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एमबीबीएस में बायोएथिक्‍स और तनाव प्रबंधन भी डॉक्‍टरी की पढ़ाई की तरह समझना जरूरी

केजीएमयू ने मनाया प्रथम डॉ एपीजे अब्दुल कलाम मेमोरियल सेलीब्रेशन

लखनऊ 15 अक्‍टूबर। चिकित्‍सा शिक्षा का कार्य अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि शिक्षकों को मरीज की चिकित्‍सा के साथ अपने छात्रों को पढ़ाने की और छात्रों को पढ़ने की जरूरत है। इसके साथ ही छात्रों को बायोएथिक्‍स, तनाव प्रबंधन को भी समझना डॉक्‍टरी की पढ़ाई की तरह ही जरूरी है। ये सभी चीजें उपचार के समय के वातावरण में अपने आपको ढालने के लिए सीखना बहुत जरूरी है।

 

यह बात मणिपुर एकेडमी ऑफ हायर एजूकेशन (एमएएचई) के कुलपति प्रो एच विनोद भाट ने किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के तत्‍वावधान में आयोजित पहले डॉ एपीजे अब्दुल कलाम मेमोरियल सेलीब्रेशन के अवसर पर मुख्‍य अतिथि के रूप में उपस्थित होकर अपने व्‍याख्‍यान में कही। आपको बता दें कि प्रो विनोद ने मणिपाल रीजन में मातृ और शिशु मृत्‍युदर को कम करने के लिए सफलतापूर्वक कार्य किया है। केजीएमयू के मेडिकल एजूकेशन विभाग द्वारा यह समारोह पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम की 87वीं जयंती पर केजीएमयू के साइंटिफि‍क कन्‍वेन्‍शन सेंटर में आज 15 अक्‍टूबर को आयोजित किया गया।

 

कार्यक्रम के आयोजन में मुख्‍य भूमिका निभाने वाली केजीएमयू के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट की मुखिया प्रोफेसर शैली अवस्थी ने कहा कि डॉ कलाम न केवल एक महान वैज्ञानिक और नेता थे, बल्कि भारत के महानतम शिक्षकों में से एक थे, जिन्होंने अपने आप को उदाहरण के रूप में प्रस्‍तुत किया था। उन्‍होंने  कार्यक्रम में लगे डॉ कलाम की फोटो के बारे में भी बताया कि यह फोटो 2009 में डॉ कलाम के इसी हॉल में कार्यक्रम के दौरान की है। उन्होंने बताया कि इस  आयो‍जन में केजीएमयू और एमएएचई के बीच में चिकित्‍सा शिक्षा को लेकर एमओयू पर हस्‍ताक्षर किये गये।

 

इस मौके पर विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उपस्थित एकेटीयू के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक ने कहा कि उन्होंने महसूस किया कि तकनीकी और चिकित्सा संस्थानों के बीच सहयोग पूरे दौर के विकास के लिए जरूरी है। इस मौके पर विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ कलाम के करीबी रहे एकेटीयू के प्रोफेसर सृजन पाल सिंह ने कहा कि डॉ कलाम का मानना ​​था कि व्‍यक्ति को काबिल बनने के साथ-साथ एक अच्छा इंसान भी बनना चाहिये। उन्होंने कहा कि डॉ कलाम ने डॉक्टरों के लिए “दर्द को दूर करने के लिए अपने दिमाग का उपयोग” के आदर्श वाक्य की दृढ़ता से वकालत की, और महसूस किया कि डॉक्टरों को दर्द को दूर करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए। इस मौके पर, कुलपति केजीएमयू, प्रोफेसर एमएलबी भट्ट ने बताया कि कलाम के जन्मदिन पर चिकित्सा शिक्षा में सुधार और नवाचारों पर छात्रों द्वारा संकाय द्वारा 6 प्रस्तुतियों और 6 छात्रों को सम्मानित किया जा रहा था।

 

संकाय प्रस्तुतियों में प्रो अपुल गोयल और  प्रोफेसर अंजू अग्रवाल ने अपने विचार प्रस्‍तुत किये। प्रो अंजू अग्रवाल ने शिक्षक की अवधारणा को छात्रों के “पक्ष द्वारा एक गाइड” के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि रोगी संतुष्टि और पारस्परिक बातचीत में सुधार के लिए छात्रों को सॉफ्ट स्किल और सम्मानजनक देखभाल की शिक्षा दी जानी चाहिए। प्रोफेसर अपुल गोयल ने कहा कि स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों में अक्सर किसी विषय की गहरी शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण सोच की क्षमता की कमी होती है। उनका शोध इस कमी को पूरी करने में मदद करेगा।

मेडिकल छात्रों ने भी रखे अपने सुझाव

कार्यक्रम में इसके अतिरिक्‍त इंटर्नशिप कर रहे ध्रुव कपूर के अलावा एमबीबीएस के पांच अन्‍य स्‍टूडेंट ने भी अपने-अपने विचार रखे। इंटर्न ध्रुव कपूर ने कहा कि  चिकित्‍सा शिक्षा को रिफॉर्म करते हुए इस तरह का ज्ञान देना चाहिये जिसमें याद करने के साथ ही खुद से समझने का कौशल विकसित हो, क्‍योंकि डॉक्‍टरी एक सतत चलने वाली शिक्षा है, ऐसे में शुरुआत से ही इस तरह की आदत डॉक्‍टर बनने के बाद भी सहायता देगी। एमबीबीएस फाइनल के छात्र अर्पित गर्ग ने अध्‍यापक और प्रशिक्षक की भूमिका को बराबर का महत्‍व देने का सुझाव दिया। उनका कहना था कि ऐसी व्‍यवस्‍था होनी चाहिये जिससे इनका छात्रों के साथ पर्सनल ए्प्रोच बनी रहे। एमबीबीएस सेकंड ईयर के शोभित नयन ने कहा कि फीड बैक लेते रहना जरूरी है। फीडबैक एक ऐसा माध्‍यम है जो टीचिंग और लर्निंग में वृद्धि कर सकता है। सेकंड इयर की ही छात्रा अरजुमंद फारुकी ने शिक्षण और मूल्यांकन के लिए फ्लिप कक्षाओं की अवधारणा की शुरुआत पर जोर देते हुए कहा कि कक्षाओं में ऐसी व्‍यवस्‍था होनी चाहिये जिसमें सभी माध्‍यम हो मौजूद हों क्‍योंकि क्‍लीनिकल ज्ञान का पढ़ाई के दौरान बहुत महत्‍व होता है। थर्ड इयर के शशांक गुप्‍ता ने कौशल वृद्धि पर जोर देते हुए कहा कि इसकी शुरुआत पढ़ाई के दौरान जल्‍दी ही शुरुआत के वर्षों में कर दी जानी चाहिये। सेकंड इयर की कोकिल तिवारी का कहना था कि रिसर्च सेल को शोध और जागरूकता के लिए अंडरग्रेजुएट को भी प्रेरित करना चाहिये।