ऐसे जानिये कि वायु प्रदूषण से कितने खराब हो रहे हैं हमारे फेफड़े
लखनऊ। जैसे शरीर पर पर जमी गंदगी साफ करने के लिए उसे साफ करना, नहाना जरूरी है, वैसे ही वायु प्रदूषण के चलते सांस के द्वारा फेफड़ों में पहुंच रही गंदगी को साफ करना भी जरूरी है, अन्यथा आप सांस संबंधी रोगों की चपेट में आ सकते हैं। वायु प्रदूषण दूर करने के उपायों के साथ ही सही तरीके से भाप लेकर फेफड़ों की गंदगी को साफ किया जा सकता है। प्रदूषण के चलते होने वाली मौत के आंकड़ों की बात करें तो एक साल में पूरे विश्व में 70 लाख, भारत में 12 लाख तथा उत्तर प्रदेश में दो लाख साठ हजार लोगों की मौत हो जाती है।
यह महत्वपूर्ण जानकारी आज राजधानी लखनऊ में लालबाग स्थित नगर निगम कार्यालय के सामने झंडी वाला पार्क में दि क्लाइमेट एजेन्डा द्वारा आयोजित सौ प्रतिशत यूपी अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में केजीएमयू के सांस रोग विभाग के हेड डॉ सूर्यकांत ने दी। डॉ सूर्यकांत और लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया ने संयुक्त रूप से कृत्रिम फेफड़ों को पार्क में स्थापित किया, 10 जनवरी को सुबह 10 बजे स्थापित इन फेफड़ों को देखा जायेगा कि ये कितनी अवधि में पूरी तरह से काले पड़ते हैं। मनुष्य के फेफड़ों की भांति कार्य करने वाले ये कृत्रिम फेफड़े लगाने का मकसद अपने शरीर के अंदर के फेफड़ों का आईना दिखाना है कि किस तरह से प्रदूषित वायु हमारे फेफड़ों को खराब कर रही है।
जागरूकता की इस पहल के आरम्भ करने के मौके पर नगर आयुक्त डॉ इंद्रमणि त्रिपाठी और क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता शेखर भी उपस्थित रहीं। डॉ सूर्यकांत ने अपने सम्बोधन में बताया कि जन्म के समय पहली सांस आने से लेकर मृत्यु के समय आखिरी सांस जाने तक हम ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड देते हैं। यानी सांस लेना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है लेकिन दूषित हवा में सांस न लें यह हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि हमें पेड़ों का ॠणी होना चाहिये जो हमें औसत 65 वर्ष की आयु में 5 करोड़ की ऑक्सीजन फ्री में देते हैं, लेकिन उनकी दी हुई ऑक्सीजन वातावरण में फैले प्रदूषण के साथ हमारे शरीर के अंदर पहुंचती है जो हमारे फेफड़ों को खराब करती है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण का असर गर्भवती माताओं, गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है। इसके चलते अनेक प्रकार की बीमारियां जैसे कैंसर, हार्ट डिजीज, ब्रेन ट्यूमर, लंग डिजीज, यहां तक कि डायबिटीज भी होने का खतरा रहता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में हुई रिसर्च में यह सामने आया है कि दूषित फेफड़ों से होकर जाने वाला खून जब पैंक्रियाज में जाता है तो वह वहां बीटा सेल्स को कमजोर करता है, यही बीटासेल्स हमारे शरीर में इंसुलिन बनाते हैं, ऐसे में बीटासेल्स प्रॉपर काम नहीं करते हैं और आवश्यक इंसुलिन नहीं बनाते हैं, यही स्थिति डायबिटीज कहलाती है।
इस तरह करें फेफड़ों की सफाई
