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बेअसर एंटीबायोटिक्‍स : क्‍यों न लोहे से लोहे को काटने का विकल्‍प चुनें

लोहिया आयुर्विज्ञान संस्‍‍थान में ‘बियॉन्‍ड एंटीबायोटिक्‍स’ विषय पर सीएमई आयोजित

लखनऊ। एंटीबायोटिक्‍स का बेलगाम प्रयोग दुरुपयोग की स्थिति में पहुंच गया है। छोटे-छोटे रोगों में एंटीबायोटिक्‍स का प्रयोग करने का नतीजा आज यह हुआ है कि लोग अब एंटीबायोटिक्‍स के प्रति रेसिस्‍टेंट हो रहे हैं। यानी एंटीबायोटिक अब रोग ठीक करने के लिए शरीर पर असर नहीं कर रही है, यूं ही सिलसिला चलता रहा तो जल्‍द ही ऐसी स्थिति आ जायेगी कि कोई एंटीबायोटिक नहीं बचेगी जो जटिल रोग में फायदा कर सके। इन स्थितियों से निपटने के लिए जिन टेक्‍नीक पर कार्य चल रहा है उनमें एक है जीवाणुभोजी (bacteriophage)। इसे अगर सरल शब्‍दों में समझा जाये तो लोहे से लोहे को काटना।

 

यह जानकारी आज शनिवार को यहां डॉ राम मनोहर लोहिया संस्‍थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा ‘बियॉन्‍ड एंटीबायोटिक्‍स’ विषय पर आयोजित सतत चिकित्‍सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम में पोस्‍ट ग्रेजुएट इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एवं रिसर्च, चंडीगढ़ के डॉ पल्‍लव रे ने दी। उन्‍होंने बताया कि एंटीबायोटिक्‍स के विकल्‍प के रूप में देखे जा रही इस टेक्‍नीक के अंतर्गत बीमारी के लिए जिम्‍मेदार बैक्‍टीरिया को खत्‍म करने के लिए बैक्‍टीरिया को बीमार करने वाले वायरस को शरीर में प्रविष्‍ट कराया जायेगा जिससे वह वायरस बैक्‍टीरिया को खत्‍म कर सके।

 

उन्‍होंने बताया कि इसी प्रकार एक अन्‍य टेक्‍नीक रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स (antimicrobial peptides) को भी एंटीबायोटिक्‍स के विकल्‍प के रूप में देखा जा रहा है। इस टेक्‍नीक में छोटे प्रोटीन के मॉलीक्‍यूल्‍स जो किसी अन्‍य ह्यूमन बीइंग चाहे वह पौधा हो या जानवर उनसे निकाल कर उनका इस्‍तेमाल बैक्‍टीरिया को मारे जाने में किया जा सकता है।

 

इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजन सचिव माइक्रोबायोलॉजी विभाग की विभागाध्‍यक्ष प्रो ज्‍योत्‍सना अग्रवाल ने आये हुए अतिथियों का स्‍वागत करते हुए कहा कि एंटीबायोटिक्‍स के बेअसर होने की शुरुआत हो चुकी है, इससे पहले कि यह स्थिति भयावह हो जाये, एंटीबायोटिक्‍स के विकल्‍प का इस्‍तेमाल पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा। इस मौके पर संस्‍थान अधिष्‍ठाता, संस्‍थान के मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षक व चिकित्‍सा अधीक्षक सहित अनेक चिकित्‍सक शिक्षक मौजूद रहे।