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यूनीक आभूषण के साथ ही ‘चलता-फि‍रता’ इतिहास पहने दिखे डॉ भट्टाचार्य

एसोसिएशन ऑफ प्‍लास्टिक सर्जन्‍स के अध्‍यक्षों की नेम प्‍लेट्स को शृंखला में पिरोकर बनायी गयी है माला 

 

लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे होटल गोल्‍डन ब्‍लॉसम में चल रही भारत के प्‍लास्टिक सर्जनों की एसोसिएशन की 53वीं राष्‍ट्रीय कॉन्‍फ्रेंस में की आयोजन समिति के अध्‍यक्ष डॉ सुरजीत भट्टाचार्य के गले में एक अनोखी माला पड़ी देखी। गौर से देखने पर पता चला कि माला में मोती के स्‍थान पर पिरोये गये तांबे की नेमप्‍लेट थी और इन नेमप्‍लेट्स पर दर्ज था एसोसिएशन के अध्‍यक्षों के नामों का इतिहास।

 

इस अनोखी माला में हर साल एक नेमप्‍लेट मोती के रूप में जुड़ जाता है। अभी डॉ भट्टाचार्य के गले में 53 नेम प्‍लेट्स की माला का हार लोगों का ध्‍यान आकर्षित कर रहा है। एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉ भट्टाचार्य ने बताया कि इस कॉन्‍फ्रेंस के आयोजन का उद्देश्‍य प्‍लास्टिक सर्जनों को नयी-नयी जानकारियों से अवगत कराने के साथ-साथ लोगों में जागरूकता फैलाना भी हैं।

दिन-पर-दिन बढ़ता गया है प्‍लास्टिक सर्जन के कार्यों का दायरा

उन्‍होंने बताया कि हमारे विधा के नाम से हमारे कार्यों का विश्‍लेषण नहीं हो पाता है, उदाहरण के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, गुर्दा रोग विशेषज्ञ, हृदय रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ आदि से बोध होता है कि अमुक अंग के रोगों की विशेषज्ञता रखने वाला चिकित्‍सक है लेकिन प्‍लास्टिक सर्जरी से ऐसा कोई बोध नहीं होता है। वरिष्‍ठ प्‍लास्टिक सर्जन और आयो‍जन समिति के डॉ वैभव खन्‍ना ने हालांकि बताया कि चूंकि हमारा कार्य में शरीर की जरूरत के अनुसार शरीर के अलग-अलग भागों पर त्‍वचा को विभिन्‍न प्रकार से मोल्‍ड करना होता है इसीलिए इसे प्‍लास्टिक सर्जरी का नाम दिया गया है।  डॉ भट्टाचार्य ने बताया कि हमारे द्वारा किये जाने वाली चिकित्‍सा का दायरा समय के साथ बढ़ता गया है।

 

पहला किडनी ट्रांसप्‍लांट प्‍लास्टिक सर्जन ने ही किया था

 

उन्‍होंने बताया कि शुरुआत में प्‍लास्टिक सर्जन जन्‍मजात शारीरिक त्रुटियों और जलने के बाद घाव का इलाज करते थे। चूंकि घाव भरने के लिए प्‍लास्टिक सर्जन द्वारा अपनायी गयी विधि अलग प्रकार की विशेषता लिये होती है इसलिए इसके बाद जब गहरे घावों को भरने के लिए प्‍लास्टिक सर्जन का इस्‍तेमाल होने लगा। उन्‍होंने बताया कि इसी प्रकार 1965 से माइक्रोसर्जरी की शुरुआत हो गयी। उन्‍होंने बताया कि ऐसी सर्जरी जहां बहुत ही बारीकी से ऑपरेशन करना होता है, उसे प्‍लास्टिक सर्जन्‍स द्वारा अंजाम दिया जाने लगा। इसके बाद से दुर्घटनाओं में होने वाली अंगों की क्षति का इलाज, क्रेनियोफेशियल, कॉस्‍मेटिक विभिन्‍न प्रकार की सर्जरी प्‍लास्टिक सर्जनों द्वारा की जाने लगी। उन्‍होंने बताया कि प्‍लास्टिक सर्जरी की विविधता और इसका विस्तृत रूप देखते हुए ही वार्षिक कॉन्‍फ्रेंस को सात दिनों के लम्‍बे समय के लिए किया जाता है, ताकि विभिन्‍न सर्जरी के बारे में लाभपरक जानकारी दी जा सके। उन्‍होंने बताया कि शायद यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि विश्‍व में सबसे पहला किडनी ट्रांसप्‍लांट करने वाला विशेषज्ञ प्‍लास्टिक सर्जन ही था। उन्‍होंने बताया कि यह ट्रांसप्‍लांट 1954 में जोसफ एडवर्ड ने किया था तथा वे प्‍लास्टिक सर्जन ही थे।