-प्रतिक्रिया में बोलीं, देश के लिए और भी अधिक योगदान देने की प्रेरणा देगा यह सम्मान
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) की कुलपति प्रो सोनिया नित्यानंद को चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है।
प्रो सोनिया नित्यानंद को पद्मश्री दिये जाने की खबर आते ही केजीएमयू में खुशी की लहर दौड़ गयी। चारों तरफ से बधाइयों का तांता लग गया। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने की घोषणा पर प्रो सोनिया ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि मेरे पिता डॉ. नित्य आनंद (पद्मश्री पुरस्कार विजेता 2012) मेरे आदर्श रहे हैं और उन्होंने मुझे अपने देश के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रेरित किया। वे विभाजन के दौरान तत्कालीन पश्चिमी पंजाब से चले आए थे और अपने देश की सेवा करने और स्वतंत्र भारत के विकास में योगदान देने के संकल्प के साथ एक स्वतंत्र देश में कदम रखते हुए बहुत खुश थे। इसी माहौल में मेरी परवरिश हुई।
उन्होंने बताया है कि स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट से पीएचडी पूरी करने के बाद मैं अपने साथी देशवासियों की सेवा करने के लिए भारत वापस आयी और भारत सरकार ने मेरे कठिन परिश्रम और देश के प्रति सेवा को मान्यता दी और मुझे यह सम्मान दिया, जो मुझे अपने देश के लिए और भी अधिक योगदान करने के लिए प्रेरित करेगा। मैं इस पुरस्कार से अभिभूत हूं और मेरे काम के प्रति निरंतर समर्थन के लिए यूपी की राज्यपाल और मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना चाहती हूं।
डॉ. सोनिया नित्यानंद के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए केजीएमयू के मीडिया प्रवक्ता डॉ सुधीर सिंह ने बताया है कि प्रो सोनिया नित्यानंद एक प्रख्यात क्लिनिकल हेमेटोलॉजिस्ट और मेडिकल साइंटिस्ट हैं, जिनकी शैक्षणिक योग्यता एम.डी., पीएच.डी. है। वह देश में क्लिनिकल हेमेटोलॉजी और बोन मैरो/हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (बीएमटी/एचएससीटी) विशेषता स्थापित करने वाली अग्रणी महिलाओं में से एक हैं और भारत में पहली महिला बोन मैरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ हैं। वह भारत में स्टेम सेल अनुसंधान में भी अग्रणी हैं।
06 सितंबर, 1962 को जन्मी डॉ. सोनिया नित्यानंद ने 1986 में एम.बी.बी.एस. और 1989 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमसी), लखनऊ से एम.डी. (मेडिसिन) किया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ मेडिकल छात्र के लिए चांसलर मेडल और सर्वश्रेष्ठ एम.डी. छात्र के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
उन्होंने 1997 में स्वीडन के स्टॉकहोम में नोबल पुरस्कार प्रदान करने वाले कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के मेडिसिन विभाग के इम्यूनोलॉजी-हेमेटोलॉजी सेक्शन से पीएचडी की। 1990 में वह केजीएमसी में मेडिसिन की सहायक प्रोफेसर के रूप में शामिल हुईं और उसके बाद 1993 में संजय गांधी पोस्ट-ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस), लखनऊ में क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी की सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुईं और उन्हें हेमेटोलॉजी/बीएमटी यूनिट विकसित करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया।
