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किडनी फेल्‍योर के मरीजों को लम्‍बे समय तक ट्रांसप्‍लांट से दूर रखती हैं होम्‍योपैथी दवायें

-सीकेडी पर आयोजित सीएमई में ऐलोपैथी और होम्‍योपैथी के दिग्‍गज दिखे एक मंच पर

-डॉ आरके शर्मा के समक्ष डॉ गिरीश गुप्‍ता ने प्रस्‍तुत की सीकेडी पर अपनी सफल शोध

 

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। होम्‍योपैथिक दवाओं से क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के मरीजों को न सिर्फ डायलिसिस बल्कि किडनी ट्रांसप्‍लांट से बचाया जाना संभव है, गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च में  अब तक की स्‍टडी बताती है कि होम्‍योपैथिक इलाज से 1 से 15 वर्षों तक मरीज को ट्रांसप्‍लांट से दूर रखने में सफलता मिल चुकी है। आपको बता दें कि यह बात इसलिए और महत्‍वपूर्ण हो जाती है कि आधुनिक पैथी कही जाने वाली ऐलोपैथी में भी सीकेडी का इलाज संभव नहीं है, सिर्फ डायलिसिस और ट्रांसप्‍लांट ही एक विकल्‍प है, जिसमें भारी-भरकम खर्चा होता है, ऐसे में अगर होम्‍योपैथिक के सस्‍ते इलाज से मरीज को डायलिसिस और ट्रांसप्‍लांट से लम्‍बे समय तक दूर रखा जा सकता है तो निश्चित रूप से यह एक अच्‍छा विकल्‍प है।

राजधानी लखनऊ में रविवार को होम्‍योपैथिक दवा कम्‍पनी भार्गव फाइटोलैब द्वारा आयोजित सम्‍पर्क सीएमई कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि के रूप में संजय गांधी पीजीआई के पूर्व निदेशक, वर्तमान में मेदान्‍ता हॉस्पिटल के निदेशक व देश के बड़े किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ आरके शर्मा  आमंत्रित थे। उनके अलावा गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्‍सल्‍टेंट डॉ गिरीश गुप्‍ता को मुख्‍य वक्‍ता के रूप में आमंत्रित किया गया था दूसरे वक्‍ता मारूति होम्‍यो क्‍लीनिक के चीफ कन्‍सल्‍टेंट डॉ पीके शुक्‍ला थे। देर रात तक चले कार्यक्रम की खास बात यह रही कि नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र की दिग्‍गज हस्‍ती कहे जाने वाले डॉ आरके शर्मा पहली बार किसी होम्‍योपैथी की कॉन्‍फ्रेंस में शामिल हुए, जहां उनके समक्ष वैज्ञानिक तरीके से जुटाये गये साक्ष्‍यों के साथ के साथ होम्‍योपैथिक दवाओं से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दी गयी।

दीप प्रज्‍ज्‍वलन के बाद शुरू हुए कार्यक्रम में सबसे पहले अपने उद्बोधन में क्रॉनिक किडनी डिजीज रोग के साक्ष्‍य आधारित इलाज पर अपनी सहमति जताते हुए डॉ आरके शर्मा ने क्रॉनिक किडनी डिजीज के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी। उन्‍होंने किडनी फंक्‍शन के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मानव शरीर में दो किडनियां होती हैं, ये किडनी हमारे शरीर के वेसट प्रोडक्‍ट को निकालती हैं, फ्ल्‍यूड को नियंत्रित रखती हैं, ब्‍लड प्रेशर को कंट्रोल रखती हैं, आरबीसी का प्रोडक्‍शन करने के साथ ही हड्डियों को स्‍वस्‍थ रखने का कार्य करती हैं। उन्‍होंने बताया कि जब तक एक किडनी 50 प्रतिशत तक कार्य करती रहती है तब तक किसी तरह के लक्षण नहीं दिखते हैं लेकिन किडनी के इससे ज्‍यादा खराब होने की स्थिति होते ही तेजी से नुकसान बढ़ने लगता है। इस बीमारी का सर्वाधिक खतरा डायबिटिक और हाई ब्‍लड प्रेशर के मरीजों को रहता है, ऐसे में यह आवश्‍यक है कि इन मरीजों की सीरम क्रिटेनिन और पेशाब की जांच कराते रहना चाहिये। उन्‍होंने किडनी को बचाये रखने के लिए प्राइमरी, सेकंडरी और टरशरी स्‍टेज पर उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी दी।

 

