घरों से ज्यादा संक्रमण मिलता है अस्पतालों से
लखनऊ। यह देखा गया है कि समय पूर्व प्रसव के मामले शहरों में ज्यादा होते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग न के बराबर। शहरों में इसके ज्यादा होने के कारणों में एक कारण है जरूरत या फिर आधुनिकता की दौड़ में बने रहने के लिए कार्य का तनाव। कुल मिलाकर कामकाजी महिलाओं में विशेष रूप से तनाव बढ़ रहा है। इस तनाव का शिकार गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। मानसिक तनाव व अन्य कई कारणों की वजह से गर्भवती महिलाओं में समय पूर्व ही प्रसव की समस्या आ रही है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यदा कदा प्रीमेच्योर बेबी के मामले आ रहें हैं। यह जानकारी कन्वेंशन सेंटर में चल रही तीन दिवसीय पेडीकॉन-2018 में केजीएमयू की एनआईसीयू की डॉ.शालिनी त्रिपाठी ने दी।
स्टेट कॉफ्रेंस ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की 39 वीं राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन डॉ.त्रिपाठी ने बताया कि नवजात शिशुओं में एक टॉर्च संक्रमण होता है, जो कि गर्भवती मॉ से शिशुओं में आता है, जिसकी वजह से गर्भस्थ शिशु में शारीरिक रूप से कमजोर होने के अलावा निमोनिया, सिर छोटा रह जाना, अर्थात पूर्ण विकास नहीं होना जैसी समस्यायें पैदा हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रसव उपरांत एनआईसीयू में रखकर शिशु का इलाज किया जाता है।
कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ.आशुतोष वर्मा ने जन्म उपरांत शिशुओं के मृत्यु के कारणों एवं होने वाले संक्रमण के बारे में बताया कि घरों से ज्यादा संक्रमण शिशुओं को अस्पताल में मिलता है। इसके अलावा बोतल से दूध पीने से भी संक्रमण पहुंचता है, बच्चे बहुत की संवेदनशील होते हैं सफाई के मानक न पूरे होने की वजह से संक्रमण की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि कुपोषित का अर्थ सिर्फ दुबला-पतला होना ही नहीं बल्कि अत्यधिक मोटापा भी कुपोषण है। इसके अलावा बेतरतीब दवाओं के सेवन से बच्चों की किडनी भी खराब हो जाती हैं, जिनका इलाज कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध होता है। इसलिए बालरोग विशेषज्ञों को इलाज की गाइड लाइन का उपयोग करना चाहिये।