वर्ष 2003 में उन्हें हेमटोलॉजी के एक नव निर्मित विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्होंने एसजीपीजीआईएमएस में स्टेम सेल रिसर्च सेंटर की स्थापना की और उसका नेतृत्व भी किया। इसके अतिरिक्त एसजीपीजीआईएमएस में कार्यकारी रजिस्ट्रार और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के रूप में भी काम किया। 2021 में उन्हें डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरएमएलआईएमएस), लखनऊ का निदेशक नियुक्त किया गया। पिछले अगस्त 2023 से वह किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ की कुलपति हैं।
1993 में एसजीपीजीआई में शामिल होने के तुरंत बाद, डॉ. नित्यानंद ने रक्त कैंसर सहित रक्त विकारों वाले रोगियों के उपचार के लिए एक हेमेटोलॉजी यूनिट विकसित की। उस समय भारत में यह सुपर-स्पेशलिटी सिर्फ़ कुछ विशेषज्ञों के साथ विकसित हो रही थी। उन्होंने अकेले ही 1999 में एसजीपीजीआई में बीएमटी/एचएससीटी कार्यक्रम की स्थापना की, जो देश में सिर्फ़ 2 अन्य केंद्रों में उपलब्ध था।
डॉ. नित्यानंद के निरंतर प्रयासों से 2003 में हेमटोलॉजी का एक पूर्ण विभाग बनाया गया और 41 साल की छोटी उम्र में उन्हें विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर नियुक्त किया गया। इसके बाद उनके नेतृत्व में अत्याधुनिक नैदानिक बुनियादी ढांचे और उन्नत नैदानिक प्रयोगशालाओं के साथ हेमटोलॉजी और बीएमटी के लिए एक केंद्र की स्थापना की गई। उन्होंने क्लिनिकल हेमटोलॉजी में डीएम, पीएचडी कार्यक्रम, हेमेटो-ऑन्कोलॉजी, लैब-हेमटोलॉजी और पीडियाट्रिक-हेमटोलॉजी में पोस्ट-डॉक्टरल सर्टिफिकेट कोर्स और बीएमटी में फेलोशिप शुरू की। उन्होंने क्लिनिकल और प्रयोगशाला हेमटोलॉजी दोनों में विभाग में कई शोध कार्यक्रम भी शुरू किए।
डॉ. नित्यानंद भारत में स्टेम सेल अनुसंधान के अग्रदूतों में से एक हैं। वर्ष 2005 की शुरुआत में उन्होंने भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तत्वावधान में एसजीपीजीआई में स्टेम सेल अनुसंधान सुविधा की स्थापना की। इसके बाद उन्होंने विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे के साथ एक पूर्ण स्टेम सेल अनुसंधान केंद्र की स्थापना की, जिसमें अच्छी विनिर्माण प्रयोगशालाएं शामिल हैं। यह केंद्र अत्याधुनिक बुनियादी अनुसंधान और बहु-केंद्रित नैदानिक परीक्षणों दोनों में लगा हुआ है।
डॉ. नित्यानंद कई सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल की प्रेरणा से उन्होंने वंचित किशोरियों के लिए राज्यव्यापी गर्भाशय ग्रीवा कैंसर जागरूकता और मुफ्त टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया है। उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य में थैलेसीमिया की घटनाओं को कम करने के लक्ष्य के साथ थैलेसीमिया वाहकों की शीघ्र पहचान और परामर्श के लिए एनएचएम वित्त पोषित परियोजनाएं शुरू कीं। इसके साथ ही हीमोफीलिया के लिए राज्य नोडल अधिकारी के रूप में भी उन्होंने उत्तर प्रदेश में हीमोफीलिया सेवाओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आरएमएलआईएमएस के निदेशक के रूप में डॉ. नित्यानंद ने संस्थान की रोगी देखभाल सेवाओं को व्यवस्थित किया, जिसके परिणामस्वरूप इसे पूर्ण एनएबीएच मान्यता मिली, आरएमएलआईएमएस यह सम्मान पाने वाला राज्य का पहला संस्थान है।
डॉ. नित्यानंद को कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। खास तौर पर उन्हें यंग साइंटिस्ट इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी अवॉर्ड, डीबीटी नेशनल बायोसाइंसेज करियर अवॉर्ड, नई दिल्ली और प्रतिष्ठित स्वीडिश इंस्टीट्यूट स्कॉलरशिप मिल चुकी है। वह उन कुछ चिकित्सकों में से एक हैं जिन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इलाहाबाद और इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस, बैंगलोर का फेलो चुना गया है।