Saturday , April 20 2024

अब शरीर के एक घाव को भरने के लिए दूसरा घाव करना जरूरी नहीं

-संजय गांधी पीजीआई में शुरू हुआ प्‍लास्टिक सर्जरी में कृत्रिम त्‍वचा इंटिगरा का प्रयोग

-घंटों चलने वाले ऑपरेशन का समय अब घटकर हुआ अधिकतम 30 मिनट

सर्जरी से पहले  सर्जरी के बाद

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। बड़े घावों को भरने के लिए फ्लैप लगाने के लिए की जाने वाली सर्जरी की लम्‍बी प्रक्रिया के बजाय, सिर्फ आधे घंटे की सर्जरी में कृत्रिम त्‍वचा इंटिगरा से घाव भरने की प्रक्रिया यहां संजय गांधी पीजीआई में शुरू हो गयी है। अमेरिका में इजाद हुई कृत्रिम त्‍वचा इंटिगरा की भारत में उपलब्‍धता अभी कुछ समय पूर्व शुरू हुई है। इंटिगरा के प्रयोग के लाभ की बात करें तो घाव भरने के लिए मरीज के शरीर के किसी हिस्‍से से त्‍वचा को निकालना नहीं पड़ता है तथा यह कृत्रिम त्‍वचा मोटी होने के कारण घाव में चिपकती नहीं है जिससे सिकुड़ती नहीं है, अन्‍यथा शरीर से निकाली हुई त्‍वचा, जो कि पतली होती है, घाव से चिपक जाती है तथा बाद में सिकुड़ जाती है।

इस बारे में जानकारी देते हुए संस्‍थान के प्‍लास्टिक सर्जरी एंड बर्न्‍स विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्‍यक्ष डॉ राजीव अग्रवाल ने बताया कि प्लास्टिक सर्जरी में सभी प्रकार के घाव, चाहे वो चोट लगने की वजह से हो या टयूमर निकालने के बाद या त्वचा में संक्रमण के बाद हो, इन सभी अवस्थाओं में त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। अगर प्लास्टिक सर्जरी के इतिहास की बात करें तो घाव के इलाज के लिए त्वचा प्रत्यारोपण की सर्जरी कई सौ साल पुरानी है और आज भी हर तरह के घाव के इलाज के लिए त्वचा प्रत्यारोपण ही मुख्य ऑपरेशन होता है। इस संदर्भ में अगर गहराई से देखें,तो त्वचा प्रत्यारोपण के ऑपरेशन में दो प्रकार की त्वचा का प्रयोग किया जाता है। पहला प्रकार वो होता है जिसमें व्यक्ति के शरीर के किसी अन्य भाग, जैसे कि जांघ से त्वचा ली जाती है और इस त्वचा को प्रत्यारोपित किया जाता है। यह त्वचा की एक पतली परत होती है जो यद्यपि घाव को तो भर देती है लेकिन कुछ समय बाद यह त्वचा चिपक जाती है और अत्यन्त पतली हो जाती है,जिससे कि वह प्रत्यारोपित भाग थोड़ा असमान्य एवं देखने में अटपटा लगता है। पतली परत की प्रत्यारोपित त्वचा इसी कारण से हमेशा अलग दिखती है,क्योंकि इसमें सिर्फ एपिडर्मिस होती है और डर्मिस नाममात्र की ही होती है।

डॉ राजीव अग्रवाल, प्रोफेसर व विभागाध्‍यक्ष प्‍लास्टिक सर्जरी एंड बर्न्‍स विभाग, संजय गांधी पीजीआई

त्वचा प्रत्यारोपण के दूसरे ऑपरेशन को “फ्लैप प्रोसिजर” कहते हैं और इसमें त्वचा के दोनो हीं भाग एपिडर्मिस और डर्मिस रहते हैं। फ्लैप प्रोसिजर वाली त्वचा सामान्य त्वचा जैसी ही होती है और यह त्वचा अंदर के उत्तकों से चिपकती भी नहीं है तथा इसका आकार एवं मोटाई सामान्य त्वचा के जैसी ही होती है।

