-पांच जिलों के एमपीडब्ल्यू बैठे सत्याग्रह आंदोलन पर
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। संविदा एमपीडब्ल्यू (मल्टी परपज वर्कर्स) द्वारा महानिदेशक परिवार कल्याण परिसर में 27 जुलाई से अपने प्रशिक्षण की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन सत्याग्रह आंदोलन तीसरे दिन आज 29 जुलाई को भी जारी रहा।
यह जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश कॉन्ट्रेक्ट एम.पी.डब्ल्यू. एसोसिएशन के संरक्षक विनीत मिश्रा ने बताया कि संविदा एम.पी.डब्ल्यू.अपने प्रशिक्षण के लिए वर्ष 2014 से प्रयासरत हैं। शासन के निर्देश पर महानिदेशक द्वारा समिति गठित कर प्रस्ताव भेजा गया जो कि फरवरी 2019 से शासन में लंबित है। सुनवाई न होने पर संविदा एम.पी.डब्ल्यू. कार्मिकों ने अपने विषय के निस्तारण के लिए वर्ष 25 जुलाई 2019 में विधानसभा याचिका समिति के पटल पर रखवाया। समिति में लिए गए निर्णय के दृष्टिगत महानिदेशक परिवार कल्याण की अध्यक्षता में 5 सदस्य समिति गठित की गई थी। समिति ने दिसंबर 2019 में एक स्वर से संविदा एमपीडब्ल्यू कार्मिकों को प्रशिक्षण दिए जाने की प्रबल संस्तुति करते हुए अपनी रिपोर्ट शासन को प्रेषित कर दी कर दी थी। इतना सब होने के बावजूद अभी तक संविदा एमपीडब्ल्यू कार्मिकों को प्रशिक्षण पर नहीं भेजा गया है।
उन्होंने बताया कि इन संविदा कार्मिकों को प्रशिक्षण दिलाना विभाग और शासन की जिम्मेदारी है क्योंकि संविदा एम.पी.डब्ल्यू. के चयन के समय संविदा गाइडलाइन 2010 में विहित 1 वर्षीय प्रशिक्षण के स्थान पर इन मात्र 10 दिन का ही प्रशिक्षण कराया गया था। इसीलिये संविदा एम.पी.डब्ल्यू. कार्मिक अपने शेष प्रशिक्षण की मांग कर रहे हैं, पत्रावली पूर्ण हैं पिछले 3 दिन से अनिश्चितकालीन सत्याग्रह आंदोलन महानिदेशक परिवार कल्याण परिसर में करने को मजबूर हैं।
विनीत मिश्रा ने बताया कि विभाग में दोहरे मापदंड अपनाए जा रहे हैं वर्ष 2002- 03, 2008-09 में एन.एच.एम. द्वारा अल्प शिक्षित महिलाओं का चयन कराया गया और उन्हें प्रशिक्षण करा कर विभाग में समायोजित किया जा चुका है। महिलाओं की भांति संविदा एम.पी.डब्ल्यू. का जिला स्वास्थ्य समिति के माध्यम से मेरिट के आधार पर चयन किया गया परंतु संविदा एमपीडब्ल्यू को विभाग प्रशिक्षण नहीं करा रहा है। समय-समय पर विभाग ने स्थापित नियम कानून में परिवर्तन कर महिला पुरुषों को सेवायोजित किया है स्थापित नियम के विपरीत निजी क्षेत्रों से प्रशिक्षित 3000 महिलाओं को वर्ष 2012-13 में संविदा और नियमित नियुक्ति दी जा चुकी है इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि निजी क्षेत्रों में प्रशिक्षित महिलाओं का चयन पिक एंड चूज के आधार पर किया जाता है महानिदेशक परिवार कल्याण ने शासन को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में निजी क्षेत्रों में प्रशिक्षित महिलाओं की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है इसके विपरीत संविदा एम.पी.डब्ल्यू.का चयन जिला स्वास्थ्य समिति के आधार पर किया गया था इसके बाद भी इनको प्रशिक्षण न दिया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे ज्यादा दुर्भाग्य है कि महिला और पुरुष के 2 पदों में भारी अंतर शासन के द्वारा किया जा रहा जहां महिलाओं को निजी क्षेत्र के लगभग 232 से ज्यादा कॉलेजों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है वहीं पुरुषों के लिए निजी क्षेत्र में प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं है।
