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15 अगस्‍त तक कोरोना की वैक्‍सीन आने की संभावना नहीं

-सब कुछ ठीक चला तो दिसम्‍बर तक आ सकती है भारत में बनने वाली वैक्‍सीन

-एम्‍स दिल्‍ली के निदेशक ने कहा, ट्रायल प्रक्रिया में लग जाते हैं कई माह

-कुछ महीनों में भी तैयार होती है वैक्‍सीन तो भी यह बड़ी उपलब्धि होगी

प्रो रनदीप गुलेरिया

लखनऊ। भारत सहित पूरी दुनिया की नजर वैश्विक महामारी कोविड-19 की वैक्‍सीन पर लगी हुई है, कई देशों में इस पर ट्रायल चल रहा है। भारत में भी भारत बायो‍टेक कम्‍पनी वैक्‍सीन बनाने की तैयारी कर रही है, पिछले दिनों इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने इन परीक्षणों का संचालन करने के लिए 12 संस्थानों का चयन किया है। कहा यह गया है कि भारत में यह वैक्‍सीन स्‍वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्‍त को लॉन्‍च हो जायेगी, जाहिर है इस बात से सभी में खुशी की लहर उठी है, लेकिन आपको बता दें कि स्‍वतंत्रता दिवस पर इस कोरोना वैक्‍सीन की लॉन्चिंग की संभावना न के बराबर है, सब कुछ ठीक-ठाक चला तो इस साल के आखिर यानी दिसम्‍बर 2020 तक वैक्‍सीन मार्केट में आने की संभावना है।

यह हम नहीं कह रहे है, यह कहना है दिल्‍ली के ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्‍स के निदेशक प्रो रनदीप गुलेरिया का। एक टीवी चैनल से बात करते हुए उन्‍होंने साफ कहा कि मुझे नहीं लगता है कि व्‍यावहारिकता के दृष्टिकोण से वैक्‍सीन बनाने का कार्य इतनी जल्‍दी पूरा हो सकता है। उनका कहना है कि वैक्‍सीन तैयार होने की एक प्रक्रिया होती है, इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ही उसे हरी झंडी दी जाती हैं, इन प्रक्रियाओं को बहुत छोटा किया गया है, इसके बाद भी अगर सब कुछ समय से होता रहा तो भी दिसम्‍बर अंत से पहले वैक्‍सीन का आना मुश्किल है, और अगर इम्‍युनिटी बढ़ाने जैसा बदलाव वैक्‍सीन में करना पड़ा तो अगले साल की शुरुआत में ही वैक्‍सीन आना संभव होगा। 

प्रो गुलेरिया का कहना है कि दरअसल पूरे इथिक्‍स का पालन करते हुए वैक्‍सीन को फाइनल किया जाता है। इसमें कई चरण होते हैं उन्‍हें पूरा करते हुए ही आगे बढ़ा जाता है। उन्‍होंने कहा कि जैसे पहला फेज होगा यह देखना कि मानव में यह वैक्‍सीन कितनी असरदार है, अगर इफेक्टिव है तो दूसरा स्‍टेप में यह देखा जाता है कि यह वैक्‍सीन कितनी सुरक्षित है, क्‍योंकि कई बार देखा गया है कि वैक्‍सीन के ही अपने साइड इफेक्‍ट होते हैं, इनमें न्‍यूरोलॉजिकल इफेक्‍ट होते हैं, कई बार वैक्‍सीन वायरस को ज्‍यादा असरदार बना देती है। इन दोनों स्‍टेप में हम स्‍वस्‍थ लोगों पर ही ट्रायल करते हैं, इसके बाद तीसरे स्‍टेप में इस वैक्‍सीन को गंभीर बीमारियों से ग्रस्‍त लोगों को दी जाती है।

उन्‍होंने बताया कि ट्रायल की स्‍टेज में वैक्‍सीन की इम्‍युनिटी चेक की जाती है, इसके लिए पहले इंजेक्‍शन लगाया जाता है, फि‍र कुछ हफ्तों बाद देखा जाता है कि इम्‍युनिटी कितनी बढ़ी, तथा कितने दिनों तक असरदार रहेगी इन दोनों ट्रायल के सफल होने के बाद ही इसकी मैन्‍युफैक्‍चरिंग की तरफ बढ़ा जाता है।  यह भी देखना होगा कि इम्‍युनिटी कितने दिनों तक रहती है।

उन्‍होंने कहा कि इसके बाद भी अगर वैक्‍सीन सुरक्षित मिलती है तो फि‍र इसे बनाने की तैयारी की तरफ बढ़ा जाता है। यानी देखा जाता है कि हम कितनी वैक्‍सीन बना सकते हैं। इन सभी ट्रायल में कुछ महीनों का समय लग जाता है इसीलिए हम कह सकते हैं कि 15 अगस्‍त नहीं बल्कि इस वर्ष के अंत या अगले साल के शुरुआत तक वैक्‍सीन लॉन्‍च की जा सकती है।

प्रो गुलेरिया ने कहा कि हां यह जरूर है कि जैसे कोई टारगेट सेट हो जाता है तो कार्य जल्‍दी होता है। प्रो गुलेरिया ने कहा कि हालांकि मैं आपको बता दूं कि पहले वैक्‍सीन बनाने में 5 से 10 साल लगते थे, अब सारी प्रक्रिया को कम्‍प्रेस किया गया है, तो ऐसे में अगर इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत में भी अगर वैक्‍सीन आ जाये तो भी यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।