डॉ राजीव ने बताया कि इस सम्बन्ध में यह बताना जरूरी होगा कि हर स्वस्थ व्यक्ति में घाव को भरने की कुदरती क्षमता होती है और ऐसे सारे घाव जो अमूमन तीन से चार सेंटीमीटर तक चौड़े होते हैं वह व्यक्ति की शारीरिक क्षमता से अपने आप ही कुछ समय के बाद भर जाते हैं, लेकिन जो घाव इन मानकों से अधिक बड़े होते हैं वे स्वतः नहीं भर पाते हैं और उनमें त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। अधिकांश घावों की प्लास्टिक सर्जरी में त्वचा की पतली परत ही इस्तेमाल की जाती है और फ्लैप प्रोसिजर कम मात्रा में किया जाता है। फ्लैप प्रोसिजर करने में कई तरह की कठिनाइयां हो सकती हैं जैसे कि फ्लैप का खराब हो जाना और फ्लैप का सड़ जाना। फ्लैप प्रोसिजर करने में समय भी अत्यधिक लगता है और इन सब कठिनाइयों की वजह से पूरी शल्य क्रिया कठिन होती है।

अमेरिका में कुछ वर्ष पूर्व इन सब कठिनाइयों को देखते हुए एक कृत्रिम त्वचा का निर्माण किया गया था, जो त्वचा की डर्मिस का काम करती है और इसको लगाने से घाव भरने के ऑपरेशन अत्यधिक सरल हो गये हैं। इस कृत्रिम त्वचा को इंटिगरा के नाम से जाना जाता है और यह एक जालीदार त्रिआयामी कृत्रिम डर्मिस होती है जो घावों को भरने के काम आती है। इसको लगाना अत्यधिक सरल होता है और ऑपरेशन महज कुछ ही मिनटों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इसके विपरीत फ्लैप प्रोसिजर करने में एक से लेकर आठ घंटे भी लग सकते हैं और “फ्लैप” के अपने कॉम्‍प्‍लीकेशंस भी होते हैं।

इंटिगरा कुछ ही समय पूर्व से भारत वर्ष में उपलब्ध है और इसका सफल प्रयोग देश के बड़े चिकित्सा संस्थानों में किया जा चुका है। एस0जी0पी0जी0आई0 में इस कृत्रिम त्वचा का प्रयोग पहली बार कुछ रोगि‍यों में किया गया है और उसमें सफलता प्राप्त हुई है।

प्‍लास्टिक सर्जरी का भविष्‍य है कृत्रिम त्‍वचा

रोगी रामरूप, 78 वर्ष, पुरुष जो जिला बस्ती के रहने वाले हैं एक वर्ष से मुंह की त्वचा के कैंसर से पीड़ि‍त थे और यह कैंसर उनके गाल और नाक के बीच के भाग में स्थित था। सामान्यतः ऐसे रोगी का ऑपरेशन दो चरणों में सम्पादित किया जाता है जिसमें कि पहले चरण में कैंसर को निकाला जाता है और दूसरे चरण में कैंसर निकालने के बाद उत्पन्न घाव में त्वचा प्रत्यारोपित की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में दो से चार घंटे का समय लग जाता है। इस रोगी में कैंसर को निकालने के बाद कृत्रिम त्वचा (इंटिगरा) का सफल उपयोग किया गया और इसको लगाने से रोगी का घाव शीघ्र ही भर गया। इंटिगरा एक बहुत ही उपयोगी संसाधन है जो सभी तरह के छोटे आकार के घाव की प्लास्टिक सर्जरी में अत्यन्त कारगर है। इस त्वचा के प्रयोग से प्लास्टिक सर्जरी अत्यन्त सरल एवं सुगम हो जाती है। इंटिगरा बाकी सभी घाव भरने के कृत्रिम उत्पाद से अपेक्षाकृत महंगी है लेकिन अगर समय की बचत, ऑपरेशन करने की सुगमता और ऑपरेशन के बाद के परिणाम का विश्लेषण किया जाये तो यह कृत्रिम त्वचा निश्चय ही प्लास्टिक सर्जरी का भविष्य है।