विभाग द्वारा अपने ट्रेनिंग सेंटर पर परीक्षा कराने के लिए 2002, 2010 और 2015 में प्रयास किया गया, परंतु उसे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते परीक्षा को निरस्त घोषित करना पड़ा। वर्ष 2015 की परीक्षा को निरस्त किए जाने को लेकर अभ्यार्थियों द्वारा उच्च न्यायालय खंडपीठ इलाहाबाद तथा खंड पीठ लखनऊ में वाद प्रचलित है, यही कारण है कि विभाग अपने शासनादेश 23 जुलाई 1981 में प्राविधानित प्रति 5000 की आबादी पर एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता पुरुष तैनात नहीं कर पा रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 45000 एम.पी.डब्ल्यू.पुरुष कार्यकर्ताओं की ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यकता है जिसके स्थान पर मात्र 1800 कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में कार्य कर रहे हैं कोविड-19 की तीसरी लहर का खतरा देश/प्रदेश में तेजी से फैल रहा है संक्रामक रोगों की रोकथाम का एम.पी.डब्ल्यू. फ्रंटलाइन वर्कर हैं। ये कार्मिक ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू,टी.बी.,कुष्ठ रोग, हैजा,हेपेटाइटिस बी एवं सी सहित घर-घर जाकर मरीजों की ब्लड स्लाइड बनाने तथा संक्रमित व्यक्ति को ग्रामीण स्तर पर आवश्यक उपचार देने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
वर्तमान भाजपा सरकार ने अपने संकल्प पत्र में ग्रामीण स्तर पर 77241 स्वास्थ्य केंद्र बनाए जाने का वादा किया था परंतु पूर्व से ही स्थापित 20573 उप केंद्रों पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता पुरुष की तैनाती नहीं की जा सकी है वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 32017 से भी स्वास्थ्य उप केंद्र होने चाहिए इनमें भी लगभग 11444 स्वास्थ्य उप केंद्र स्थापित नहीं हो सके हैं। स्वास्थ्य विभाग की लचर नीतियों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रामक रोगों का तेजी से फैलाव होता है और उन पर नियंत्रण पाना असंभव हो जाता है। जिसके जिसके कारण ग्रामीण जन झोलाछाप डॉक्टरों से अपना इलाज कराने को मजबूर होते हैं सही इलाज ना मिलने के कारण उन्हें अपना धन और जीवन गंवाना पड़ता है रोगों का फैलाव रोकना एक महत्वपूर्ण कार्य है और यही महत्वपूर्ण कार्य इन संविदा कार्मिको के द्वारा किया विभाग में किया जाता रहा है।
यह बात भी समझ से परे है कि भारत सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत के तहत हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर के प्रदेश में वर्ष 2018 से लगभग 2500 पद सृजित किए जा चुके हैं जिन पर एक सी.एच.ओ.,(कम्युनिटी हेल्थ ऑफीसर) एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता महिला,एक आशा तथा एक एम.पी.डब्ल्यू.पुरुष की तैनाती प्रावधानित की गई है। जिसके संपूर्ण वित्तीय खर्च की जिम्मेदारी केंद्र सरकार द्वारा उठाई जा रही है इन हेल्थ एंड वेलनेस केंद्रों पर 1 वर्षीय प्रशिक्षित एम.पी.डब्ल्यू. पुरुष की तैनाती प्रशिक्षण के अभाव में नहीं हो पा रही है। वर्ष 1989 के बाद से पिछले 32 वर्षों से विभाग द्वारा किसी भी एम.पी.डब्ल्यू.पुरुष को सेवा पूर्व 1 वर्षीय प्रशिक्षण नहीं दिया गया है वर्ष 2011-12 में संविदा एमपीडब्ल्यू का चयन करते समय भी 1 वर्षीय प्रशिक्षण के स्थान पर 10 दिन का प्रशिक्षण करा कर उनसे कार्य लिया गया संविदा एमपीडब्ल्यू की मांग है कि उनके कार्य अनुभव को को ही डीम्ड प्रशिक्षण मान लिया जाए अगर कोई विधिक बाध्यता है तो विभागीय प्रशिक्षण देकर भी इन हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर पर संविदा एम.पी.डब्ल्यू. पुरुष की तैनाती की जा सकती है।
शासन में बैठे अधिकारी गण ग्रामीण क्षेत्रों को स्वास्थ्य समस्याओं से निजात दिलाने वाले इस महत्वपूर्ण विषय पर पिछले 7 वर्षों से निर्णय नहीं ले पा रहे हैं स्थिति अत्यंत चिंताजनक है जनपद बाराबंकी, फतेहपुर, बिजनौर, कानपुर और प्रतापगढ़ के साथी धरना स्थल पर मौजूद रहे आज धरने की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश कॉन्ट्रेक्ट एम.पी.डब्ल्यू.एसोसिएशन के महामंत्री अजय सविता के द्वारा की गई धरना स्थल पर ईश्वर से प्रार्थना की गई कि शासन में बैठे अधिकारीगणों को सद्बुद्धि प्रदान करें जिससे वह संविदा एम.पी.डब्ल्यू. को प्रशिक्षण दिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में फैलने वाले संक्रामक रोगों से जन जीवन का बचाव कर सकें।