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वही फल, सब्जियां, दूध, दही ज्‍यादा गुणवान हो जाते हैं मकर संक्रांति के दिन से, जानिये क्‍यों

-आयुर्वेदाचार्य डॉ अजय दत्‍त शर्मा ने कहा-मकर संक्रांति का सीधा सम्‍बन्‍ध है स्‍वास्‍थ्‍य से
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सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। मकर संक्रांति जिसे देश भर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, इसका स्‍वास्‍थ्‍य से सीधा सम्‍बन्‍ध है। चूंकि स्‍वास्‍थ्‍य का सूर्य का सीधा सम्‍बन्‍ध है, क्‍योंकि सृष्टि की और शरीर की एनर्जी सूर्य से ही मिलती है, मकर संक्रांति (15 जनवरी) के दिन सूर्य उत्‍तरायण में आते हैं इसलिए सारी सृष्टि में एनर्जी आ जाती है और इस दिन से वही फल, सब्जियां, दही, दूध, मट्ठा सभी में गर्मी आने लगती है और खट्टापन बढ़ता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस दिन से नेचुरल सोर्स ऑफ एनर्जी यानी सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा शुरू हो जाती है।

यह बात आयुर्वेदाचार्य डॉ अजयदत्‍त शर्मा ने ‘सेहत टाइम्‍स’ से एक विशेष वार्ता में कही। उन्‍होंने कहा कि इसीलिए मकर संक्रांति के दिन उर्द की दाल, तिल जैसी एनर्जी वाली चीजों को दान किया जाता है। डॉ शर्मा बताते हैं हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं । इसमें से एक त्‍यौहार मकर संक्रांति है।

हिंदू धर्म ने जिस प्रकार माह को दो भागों कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में बांटा है, उसी प्रकार वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।

डॉ अजयदत्‍त शर्मा

डॉ शर्मा बताते हैं कि सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है। वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही ऐसा पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।

विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाये जाने वाले इस पर्व को उत्‍तर प्रदेश में खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है । चावल और दाल की खिचड़ी खायी और दान की जाती है। उत्तराखण्ड में इस दिन (उत्तरायणी) को बड़े ही हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है। कई स्थानो पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसे कुमायूं में उत्तरायणी मेला तथा गढवाल में गिन्दी कौथीक कहते हैं। इस दिन जलेबी खाने का भी प्रचलन है।

उन्‍होंने बताया कि गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है। जबकि आंध्रप्रदेश में संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है। तमिलनाडु की बात करें तो किसानों का यह प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलायी जाती है ।

महाराष्ट्र में लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक-दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं। पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है। जबकि असम में भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। इसके अतिरिक्‍त पंजाब में एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है । धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।

डॉ शर्मा ने बताया कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नहीं माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। उन्‍होंने कहा कि सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है । पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है।