संजय गांधी पीजीआई में कार्यशाला का आयोजन
लखनऊ। नवजात शिशुओं में सांस लेने में कठिनाई होने पर सीपैप मशीन से सांस देने की तकनीक अत्यंत कारगर है, इसकी सबसे खास बात यह है कि नॉन इन्वेसिव होने के कारण जहां यह वेंटीलेटर की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है वहीं इसमें खर्च भी कम आता है।
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के नियोनेटोलॉजी विभाग और लखनऊ नियोनैटोलॉजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में संजय गांधी पीजीआई में रविवार को आयोजित की गयी कार्यशाला के बारे में यह जानकारी देते हुए बाल रोग विशेषज्ञ व लखनऊ नियोनैटोलॉजी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ संजय निरंजन ने बताया कि यह बहुत खुशी की बात है कि एसजीपीजीआई के टेलीमेडिसिन सभागार में continuous positive airway pressure (CPAP) सीपैप पर इस तरह की कार्यशाला का पहली बार आयोजन किया गया। उन्होंने बताया कि बहुत बार अनेक कारणों से नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है, ऐसे में नियोनैटल इन्टेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में भर्ती कर उसे तुरंत वेंटीलेटर पर रखना पड़ता है जिसमें ट्रैकिया में ट्यूब डालकर सांस दी जाती है। लेकिन सीपैप मशीन से बिना किसी ट्यूब को अंदर डाले नाक की सहायता से ही हल्के प्रेशर से ऑक्सीजन या हवा दी जाती है। उन्होंने बताया कि हल्के प्रेशर से लगातार दबाव बनाने से यह होता है कि फेफड़े एक बार फूलने के बाद वापस पिचकते नहीं हैं, जिससे सांस लेना आसान हो जाता है।
उन्होंने बताया कि सीपैप मशीन से सांस देने की एक खासियत यह भी है कि इसे शिशु के जन्म के तुरंत बाद भी प्रसव कक्ष में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस सीपैप विधि से सांस देने में आमतौर पर वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ती है और अगर पड़ती भी है तो बहुत कम समय के लिए पड़ती है। इस पर आने वाले खर्च के बारे में उन्होंने बताया कि इसकी लागत वेंटीलेटर के मुकाबले सिर्फ 10 से 20 फीसदी है। डॉ निरंजन ने बताया कि इस प्रणाली में दवा की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
डॉ संजय निरंजन ने एसजीपीजीआईएमएस के नियोनेटोलॉजी विभाग द्वारा और अधिक कार्यशालाओं की आवश्यकता पर जोर दिया, और यह भी अनुरोध किया कि अगर एलएनएफ की मदद से प्रशिक्षण के लिए कैलेंडर जारी रखा जा सके तो अच्छा होगा।
संजय गांधी पीजीआई के प्रोफेसर और इस कार्यशाला के आयोजन सचिव प्रो गिरीश गुप्ता ने बताया कि शिशुओं में प्रभावित होने वाली सबसे आम प्रणाली श्वसन प्रणाली है। इसके लिए प्रीमेच्योरिटी, संक्रमण, जन्मजात दोष और मेटाबोलिक विकार जैसे कारण जिम्मेदार होते हैं। ऐसे में श्वसन संकट से निपटने के लिए नवजात शिशुओं को ऑक्सीजन और वेंटिलेटरी समर्थन की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की आवश्यकता है कि सभी नवजात शिशु देखभाल करने चिकित्सकों को सीपैप जैसी नॉनइनवेसिव पद्धति का इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि यह कम जोखिम भरी है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष स्वयं विभाग ने पहले से ही 150 से अधिक डॉक्टरों को महत्वपूर्ण गहन देखभाल प्रक्रियाओं जैसे बेसिक ऑफ मैकेनिकल वेंटिलेशन और सीपीएपी पर प्रशिक्षित किया है।
कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान संस्थान के निदेशक प्रो राकेश कपूर ने इस विधि को सीखने की आवश्यकता पर जोर दिया और प्रोत्साहित किया कि सभी प्रतिनिधियों को समय-समय पर और सक्रिय रूप से संस्थान के नियोनटोलॉजी विभाग से विषय ज्ञान और कौशल प्राप्त करना चाहिए।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, प्रोफेसर अमित अग्रवाल ने कहा कि नवजात देखभाल विभाग नवजात देखभाल में तेजी से प्रगति कर रहा है और यूपी राज्य के लिए एक नोडल हब के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों से चिकित्सकों ने भाग लिया। कार्यशाला में डॉ कीर्ति नरंजे, डॉ अनीता सिंह, डॉ आकाश पंडिता, डॉ वसंथन टी विशेष रूप से शामिल रहे।