-सिक्स मिनट्स वॉक टेस्ट से पता लगाया जा सकता है फेफड़े का संक्रमण
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। अचानक गिरने वाले ऑक्सीजन लेवल की स्थिति न आये, इसे पहले से कैसे काबू में रखा जा सकता है, इसके बारे में घर पर ही छोटे से टेस्ट से बिना किसी जांच मशीन के जांचा जा सकता है। इसके लिए की जाने वाली जांच प्रक्रिया को सिक्स मिनट्स वॉक टेस्ट कहते हैं।
यह महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए कोविड में बरती जाने वाली सावधानियों का प्रशिक्षण कोर्स तैयार करने वाले किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के प्रोफेसर डॉ विनोद जैन ने बताया कि आजकल यह देखा जा रहा है कि माइल्ड सिम्प्टम्स के साथ होम आईसोलेशन में रहने वाले कुछ मरीजों का अचानक ऑक्सीजन लेवल गिरने लगता है, इस ऑक्सीजन लेवल गिरने का कारण मरीज के लंग्स में संक्रमण होना है, लंग्स में संक्रमण का अर्थ है कि लंग्स की झिल्ली पर मोटी परत जमने लगती है, जिससे ऑक्सीजन को ब्लड में भेजने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है। लेकिन अगर हम पहले से जान लें कि हमारे लंग्स में संक्रमण बढ़ रहा है तो समय रहते इसका इलाज कर सकते हैं।
शरीर में ऑक्सीजन जाने की क्या होती है प्रक्रिया
डॉ जैन ने बताया कि जब हम प्राकृतिक तरीके से सांस लेते हैं तो ऑक्सीजन मिश्रित हवा पहले फेफड़े में जाती है, यह हो गया वेन्टीलेशन, दूसरी ओर जो ब्लड हार्ट से लंग्स में प्योर होने आता है, इस प्रक्रिया को कहते हैं परफ्यूजन। इसके बाद ब्लड और सांस के बीच लंग्स में झिल्ली के माध्यम से गैस का एक्सचेंज होता है, इस तरह ब्लड में ऑक्सीजन आ जाती है जो शरीर के सभी हिस्सों में पहुंच जाती है।
कैसे कम होने लगती है ऑक्सीजन
डॉ जैन ने बताया कि अगर सांस अच्छी ली, पानी का बफारा भी लिया, हार्ट से ब्लड भी अच्छा आया लेकिन लंग्स की झिल्ली मोटी होने के कारण अगर गैस का एक्सचेंज अच्छा नहीं होगा, तो ऑक्सीजन की कमी आ जायेगी।
कैसे करें फेफड़े का टेस्ट
डॉ विनोद जैन ने बताया कि सीटी चेस्ट या एक्स रे कराने के बजाये घर पर ही जांच करके फेफड़ों के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। इस जांच के लिए दिन में दो बार (सुबह-शाम) सिक्स मिनट्स वॉक टेस्ट में एक मिनट में सौ कदम के हिसाब से छह मिनट में 600 कदम चल कर देखा जाता है, लेकिन यदि मरीज की उम्र 60 साल से ज्यादा है तो यह टेस्ट थ्री मिनट्स वॉक टेस्ट हो जाता है यानी तीन मिनट में 300 कदम चल कर देखा जाता है। इस दौरान हाथ की बीच की उंगली में ऑक्सीमीटर लगा रहना चाहिये। उन्होंने बताया कि यह टेस्ट तभी करना चाहिये जब ऑक्सीजन लेवल 94 प्रतिशत से ज्यादा हो। टेस्ट करते समय कोई व्यक्ति साथ में जरूर खड़ा हो ताकि अगर कमजोरी या किसी दूसरी वजह से चक्कर आ जायें तो वह व्यक्ति मरीज को संभाल सके।
डॉ जैन ने बताया कि जब मरीज ने वॉक किया और अगर उसका ऑक्सीजन लेवल 3 प्रतिशत घट जाये, चक्कर आ जाये, आंखों के आगे अंधेरा छा जाये तो इसका अर्थ है कि उसके फेफड़ों में सूजन है, जिसके बारे में इन्हें पता नहीं है, इसे लेटेंट हाईपॉक्सिया कहते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को सचेत हो जाना चाहिये और डॉक्टर से बात करके या घरेलू उपायों जैसे प्रोनिंग यानी पेट के बल-दायीं करवट-बायीं करवट लेटकर, प्राणायाम, कपाल भाती, इंसेटिव रेस्पाइरोमीटरी, गहरी सांस लेकर ऑक्सीजन लेवल को बढ़ाना चाहिये। इसके साथ ही डॉक्टर की सलाह से स्ट्रॉयड, रोटाहेलर से पफ लेना चाहिये जिससे अस्पताल जाने की स्थिति से बचा जा सकता है। स्ट्रॉयड हमेशा डॉक्टर की सलाह से ही लें क्योंकि डायबिटीज आदि कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं, जिनमें स्ट्रॉयड नहीं दी जाती है, इसके अतिरिक्त स्ट्रॉयड सातवें दिन ली जाती है, इससे पहले न लें। उन्होंने बताया कि चूंकि यह देखा जा रहा है कि बहुत से लोगों को हार्ट अटैक हो रहा है, इसका अर्थ है ब्लड क्लॉट हो रह है तो इसका अर्थ है कि खून पतला करने वाली दवा भी लें।