ब्रश करते समय सावधानी बरतनी चाहिए : प्रो.टिक्कू
लखनऊ. दांतों से गंदगी साफ़ करें, दांतों पर मौजूद इनेमल की परत नहीं. क्योंकि अगर कुदरती रूप से चढ़ी मूल्यवान परत हटी तो समझ लीजिये फिर आपके लिए कोई भी चीज खाना या पीना मुश्किल हो जायेगा. यह सुझाव किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय केजीएमयू के दन्त संकाय के प्रो. एपी टिक्कू ने दिया है. प्रो. टिक्कू ने पिछले दिनों श्रीलंका के कोलम्बो में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में Hypersensitivity यानि अतिसंवेदनशीलता विषय पर अपने विचार रखे.
एक विशेष बातचीत में डॉ. टिक्कू ने बताया कि भारत सहित पूरे विश्व में लगभग 65 प्रतिशत लोग दांतों की hypersensitivity के शिकार हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि हमारे दांतों के ऊपर कुदरती रूप से सफ़ेद इनेमल की परत चढ़ी होती है. इस परत की मोटाई 1 मिलीमीटर से थोड़ी सी ज्यादा होती है. उन्होंने बताया कि यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि इनेमल की यह परत बार-बार नहीं पैदा होती है. ऐसे स्थिति में इसे पूरी जिंदगी बचाए रखना चाहिए.
क्यों हो जाती है Hypersensitivity
Hypersensitivity के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इनेमल की इस परत के नीचे डेंटीन होती है. यह डेंटीन बहुत मुलायम होती है. इनेमल की परत हट जाने के बाद नीचे नर्व में संवेदनशीलता शुरू हो जाती है, तथा जब हम कोई चीज खाते हैं तो पहले खट्टा दांतों में लगता है, फिर कुछ दिन बाद मीठा भी लगने लगता है, फिर ठंडा और सबसे बाद में गरम भी दांतों में तकलीफ देने लगता है. उन्होंने बताया कि दरअसल डेंटीन मुलायम होने की वजह से घुलने लगती है, जिससे नर्व expose होने की संभावना बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि जिन लोगों को एसिडिटी की शिकायत रहती है, उससे भी इनेमल को खतरा रहता है.
कैसे बच सकते हैं Hypersensitivity से
डॉ. टिक्कू ने बताया कि दांतों के इनेमल बचाने के लिए हमेशा मुलायम बालों वाले टूथ ब्रश का इस्तेमाल करना चाहिए. बहुत तेजी से ब्रश नहीं करना चाहिए, ब्रश कम से कम डेढ़ मिनट तक करना चाहिए. उन्होंने बताया कि पुराने समय में जो लोग नीम की दातून से दांत साफ़ करते थे वह बहुत अच्छा था. उन्होंने यह भी सलाह दी कि पाउडर के मुकाबले पेस्ट करना ज्यादा अच्छा रहता है.
क्या इलाज है Hypersensitivity का
डॉ. टिक्कू ने बताया कि जैसे ही ठंडा, गरम दांतों में लगने की शुरुआत हो उसी समय लेज़र से ट्रीटमेंट करा लिया जाये तो ठीक हो जाता है लेकिन अगर सभी स्टेज को पार कर जड़ों तक खराबी आ गयी है तो फिर इसका इलाज रूट कैनाल ट्रीटमेंट (RCT) ही है, जिसमें नर्व को ही निकाल दिया जाता है.