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आईएमए ने कहा, इस कदम से तो बर्बाद हो जायेंगे छोटे-मझोले अस्‍पताल

-केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को सौंपा ज्ञापन
-बायोमेडिकल वेस्‍ट के निस्‍तारण के नये नियमों से छोटे-मझोले अस्‍पतालों को अलग रखने की मांग

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ/नयी दिल्‍ली। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने छोटे और मझोले अस्‍पतालों के लिए बायोमेडिकल वेस्‍ट के निस्‍तारण के संबंध में बने कानून में संशोधनों के चलते पड़ने वाले प्रभावों पर चिंता जतायी है। नये संशोधन में जहां जैव चिकित्‍सा अपशिष्‍ट प्रबंधन रजिस्‍टर बनाने के साथ ही उसे रोज मेन्‍टेन करने की अनिवार्यता के साथ ही उसको रंग विशेष से कोडिंग करते हुए संस्‍थान की वेबसाइट पर प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है, वहीं दस बिस्‍तर से कम वाले अस्‍पतालों में भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की अनिवार्यता की गयी है। आईएमए के प्रतिनिधिमंडल ने इस सम्‍बन्‍ध में इस नियम से छोटे और मझोले अस्‍पतालों को अलग रखने के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को उनके संसदीय कार्यालय में एक ज्ञापन दिया है, इसके साथ ही इसकी ज्ञापन की एक प्रति केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी सौंपी है।

आईएमए के नेशनल प्रेसीडेंट डॉ राजन शर्मा, महासचिव डॉ आरवी असोकन, आईएमए हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया के नेशनल चेयरमैन डॉ वीके मोंगा, आईएमए हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया के नेशनल सेक्रेटरी डॉ जयेश एम. लेले तथा नेशनल वर्किंग ग्रुप ऑफ पॉल्‍यूशन लॉज के संयोजक डॉ मंगेश पाटे द्वारा जारी एक पत्र में यह जानकारी दी गयी है। आपको बता दें कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 20 फरवरी, 2019 को संशोधन के बाद अधिसूचना जारी की गयी थी। इस अधिसूचना के अनुसार इस पर 31 दिसम्‍बर, 2019 तक अमल होना था। नये संशोधन को लेकर चिंतित आईएमए और हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया ने इस पर गहराई से अध्‍ययन करने के लिए एक नेशनल वर्किंग ग्रुप का गठन किया था। नेशनल वर्किंग ग्रुप ने बायोमेडिकल वेस्‍ट के नियमों और संशोधनों का अध्ययन किया और पाया कि यह छोटे-मझोले अस्‍पतालों पर भारी वित्‍तीय बोझ डालेगा। आईएमए ने अपने मंतव्‍य में कहा है कि छोटे और मझोले अस्‍पताल देश की 95 प्रतिशत स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍था सम्‍भाले हुए हैं। नये संशोधन से इन्‍हीं अस्‍पतालों पर भारी वित्‍तीय बोझ पड़ेगा।

आईएमए का कहना है कि 80 फीसदी प्रदूषण घरेलू तरल पदार्थों से होता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट बनाना अनिवार्य करने से छोटे और मझोले अस्‍पतालों को स्‍थान और व्‍यय दोनों की समस्‍या आयेगी। इस अनिवार्यता को पूरा करना इन अस्‍पतालों के लिए लगभग असम्‍भव होगा। आईएमए का तर्क है कि हॉस्पिटल तरल अपशिष्‍ट घरेलू तरल अपशिष्‍ट की तरह है, इसलिए इसे अलग नहीं माना जाना चाहिये। आईएमए का यह भी कहना है कि इन छोटे-मझोले हॉस्पिटल में 95 फीसदी रोगी ऐसे आते हैं जिनका उपचार ओपीडी में ही हो जाता है, सिर्फ 5 प्रतिशत मरीजों को ही भर्ती करने की जरूरत होती है, ऐसे में इन पांच प्रतिशत के लिए अलग से सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट लगाना अनावश्‍यक है, इस अपशिष्‍ट को स्‍थानीय निकायों द्वारा चलाये जा रहे सीवेज सिस्‍टम से ही ठिकाने लगाया जा सकता है।

आईएमए ने यह भी कहा है कि आईएमए द्वारा विकसित किया गया कॉमन बायोमेडिकल वेस्‍ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी- IMAGE, a CBMWTF (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन गोज इकोफ्रेंडली, बायोमेडिकल वेस्‍ट ट्रीटमेंट एंड डिस्‍पोसल फैसिलिटी) पर्यावरण को शुद्ध करने का एक बड़ा कदम है, तथा सरकार, समाज और पर्यावरण के लिए एक धरोहर है।

आईएमए ने इसी प्रकार प्रत्‍येक अस्‍पताल के लिए उस अस्‍पताल की  वेबसाइट पर जैव चिकित्‍सा अपशिष्‍ट प्रबंधन रजिस्‍टर बनाने के साथ ही उसे रोज मेन्‍टेन करने की अनिवार्यता के साथ ही उसको रंग विशेष से कोडिंग करते हुए संस्‍थान की वेबसाइट पर प्रदर्शित करना अनिवार्य करने पर भी ऐतराज जताया है। आईएमए का कहना है कि इस तरह की कोडिंग के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सभी छोटे-मझोले अस्‍पतालों के लिए कॉमन सॉफ्टवेयर उपलब्‍ध कराना चाहिये।

आईएमए के अनुसार इसी प्रकार पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क नियमावली में इस तरह के जुर्माने के लिए अस्पष्ट मानदंड हैं। इससे अधिकारियों द्वारा भारी दंड का भय दिखाकर भ्रष्टाचार के लिए एक हथियार के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। आईएमए, हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया ने छोटे और मझोले अस्‍पतालों की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी है।

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