ग्लोबलाइजेशन से नशे के इलाज में जहां फायदा हुआ वहीं नशेबाजी के नये तरीकों के आदान-प्रदान से नुकसान भी हुआ
लखनऊ। भारत में मानसिक रोगी बढ़ रहे हैं। वजह कई हैं, मगर युवाओं में नशा प्रवृत्ति बढ़ने से स्थिति चिंतनीय है। नशे की वजह से मानसिक रोगी बने मरीजों के मुकम्मल इलाज के लिए पर्याप्त संसाधन नही हैं। मानसिक रोगी की वजह से मरीज के परिवार प्रभावित होता है साथ ही सामाजिक और देश की आर्थिक स्थिति पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है क्येांकि रोगियों की योग्यता और क्षमता का लाभ देश व समाज को नही मिलता है। यह जानकारी शनिवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में अधिवेशन के अंतिम दिन केजीएमयू के डॉ.आदर्श त्रिपाठी ने दी।
इंडियन मनोरोग सोसाइटी के 71 वें चार दिवसीय राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन के तीसरे दिन डॉ.त्रिपाठी ने बताया कि दुनिया डिजिटल हो रही है, कुछ ही क्षणों में किसी भी देश की घटना और जानकारियों से रूबरू होना आसान हो चुका है। ग्लोबलाइजेशन की वजह से एक दूसरे की लाइफ स्टाइल के साथ ही नशा करने के तरीके भी अपना रहे हैं लोग। शादी, पार्टी और मीटिंग आदि में नशा करने की स्वीकार्यता सामान्य हो रही है। जिसकी वजह से नशा करने का एक कल्चर बनता जा रहा है, और समस्याएं बढ़ रही हैं जबकि पूर्व क्षेत्रीय आधार पर नशा करने का कल्चर था। जिसकी वजह से क्षेत्रीय स्तर पर शरीर खुद को व्यवस्थित करने में माहिर होता था। ग्लोबलाइजेशन की वजह से किसी भी संक्रामक रोग या जटिल बीमारियों का इलाज करना आसान भी हुआ है मगर नुकसान भी बढ़े हैं। क्योंकि नशा करने के तरीकों का आदान-प्रदान खूब हो रहा है और युवा वर्ग में जल्द ही नशा प्रवृत्ति बढ़ रही है। नशा शुरू करने वालों में 25 से 30 प्रतिशत युवा, नशे के आदी हो जाते हैं, वे अवसाद (डिप्रेशन)की गिरफ्त में आ जाते हैं। कुछ दिनो बाद उनकी दिनचर्या प्रभावित हो जाती है और नशे के लिए उनकी प्रतिभा व कार्य क्षमता का लाभ परिवार व देश को मिलना बंद हो जाता है, जिसकी वजह से परिवार ही नहीं देश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि आने वाले 30-40 साल बाद पूरे विश्व का एक जैसा कल्चर होगा, क्योंकि सभी की इकनॉमी पालिसी और लाइफ स्टाइल एक जैसी हो रही है। कार्यशाला में चंडीगढ़ के डॉ.अजीत अवस्थी, डॉ.विवेक बेनेगल बंगलौर और यूएसए के डॉ.अश्विन पाटकर समेत सैकड़ो विशेषज्ञ मौजूद रहे ।