-क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान में “शालाक्य विकारों में क्रियाकल्प एवं अनुशस्त्र प्रक्रिया” विषय पर कार्यशालाआयोजित
सेहत टाइम्स
लखनऊ। क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान द्वारा 7 मार्च को “शालाक्य विकारों में क्रियाकल्प एवं अनुशस्त्र प्रक्रिया” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। ज्ञात हो कान, आंख, मुख, नाक आदि स्थानों में उत्पन्न व्याधियों की चिकित्सा जिस विशेष विज्ञान में होती है उसे ‘शालाक्य तंत्र’ कहते हैं। इस तंत्र के तहत कार्यक्रम में नेत्र के विभिन्न रोगों के आयुर्वेद में उपलब्ध इलाज की विधियों के बारे में चर्चा की गई।
यह जानकारी देते हुए प्रभारी सहायक निदेशक डॉ ओम प्रकाश ने बताया कि कार्यशाला प्रारम्भ होने पर सभी आगंतुकों का स्वागत किया गया। डॉ० श्रीकान्त उपमहानिदेशक, सी.सी.आर.ए.एस, द्वारा वर्चुअल माध्यम से उदघाटन उद्बोधन दिया गया। इसके बाद डॉ० संजीव कुमार गुप्ता, नेत्र विभाग, के.जी.एम.यू, डॉ० समशा फियाज़, विभागाध्यक्ष शालाक्य तंत्र, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, जयपुर एवं डॉ० हरिद्र दवे, भूतपूर्व प्रधानाचार्य, अखंडानन्द राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, गुजरात द्वारा नेत्र रोगों की उपचार की विशेष आयुर्वेदिक विधियाँ यथा तर्पण, पुटपाक, सेक, आश्च्योतन एवं अंजन के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई।
मुख्य वक्ता डॉ० श्रीकान्त द्वारा वर्चुअल माध्यम से प्रमाणीकृत समन्वयक अनुसंधान प्रक्रिया पर फोकस करने के लिए विस्तृत जानकारी से अवगत कराया गया, साथ ही डॉ० संजीव कुमार गुप्ता द्वारा अनुसंधान के लिए विशेष फोकस बिन्दुओं पर ज़ोर देने के लिए कहा। डॉ. हरिद्र दवे द्वारा शालाक्यतंत्र विकार के उपचार में क्रियाकल्प के महत्व पर जानकारी दी गई।
इस कार्यशाला में विभिन्न आयुर्वेदिक कॉलेजों के शालाक्य विभाग के अध्यापकों एवं छात्रों द्वारा भाग लिया गया। जिसमें संस्थान से डॉ० अंजलि बी. प्रसाद, अनु. अधि. (आयु.) वैज्ञा -02 द्वारा सभा का संचालन किया गया तथा डॉ० कांबले पल्लवी नामदेव, अनु. अधि. (आयु.) वैज्ञा-02 द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यशाला का समापन किया गया। कार्यक्रम का समन्वयन डॉ० आलोक कुमार श्रीवास्तव, अनु. अधि. (आयु.) वैज्ञा- 04 तथा डॉ० कांबले पल्लवी नामदेव, अनु. अधि. (आयु.) वैज्ञा-02 द्वारा किया गया।