डॉ सूर्यकांत ने कहा कि फेफड़ों को साफ करने के लिए लगातार गरम रहने वाले पानी के ऊपर अखबार या किसी भी कागज को लइया-चना रखने वाली कैपनुमा आकार में मोड़ लें, उसका एक हिस्सा ऐसा हो जो गरम पानी के बर्तन को पूरी तरह ढंक ले ताकि भाप निकल न सके, दूसरी ओर के पतले हिस्से की तरफ से एक छेद कर लें इस छेद से मुंह से सांस लें और नाक से सांस बाहर निकालें, ऐसा 5 मिनट करेंगे तो आपके फेफड़े की गंदगी साफ हो जायेगी।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा लोगों को हर दिन शाम को यह सोचना चाहिये कि आज पूरे दिन में मेरी वजह से वायु प्रदूषण तो नहीं हुआ? यानी अगर व्यक्ति अगर धूम्रपान करता है तो धूम्रपान करने वाले के अंदर 30 प्रतिशत लेकिन दूसरों के 70 फीसदी धुआं अंदर जाता है, इससे उसे खुद को और दूसरों को नुकसान हुआ, इसी प्रकार फैक्टरी मालिक सोचे हमारे उत्पाद को बनाने में भट्टी आदि का इस्तेमाल तो नहीं किया गया? यदि किया तो उसका विकल्प जैसे एलपीजी चूल्हा आदि का इस्तेमाल करे, ठेकेदार सोचे कि बिल्डिंग बनाने में मैं नेशनल बिल्डिंग कोड का पालन कर रहा हूं या नहीं।
बुके नहीं पौधा दें
इसके अलावा फूलों का गुलदस्ता देने की आदत बदल दें, इसकी जगह एक पौधा भेंट करें ताकि लोग उसे रोपित करें तो कम से कम एक पेड़ तैयार होगा जो ऑक्सीजन देने में सहायक होगा। इसी प्रकार बर्थडे पर, शादी की वर्षगांठ पर मोमबत्ती जलाने का फैशन छोड़ें क्योंकि मोमबत्ती से भी धुआं निकलता है, इसकी जगह आयु और शादी वर्षगांठ के जितने साल हो गये हों उतने पौधे लगायें। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि धूम्रपान न करने वालों के फेफड़े भी स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान अब काले दिखने लगे हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि अब वायु प्रदूषण के खतरनाक प्रभाव को नकारने के बजाये स्वच्छ हवा को स्वच्छ भारत मिशन का अहम् हिस्सा बनाए जाने का वक्त आ गया है।
प्रदूषण प्रदर्शन का यह प्रयास प्रशंसनीय
महापौर संयुक्ता भाटिया ने अपने सम्बोधन में कहा कि इन कृत्रिम फेफड़ों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को प्रदर्शित करते हुए समाज में जागरूकता लाने के प्रयास की प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष लखनऊ की हवा काफी प्रदूषित हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. वायु प्रदूषण अब हमारे स्वास्थ्य व खुशहाली के खिलाफ एक बड़ा खतरा बन चुका है. सौर ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा आधारित मजबूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, एवं स्वच्छता से ही हमारे शहर की हवा स्वच्छ की जा सकती है। महापौर ने आशा जताई कि इन कृत्रिम फेफड़ों की सहायता से स्वच्छ हवा के लिए लखनऊ का संघर्ष जरूर अच्छे परिणाम देगा।
अति उच्च क्षमता वाले फिल्टर का प्रयोग
इस पहल के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए एकता शेखर ने कहा “ आज स्थापित किये गए कृत्रिम फेफड़ों को बनाने में अति उच्च क्षमता वाले फिल्टर का उपयोग किया गया है, जो प्रदूषण के प्रभाव में आ कर कुछ दिनों में स्वतः काले हो जायेंगे। ऐसा कर के हम यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों और स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव डालता है।
जागरूकता से ही हारेगा प्रदूषण
नगर आयुक्त डा इन्द्रमणि त्रिपाठी ने कहा “आम लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है, तभी वायु प्रदूषण को हराया जा सकेगा, इसके लिए नगर निगम अपनी ओर से अथक प्रयास कर रहा है, लेकिन शहर की आबोहवा को सांस लेने योग्य स्वच्छ करने के लिए हम सभी को मिल कर काम करना पडेगा। फेफड़ों को स्थापित कर की जा रही ये गतिविधि निश्चित रूप से सकारात्मक परिवर्तन लायेगी।
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