज्यादातर मामलों में विरोध करना। डब्लू एच ओ का बहाना लेकर ज्यादातर देश पूरक एवं वैकल्पिक पद्धतियों के विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं।

यदि हम भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति देखें तो वह भी संतोषजनक नहीं है देश की ज्यादातर आबादी मंहगी दवाओं का बोझ उठाने में सक्षम नहीं है यहां तक कि लोगों को अपना एवं परिवारीजनों का इलाज कराने के लिए जमीन जायदाद बेचना और जेवर तक गिरवी रखने पर मजबूर होना पड़ता है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं देश वास्तव मेँ जनता की स्वास्थ्य रक्षा के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें वैकल्पिक, पूरक एवं आयुष पद्धतियों को प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल में इनको शामिल कर उपलब्ध कराना होगा। इन्हें हर स्तर तक पहुंचाना होगा वह स्थान जो दूरदराज़ हैँ जहां स्वास्थ्य सेवायें नहीं पहुंच सकी हैं, ग्रामीण आबादी तक इन सुविधाएं पहुंचाना पड़ेगा। इन पद्धतियों की दवाइयां सुरक्षित, वहन करने योग्य, किफ़ायती और समुदाय की देख भाल में सक्षम हैं। इसके लिए एक समन्वित प्रयास,  नीति,  कार्यक्रम की जरूरत है। इस प्रकार के प्रयास से वैकल्पिक, पूरक एवं आयुष पद्धतियों को मुख्यधारा में शामिल कर सबको स्वास्थ्य का संकल्प एवं सार्वभौमिक स्वास्थ्य आच्छादन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगें और स्वस्थ दुनिया के निर्माण के सपने को साकार कर सकेगें।