Thursday , April 25 2024

सरकारी तंत्र में भ्रष्‍टाचार हो सकता है लेकिन बनी रहती है कार्य की गुणवत्‍ता

इप्‍सेफ ने कहा-ऊपर से होकर नीचे जाने वाले भ्रष्‍टाचार को रोकना संभव

-‘सरकार लाभ-हानि का आकलन करने वाली व्‍यावसायिक संस्‍था नहीं’

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लाइज फेडरेशन (इप्सेफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी पी मिश्र एवं महामंत्री प्रेमचंद्र ने प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए अपना सुझाव देते हुए कहा है कि आजादी के बाद से देश में निजी एवं सरकारी संस्थाएं बराबर-बराबर कार्य कर रही हैं। इससे किसी की मोनोपोली नहीं हो पाती है। विगत वर्षों में देखने को मिला की पीयरलेस, कुबेर सहित कई संस्थाएं देश में कार्य करने आयीं और जनता का पैसा लेकर भाग गईं। सरकारी तंत्र में कहीं-कहीं पर भ्रष्टाचार हो सकता है परंतु कार्य की गुणवत्ता बनी रही है।

उन्‍होंने कहा है कि भ्रष्टाचार ऊपर से होकर नीचे जाता है, जिसे रोका जा सकता है निजी क्षेत्र में लाखों रुपए खर्च करके डॉक्‍टर, इंजीनियर एवं अन्य तकनीकी अधिकारी पढ़ाई पूरी करते हैं। वे जब निजी संस्थाओं में नौकरी करने जाते हैं तो उन्हें मात्र बीस पच्चीस हजार रुपए का वेतन मिलता है जिससे उनके परिवार का भरण पोषण नहीं हो सकता है। उनकी सेवा सुरक्षा भी नहीं रहती। लॉकडाउन में निजी फैक्ट्रियों के बहुत से कर्मचारी हटा दिए गए जिन्हें नौकरी पर वापस नहीं लिया गया। वे भुखमरी के कगार पर हैं। कंपनियों ने कम वेतन पर दूसरे लोगों को नौकरी पर रख लिया। क्या यह न्याय हैं?

नेताओं ने कहा है कि निजी संस्थाएं जनता एवं कर्मचारियों दोनों का शोषण करती हैं। अगर पूरी तौर से निजीकरण कर दिया गया तो युवा वर्ग में तबाही मच जाएगी। देश में करोड़ों युवा वर्ग बेरोजगार होने के कारण अपना खर्च चलाने के लिए आपराधिक कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं।

नेताद्वय ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि देश सहित में सार्वजनिक क्षेत्रों एवं सरकारी तंत्र कमजोर करके प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना श्रेयस्कर नहीं होगा। सरकार कोई व्यावसायिक संस्था नहीं है जो हानि लाभ का आकलन करें। उसे तो जनता के हित में बहुत से कार्य करने होते हैं जिसमें कोई आय नहीं होती है।

श्री मिश्र ने देशभर के कर्मचारी संगठनों एवं कर्मचारियों से अपील की है कि वे अपने आश्रितों की रक्षा के लिए देशव्यापी आंदोलन करने की रणनीति बनाकर एकजुट होकर इसका विरोध करें वरना न पब्लिक सेवा का कर्मचारी रहेगा और ना कर्मचारी संगठन का अस्तित्व रहेगा।