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भारत का पहला एनएबीएच प्रमाणित मानसिक अस्‍पताल बना निर्वाण हॉस्पिटल

-छोटे-बड़े अनेक बिन्‍दुओं पर कड़े मानकों की कसौटी पर खरा उतरने के बाद जारी होता है यह प्रमाणपत्र

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। राजधानी लखनऊ में पिछले 32 सालों से चल रहा निर्वाण हॉस्पिटल अब 100 बिस्तरों वाला निजी क्षेत्र का देश का पहला एनएबीएच प्रमाणित अस्पताल बन गया है।

यह जानकारी एक पत्रकार वार्ता में देते हुए अस्पताल के संस्थापक डॉ एचके अग्रवाल ने बताया कि National Accreditation Board for Hospitals एनएबीएच प्रमाणपत्र लम्‍बी प्रक्रिया के बाद मिलता है, इस प्रक्रिया में अस्‍पताल में काम करने वाले लोगों की सर्विस कंडीशन, उनका निर्धारित संस्‍था से पंजीकरण जैसे नर्से नर्सिंग काउंसिल से फार्मासिस्‍ट फार्मेसी काउंसिल से मनोचिकित्‍सक या मनोवैज्ञानिक आरसीआई से तथा चिकित्‍सक चिकित्‍सा काउंसिल से पंजीकृत होना आवश्‍यक है। उन्‍होंने कहा कि यहां यह बताने का आशय है कि अस्‍पताल में सेवाएं देने वाला प्रत्‍येक व्‍यक्ति निर्धारित योग्‍यता के अनुसार होना आवश्‍यक है। इसके अतिरिक्‍त अस्‍पताल में उपलब्‍ध अन्‍य सुविधाओं के भी मानक हैं। उन्‍होंने कहा कि कुल मिलाकर लम्‍बी छानबीन के बाद ही एनएबीएच प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। उन्‍होंने कहा कि मानसिक अस्‍पताल होने की दशा में इसके मानक और भी मुश्किल हैं, जिन्‍हें आसानी से पूरा नहीं किया जा सकता है, इसका साफ उदाहरण यह है कि अब तक एक सरकार स्‍तर के अस्‍पताल को छोड़कर कोई भी अस्‍पताल इन मानकों की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया जबकि मुझे यह बताते हुए गर्व है कि निर्वाण हॉस्पिटल इन सारी कसौटी पर खरा उतरा, फलस्‍वरूप एनएबीएच प्रमाणपत्र हासिल कर सका।

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्‍तांशु अग्रवाल ने बताया कि हॉस्पिटल में अनेक प्रकार की मानसिक समस्‍याओं से ग्रस्‍त लोगों का उपचार किया जाता है, कुछ ऐसी भी समस्‍याएं होती हैं, जिन्‍हें सुनकर लोगों को आश्‍चर्य भी हो सकता है। ऐसी ही एक समस्‍या के बारे में डॉ दीप्‍तांशु ने बताया कि उनके पास एक लड़की को लेकर उसके अभिभावक आये, उस लड़की को बाल तोड़ने की आदत थी, साथ ही उसे पेट दर्द की भी जबरदस्‍त समस्‍या थी, उन्‍होंने बताया कि जब अल्‍ट्रासाउंड कराया गया तो पता चला कि उसके पेट में बालों का गुच्‍छा है, जिसे सर्जरी करके निकाला गया, करीब आधा किलो का बालों का गुच्‍छा लड़की के पेट से निकला। इससे पेट दर्द तो ठीक हुआ फि‍र उसकी बाल खाने की आदत छुड़ाने की दवा चली, जिससे वह ठीक हो गयी।

एक और उदाहरण देते हुए बताया कि आजकल बहुत से स्‍कूली बच्‍चों को नशे की लत लग रही है, तम्‍बाकू, सिगरेट, गांजा आदि ऐसे पीते हैं जैसे वे कभी बीमार नहीं पड़ सकते, इससे उनमें सेक्‍सुअल बीमारियां बढ़ गयी हैं जिससे वे ऑनलाइन दवाएं देखकर खाते हैं, मेडिकल स्‍टोर से लेते हैं, लेकिन ठीक नहीं होते हैं क्‍योंकि उन्‍हें यह नहीं पता होता है कि इस रोग की जड़ क्‍या है, यानी नशा नहीं छोड़ पाते हैं। ऐसे लोगों की समस्‍याएं भी हमारे हॉस्पिटल में ठीक होती हैं। नशे के हानिकारक लक्षण दीर्घकाल बाद भी दिख सकते हैं।

निदेशक डॉ प्रांजल अग्रवाल ने बताया कि एनएबीएच की टीम मानसिक अस्‍पतालों में सुरक्षा के मानकों का बहुत ही गहराई से अध्‍ययन करते हैं कि ऐसा तो नहीं हैं कि मरीज भर्ती रहने के दौरान भागने की कोशिश करे या किसी भी जगह से जोखिम में पड़ जाये। उन्‍होंने बताया कि टीम यह भी देखती है कि यहां पर इलाज के दौरान दी जा रही दवायें क्‍वालिटी में अच्‍छी हैं अथवा नहीं, कहीं ज्‍यादा मात्रा में तो नहीं दी जाती हैं, जैसी छोटी-छोटी लेकिन अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण बातों को जांच-परख कर ही प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाती है।

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