-ब्रजेश पाठक, डॉ नीरज बोरा ने लोगों से कहा जागरूक रहकर बचायें आंखों की रोशनी


सेहत टाइम्स
लखनऊ। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और लखनऊ ऑप्थल्मालॉजिस्ट सोसाइटी (एलओएस) के संयुुक्त तत्वावधान में विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 9 मार्च से 15 मार्च तक मनाया जा रहा है। इसी के तहत 9 मार्च को गोमती नगर स्थित जनेश्वर मिश्र पार्क में प्रातः 7:00 बजे ग्लूकोमा जागरूकता कैंप का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में लखनऊ उत्तर के विधायक डॉ नीरज बोरा उपस्थित रहे। ब्रजेश पाठक ने इस मौके पर लोगों को ग्लूकोमा बीमारी से बचने की सलाह देते हुए इसके प्रति सचेत रहने की अपील की।
डॉ नीरज बोरा ने कहा कि यह बीमारी 40 वर्ष की आयु के बाद होती है, उन्होंने कहा कि समय-समय पर अपनी आंखों का चेकअप कराते रहना चाहिए। आईएमए लखनऊ के सचिव डॉ संजय सक्सेना ने कहा कि ग्लूकोमा बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की आवश्यकता है जिससे कि प्रारंभिक स्तर पर ही इस बीमारी को पकड़ लिया जाए और लोगों की आंखों की रोशनी जाने से बचायी जा सके। उन्होंने कहा कि काला मोतिया आंखों की बीमारियों का एक समूह है जो आंखों की नस को खराब कर देता है।

एलओएस के उपाध्यक्ष डॉ भारतेंदु अग्रवाल ने कहा कि शुरू की अवस्था में काला मोतिया के कुछ या कोई भी लक्षण नहीं दिखते और धीरे-धीरे बिना चेतावनी के दृष्टि छिन जाती है। उन्होंने कहा कि दरअसल अधिकतर लोग जो इसके शिकार हैं वह इससे अनजान हैं, यदि पता न लगे या इलाज न हो तो काला मोतिया से आंख की रोशनी जा सकती है उन्होंने कहा कि काला मोतिया का सबसे बड़ा कारण होता है आंखों के अंदरूनी दबाव में वृद्धि। एक स्वस्थ आंख से द्रव्य निकलता है जिसे एक्वियस ह्यूमर Aqueous Humour कहते हैं यह सामान्य गति से बाहर निकल जाता है लेकिन जब आंखों के अंदर उच्च दबाव होता है तब इसे निकालने वाली प्रणाली में रुकावट आ जाती है और द्रव्य सामान्य गति से बाहर नहीं निकल पाता, यह बड़ा हुआ दबाव ऑप्टिक नर्व को धकेलता है जिससे धीरे-धीरे नुकसान होने लगता है और इसके नतीजा में दृष्टि कम होने लगती है जो सामान्य तौर पर परिधि या बाह्य दृष्टि से शुरू होती है। उन्होंने कहा उच्च नेत्र दबाव का संबंध अक्सर नर्व फाइबर को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाने से होता है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में उच्च नेत्र दबाव (आईओपी) एक अकेला कारण है जिसका इलाज हो सकता है उन्होंने बताया कि काला मोतिया से जिन लोगों को ज्यादा खतरा है, उनमें वे लोग जिनके परिवार में किसी को काला मोतिया हो, 40 वर्ष से अधिक आयु वाले लोग, मधुमेह से पीड़ित लोग, जिन लोगों ने काफी समय तक स्टेरॉयड लिए हों, जिन लोगों की आंखों में चोट लगी हो, शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि आंखों के डॉक्टर से आंखों की व्यापक जांच करने से काला मोतिया का पता लगाया जा सकता है। नेत्रों की संपूर्ण जांच में आंखों का दबाव और आंखों का ड्रेनेज कोण व ऑप्टिक नर्व की जांच होती है, इसके साथ-साथ हर आंख के दृष्टि क्षेत्र परीक्षण से परिधि दृष्टि का पता चल सकता है। इसके इलाज के बारे में उन्होंने बताया कि उच्च नेत्र दबाव वर्तमान में एक अकेला कारण है जिसका इलाज हो सकता है, ऐसी आई डॉप्स जो उच्च नेत्र दबाव को कम करती हैं, का इस्तेमाल कर इसे दबाव को लंबे समय तक नियंत्रण में रखें। कई मामलों में सर्जरी से लाभ मिलता है। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि निर्देशानुसार मेडिकेशन लिया जाए, आंखों के डॉक्टर से समय-समय पर जांच कराते रहें।
इस अवसर पर एलओएस के अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर श्रीवास्तव ने बताया कि हम वैलनेस अभियान के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य से जुड़े इस प्रकार के कार्यक्रम करते रहेंगे, एलओएस के सचिव डॉ अमित अग्रवाल एवं डॉ संजय सक्सेना ने कहा कि लोगों में वैलनेस की अवधारणा को और मजबूत करने के लिए आई एम ए लगातार प्रयासरत है। कार्यक्रम में आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता, डॉक्टर श्वेता श्रीवास्तव भी उपस्थित रहे।
चुपचाप नजर चुराने वाली बीमारी है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा, जिसे आम भाषा में काला मोतिया या संबलबाई कहा जाता है, एक गंभीर नेत्र रोग है, जो धीरे-धीरे आँखों की रोशनी को प्रभावित करता है। यह साइलेंट थीफ ऑफ विजन यानी “चुपचाप नजर चुराने वाली बीमारी” कहलाती है, क्योंकि अधिकतर मामलों में शुरुआती दौर में कोई लक्षण नजर नहीं आते। जब तक मरीज को अहसास होता है, तब तक दृष्टि हानि हो चुकी होती है, जो अपरिवर्तनीय होती है। इसलिए, समय पर इसकी पहचान और इलाज बेहद जरूरी है।


ग्लॉकोमा से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है नियमित नेत्र परीक्षण। 40 वर्ष की आयु के बाद हर व्यक्ति को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच करानी चाहिए, विशेष रूप से जिन्हें डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या ग्लूकोमा का पारिवारिक इतिहास हो।
आज की यह वॉक इसी उद्देश्य से आयोजित की गई है—ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बीमारी के बारे में जागरूक हों और समय रहते आवश्यक कदम उठाएं। जागरूकता ही इस बीमारी से बचाव का सबसे बड़ा उपाय है।
भारत में लगभग 1.2 करोड़ (12 मिलियन) लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हैं।
ग्लूकोमा भारत में अंधत्व का तीसरा प्रमुख कारण है, जो मोतियाबिंद (cataract) और अपवर्तक दोष (refractive error) के बाद आता है।
भारत में ग्लूकोमा के 40% से 90% तक मामले बिना पहचाने (undiagnosed) रह जाते हैं।
इस बीमारी के प्रति अज्ञानता और समय पर पहचान की कमी के कारण अंधत्व के मामलों में वृद्धि हो रही है।
जल्दी पहचान और उपचार से दृष्टिहानि (vision loss) को रोका या धीमा किया जा सकता है।
ग्लूकोमा के प्रति जागरूकता और शिक्षा इसका समय पर निदान और प्रबंधन करने में अहम भूमिका निभाती है।
काला मोतिया का इलाज और जांच सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त उपलब्ध है आयुष्मान भारत कार्ड योजना के द्वारा भी काला मोतिया या संबलबाई की जांच व इलाज मुफ्त में कराई जा सकती है।
