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ऐतिहासिक निर्णय लेकर लोगों की धारणा बदल दी नागा साधुओं और अखाड़ों ने

-अमृत स्नान पर्व पर प्रथम स्नान का त्याग करके यह मौका आम श्रद्धालुओं को दिया

-मौनी अमावस्या का पवित्र दिन कुंभ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्नान का दिन

धर्मेन्द्र सक्सेना

लखनऊ। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान (अमृत स्नान) के लिए ब्रह्म मुहूर्त से कुछ समय पूर्व हुए हादसे में श्रद्धालुओं के हताहत होने की खबर निश्चित रूप से अत्यन्त दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। इस पर हादसे के बाद से बहुत चर्चा भी हो रही है, लेकिन इस हादसे के बाद नागाओं सहित सभी अखाड़ों के संतों द्वारा स्थिति की गंभीरता को समझते हुए अन्य श्रद्धालुओं को स्नान का मौका देने के लिए बड़ा दिल दिखाते हुए ब्रह्म मुहूर्त में शुरू किया जाने वाला स्नान न किये जाने का फैसला अत्यन्त सराहनीय है। सभी 13 अखाड़ों के प्रमुखों का एकमत होकर अपना स्नान कार्यक्रम स्थगित करते हुए वहां पहुंचे श्रद्धालुओं को स्नान करने देने का फैसला इन संतों के प्रति बनी लोगों की धारणा को बदलने के लिए मजबूर करने वाला है।

कहा जा रहा है कि यह पहला मौका था जब नागा संन्यासी और अखाड़ों ने संगम में ऐतिहासिक प्रथम स्नान की प्रतिज्ञा तोड़ दी। परिस्थिति को देखते हुए अखाड़ों ने अपने ब्रह्म मुहूर्त के अमृत स्नान को स्थगित कर दिया और श्रद्धालुओं को पहले स्नान करने का अवसर दिया। इस बारे में सुबह ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि सर्व सम्मति से सभी अखाड़ों ने निर्णय लिया कि हालात को देखते हुए पहले श्रद्धालुओं को अमृत स्नान का अवसर दिया जाय। स्थिति सामान्य होने पर अखाड़ों ने अपनी भव्य अमृत स्नान की परम्परा का त्याग कर दिया और सांकेतिक रूप से स्नान कर परम्परा का निर्वहन किया।

आमतौर पर कहा जाता है कि नागा समुदाय वाले इन अखाड़ों के संत बहुत कठोर हृदय होते हैं, वे अपने आगे किसी की कुछ चलने नहीं देते हैं, आदि-आदि। लेकिन इस निर्णय ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। आपको बता दें कि माघ माह में मौनी अमावस्या का दिन कुंभ का सबसे महत्वपूर्ण दिन इसलिए माना जाता है कि पुराणों के अनुसार इसी दिन प्रयागराज में त्रिवेणी वाले स्थान पर अमृत की वर्षा हुई थी, ऐसे में इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में अखाड़ों के संतों को प्रथम स्नान का अधिकार दिया गया है। ये वे संत होते हैं तो अपना पिंडदान करके सांसारिक जीवन छोड़ चुके हैं, और धर्म की सेवा में अपने को समर्पित कर दिया है। दीन-दुनिया से अपना नाता छोड़ चुके इन संतों की इस सहिष्णुता की चहुंओर प्रशंसा हो रही है।

इन संतों ने अपने इस निर्णय से सनातन धर्म की उदारता, जीवंतता, सरलता, सहिष्णुता, महानता का चेहरा भी उजागर करके सनातन का विरोध करने वालों को करारा जवाब दिया है। विचार करके देखिये कि जैसा कि सभी जानते हैं कि इस तरह के महाकुंभ का संयोग 144 वर्षों बाद आया है। ऐसे में अखाड़ों द्वारा इस महान और दुर्लभ संयोग में अपनी परम्परा के अनुरूप किये जाने वाले स्नान का त्याग करने के विषय में लोग सोच भी नहीं सकते थे। हालांकि मेला प्रशासन द्वारा व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की तत्परता दिखाते हुए दोपहर बाद से इन अखाड़ों के स्नान के लिए आमंत्रित कर दिया गया, लेकिन अखाड़ों की तरफ से सुबह ही अपने निर्णय में साफ कर दिया था कि यहां पर उमड़ी श्रद्घालुओं की भीड़ को देखते हुए उन्हें स्नान का मौका दिया जाये, हम अपना स्नान वसंत पंचमी को कर लेंगे, यानी अखाड़ों का आज ही स्नान करने को लेकर प्रशासन पर कोई दबाव नहीं था।

शायद यही खूबसूरती है सनातन धर्म की जो स्वार्थ नहीं परमार्थ सिखाता है, जो त्याग सिखाता है, जो दूसरों के सुख में अपना सुख ढूंढ़ना सिखाता है।

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