इसके बाद डॉ गिरीश गुप्‍ता ने होम्‍योपैथिक दवाओं से किडनी रोगियों के इलाज पर की गयी अपनी रिसर्च को प्रस्‍तुत किया। उन्‍होंने बताया कि इस रिसर्च का प्रकाशन  नेशनल जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी में वर्ष 2015 वॉल्‍यूम 17, संख्‍या 6 के 189वें अंक में हो चुका है। इस रिसर्च के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुप्‍ता ने बताया कि मरीज के रोग की स्थिति का आकलन सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच को आधार मानते हुए किया गया। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि यह शोध पूरी तरह से डायग्‍नोज किये गये 160 मरीजों पर किया गया, इनमें किसी भी मरीज की डायलिसिस नहीं हो रही थी। सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच के साथ ही इन मरीजों के किडनी का साइज देखने के लिए अल्‍ट्रासाउंड भी कराया गया। इन मरीजों में सर्वाधिक 109 मरीज 31 से 60 वर्ष के बीच की आयु के थे, जबकि 30 वर्ष की आयु तक के 24 और 61 वर्ष की से ऊपर की आयु के 27 मरीज थे। इनमें 151 मरीजों का इलाज पांच साल से कम तथा 9 मरीजों का फॉलोअप पांच वर्ष से ज्‍यादा अधिकतम 15 वर्ष तक किया गया है। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि बहुत सी शारीरिक बीमारियों का कारण मानसिक होता है, क्‍योंकि कहा जाता है कि यदि कोई रोकर अपना दुख व्‍यक्‍त नहीं कर पाता है, उसकी आंखें नहीं रोती हैं तो अंदर ही अंदर ही शरीर का कोई अंग रोता है, यही उस अंग की बीमारी का कारण बन जाता है। किडनी भी ऐसा ही अंग है जिसपर मन:स्थिति का असर पड़ता है। उन्‍होंने बताया कि शरीर व मन:स्थिति की होलिस्टिक अप्रोच के साथ इलाज होम्‍योपैथी की अवधारणा है। इसी अवधारण के अनुरूप इन मरीजों के लिए दवा का चुनाव किया गया तथा साथ ही जरूरत के अनुसार हाईपरटेंशन, डायबिटीज और यूरीन के लिए मदर टिंक्‍चर भी दिया गया। साथ ही एलोपैथिक दवाओं को भी लेने से रोका नहीं गया।

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने इन 160 केसेज में से 7 मॉडल केसेज के उपचार के बारे में स्‍लाइड्स के जरिये विस्‍तार से जानकारी दी। जिसमें उन्‍होंने मरीज के उनके पास आने से लेकर इलाज करने तक की केस हिस्‍ट्री दिखायी। इन मरीजों की परिस्थितियों और मन:स्थितियों के बारे में उन्‍होंने बताया कि इनमें अतिमहत्‍वाकांक्षी, आक्रामक, अत्‍यधिक चिड़चिड़ापन, अपने कार्य के प्रति तुनुकमिजाजी, बहू के व्‍यवहार से तंग होकर अपने गुस्‍से को दबाकर रहने को मजबूर रहना, दुखी, अवसाद, जीवन के प्रति निराशावादी, कायरता, भावुकता, शीघ्र गुस्‍सा आना जैसे तमाम छोटे-बड़े लक्षणों को पाया गया। उन्‍होंने बताया कि सामान्‍य रूप से समझे जाने वाले ये लक्षण, प्र‍वृत्तियां, परिस्थितियां दवा के चयन में बहुत महत्‍व रखती हैं। इस प्रकार का दवा का चुनाव करने के बाद मरीजों को दवा दी गयी। चार्ट के जरिये डॉ गुप्‍ता ने दिखाया कि समय-समय पर इन मरीजों की सीरम यूरिया, सीरम क्रिटेनिन और ईजीएफआर की जांच कराते हुए मॉ‍नीटरिंग की गयी। रिसर्च में उपचार से हुए लाभ के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुप्‍ता ने बताया कि इन 160 मरीजों में 52 मरीजों को लाभ हुआ, जबकि 43 मरीजों की स्थिति जस की तस बनी रही लेकिन खराब भी नहीं हुई, जबकि 65 मरीज ऐसे थे जिन्‍हें होम्‍योपैथिक दवाओं से कोई लाभ नहीं मिला।

