इसरो के वैज्ञानिकों के प्रति देश के जज्बे से सहमति दिखाते हुए चिकित्सकों का छलका दर्द
लखनऊ। चंद्रयान 2 के चंद्रमा के पहुंचने में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इसरो के वैज्ञानिकों को हौसला बंधाने और पूरे देश के लोगों द्वारा भी वैज्ञानिकों की हिम्मत बंधाने का जो दौर चला है, निश्चित ही वह स्वागतयोग्य है, लेकिन प्रकरण के बाद दूसरों के जख्मों को भरने का काम करने वाले चिकित्सक समुदाय के अपने जख्म हरे हो गये। वे जख्म जिसे लेकर पिछले दिनों देशव्यापी हड़ताल तक हो गयी थी।
जी हां हम बात कर रहे हैं डॉक्टरों के साथ होने वाली हिंसा जो अब अक्सर हो जाती है, कोलकाता की घटना हो या फिर हाल ही में असम में हुई घटना, अस्पतालों में तोड़फोड़ हो या फिर डॉक्टरों की पिटाई, इन बातों से आहत चिकित्सकों के मुंह से आह निकली। उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों के प्रति देशभर के भाव से पूरी तरह सहमति जताते हुए हां में हां मिलायी, लेकिन साथ ही साथ अपनी तकलीफ भी बतायी। इस सम्बन्ध में सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट में लिखी बातों पर अपनी मुहर लगाते हुए कई चिकित्सक इसे फॉरवर्ड कर रहे हैं। लखनऊ की गायनाकोलॉजिस्ट डॉ वारिजा सेठ ऐसे ही चिकित्सकों में से हैं, जिन्होंने सर्जिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ वागीश की पोस्ट को फॉरवर्ड किया है। पोस्ट में कहा गया है कि हम लोगों ने चंद्रयान 2 के लैंडिंग से चूकने के बाद अपने प्रधानमंत्री को इसरो वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए देखा यह उनके नेतृत्व गुणों का एक अनुकरणीय प्रदर्शन था …।
पोस्ट में लिखा है कि प्रधानमंत्री आधी रात तक जागते रहे और जरूरत के समय उन निराश वैज्ञानिकों को संबोधित किया … उन्होंने प्रत्येक वैज्ञानिक के साथ हाथ मिलाया और अंत में उन्होंने इसरो प्रमुख सिवन को गले लगाया। सभी की आंखों में आंसू थे .. एक अनमोल क्षण। हम भाग्यशाली हैं कि ऐसे नेता हैं। पोस्ट में लिखा है कि हम वास्तव में ISRO और अपने पीएम पर गर्व करते हैं।
आगे पोस्ट में लिखा है कि उसी क्षण एक विचार ने मेरे मन को विचलित कर दिया कि 700 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा 10 साल की यात्रा के बाद इस तरह की बात हो गयी। यह विफलता के लिए एक मानवीय अभिव्यक्ति है। हम सभी ने आज इसरो के वैज्ञानिकों पर इसका असर देखा।
पोस्ट में आगे लिखा है कि इसी प्रकार बात चिकित्सा करने वाले चिकित्सक के साथ होती है। ऑपरेशन करने वाली पूरी टीम अगर सर्जरी करते समय असफल हो जाती है तो उस टीम के सदस्य की भी यही सोच होती है। एक नवजातविज्ञानी जो समय से पहले हुए बच्चे को बचा नहीं पाता है। न्यूरोलॉजिस्ट जब अपना मरीज खो देता है, इस सबसे ज्यादा एनेस्थीसियोलॉजिस्ट के लिए यह अफसोसनाक होता है जब ऑपरेशन टेबिल पर मरीज की मौत हो जाती है।
पोस्ट में कहा गया है कि हम जटिल मामलों को संभालने के लिए हमारे साहसी निर्णयों के लिए लोगों की तालियां नहीं चाहते हैं…हम केवल विश्वास के एक तत्व की उम्मीद करते हैं, कम से कम हमारे रोगी तो हमारी भावनाओं को समझें…
डॉ वारिजा सेठ कहती हैं कि सभी प्रयासों के बावजूद, भारत आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 के सेमीफाइनल में हार गया है… लेकिन “भारत भारतीय क्रिकेट टीम के साथ खड़ा है”
सभी समर्पित प्रयासों के बावजूद, चंद्रयान -2 ने जमीनी स्टेशन के साथ संपर्क खो दिया है … “भारत इसरो के साथ खड़ा है”
सभी समर्पित प्रयासों के बावजूद, एक गंभीर रोगी को बचाया नहीं जा सका …तो “डॉक्टरों को मारो, उन्होंने उस मरीज को मार दिया है। वे सभी बुरे हैं”… ऐसा क्यों क्यों क्यों?????