डॉ गुप्‍ता ने एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि को इंगित करते हुए बताया कि ये सभी मरीज किडनी फेल्‍योर की पहली से लेकर पांचवीं (प्राइमरी से एडवांस) स्‍टेज तक के थे, इनमें कई मरीज अपनी वर्तमान स्‍टेज से कम वाली स्‍टेज में वापस भी आ गये। इसके बारे में इस रिसर्च में डॉ गिरीश के सहयोगी के रूप में शामिल डॉ गौरांग गुप्ता ने ऐनीमेशनग्राफी के माध्‍यम से बहुत ही खूबसूरत तरीके से समझाया कि कितने-कितने मरीज लाभ पाकर वर्तमान खतरनाक स्‍टेज से नीचे कम खतरनाक स्‍टेज की ओर वापस आ गये। समारोह में उपस्थित सभी चिकित्‍सकों व अन्‍य लोगों ने डॉ गिरीश गुप्‍ता की इन उपलब्धियों की सराहना की। चर्चा में एक बात यह सामने आयी कि जहां डॉ शर्मा ने क्रॉनिक किडनी डिजीज के रिवर्स होने की संभावना को स्‍पष्‍ट नकारा वहीं डॉ गुप्‍ता ने इस पर किये गये अपनी सफल रिसर्च को प्रस्‍तुत करते हुए यह साबित किया कि होम्‍योपैथिक उपचार से क्रॉनिक किडनी डिजीज को कम (रिवर्स) किया जा सकता है।

 

कॉम्बिनेशन में उपलब्‍ध होम्‍योपैथिक दवाएं भी हैं कारगर : डॉ पीके शुक्‍ला

एक अन्‍य स्‍पीकर डॉ पीके शुक्‍ला ने अपने प्रेजेन्‍टेशन में जहां किडनी के रोगियों के लक्षणों, जांचों और उपचार की जानकारी दी। उन्‍होंने  साफगोई से यह भी कहा कि वह करीब 33 वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे हैं और शुरुआत से डॉ गुप्‍ता की कार्यशैली के अनुयायी हैं, लेकिन मैं उनकी तरह इलाज करने की संगठित कार्यशैली नहीं अपना पाया। उन्‍होंने कहा कि आज व्‍यवहारिकता यह है कि इलाज के लिए आने वाले मरीजों के रिकॉर्ड का रखरखाव एक छोटे से कमरे में क्‍लीनिक चला रहे होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक के लिए संभव नहीं है। इसके पीछे उन्‍होंने अधिकतर डॉक्‍टरों के पास संसाधनों का कम उपलब्‍ध होना, रोजी-रोटी चलाने की मजबूरी, के साथ ही मरीज द्वारा अपनी हिस्‍ट्री छिपाने की बात भी कही। उन्‍होंने कहा कि ऐलोपैथिक में जहां स्‍पेशियलिस्‍ट डॉक्‍टर के पास उसी रोग के मरीज जाते हैं, वहीं हम लोगों के पास सभी रोगों के मरीज आते हैं, ऐसे में इन अलग-अलग रोग के अनुसार रिकॉर्ड रखना अत्‍यन्‍त मुश्किल कार्य है। डॉ शुक्‍ला ने अलग-अलग रोगों के लिए कॉम्बिनेशन के रूप में उपलब्‍ध दवा को भी कारगर बताया।

यहां उपस्थित अनेक चिकित्‍सकों का कहना था कि अकेले चिकित्‍सक के लिए संगठित तरीके से रिकॉर्ड रखते हुए क्‍लीनिक का संचालन मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव नहीं है क्‍योंकि अगर असंभव होता तो डॉ गिरीश गुप्‍ता कैसे कर पाते, भले ही आज डॉ गुप्‍ता के पास एक स्‍थापित क्‍लीनिक और रिसर्च सेंटर है लेकिन डॉ गुप्‍ता ने भी अपनी क्‍लीनिक की शुरुआत एक छोटे से कमरे से की थी जिसमें उनकी पत्‍नी कम्‍पाउंडर का कार्य करके मदद करती थीं।

इस मौके पर भार्गव फाइटोलैब के जोनल सेल्‍स मैनेजर आशीष नागर और रीजनल सेल्‍स मैनेजर गौरव शर्मा ने उपस्थित चिकित्‍सकों का आभार जताते हुए उन्‍हें स्‍मृति चिन्‍ह देकर सम्‍मानित किया। उन्‍होंने कहा कि कम्‍पनी हमेशा से होम्‍योपै‍थी को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है, इसी दिशा में यह सीएमई आयोजित की गयी थी, यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। इस कार्यक्रम में नेशनल होम्‍योपैथिक कॉलेज की प्रोफेसर रह चुकी डॉ रेनू महेन्‍द्रा, डॉ दिलीप पाण्‍डेय सहित अनेक चिकित्‍सक उपस्थित रहे।

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