-रक्तदान करने में सक्षम लोगों में सिर्फ ढाई प्रतिशत ही करते हैं रक्तदान

सेहत टाइम्स
लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसरर डॉ. पल्लवी रानी ने कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान के लिए लोगों को आगे आना चाहिये, क्योंकि वर्तमान में हमारे देश में प्रतिवर्ष करीब 5 मिलियन यूनिट ब्लड की कमी रह जाती है। ब्लड कैंसर, अन्य कैंसर, लिवर फेलियर, रीनल फेलियर, सर्जरी, एक्सीडेंट, छोटे बच्चे, स्त्री रोग आदि में ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती ही है, उन्होंने कहा कि मजबूरी की अपेक्षा स्वैच्छिक रूप से दान किया गया रक्त ज्यादा अच्छा माना जाता है।
डॉ पल्लवी ने यह बात 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 128वीं जयंती के अवसर पर नव वर्ष चेतना समिति के तत्वावधान में आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान शिविर के मौके पर कही। उन्होंने बताया कि स्थिति यह है कि भर्ती मरीज के रिश्तेदार भी अपने मरीज के लिए रक्त की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाते हैं, ऐसे में स्वेच्छिक रक्तदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। स्वेच्छा से रक्त देने वाले खुद से मोटीवेटेड होते हैं, यानी उन पर रक्त देने का कोई दबाव नहीं रहता है, ऐसे में इनका खून सर्वाधिक सुरक्षित माना जाता है। जबकि अगर किसी मरीज के रिश्तेदार पर ज्यादा दबाव बनाया जाये कि आपको अगर दो यूनिट ब्लड चाहिये तो आपको दो डोनर को लाना होगा, ऐसे में हो सकता है कि दबाव में आकर व्यक्ति खून देते समय कोई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी छिपा ले जो रक्तदान के लिए महत्वपूर्ण हो।
क्या हैं भ्रांतियां
अगर किसी को ब्लड शुगर है और उसकी शुगर कंट्रोल है, पिछले चार माह से दवाएं नहीं बदली हैं तो ब्लड दे सकता है, लेकिन अगर मरीज इंसुलिन ले रहा है तो वह ब्लड डोनेट नहीं कर सकता है। अगर हाई ब्लड प्रेशर है कंट्र्रोल है, चार माह से दवा नहीं बदली है तो रक्तदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि थायरॉयड के मरीज भी रक्तदान नहीं कर सकते हैं, हालांकि इसमें महत्वपूर्ण यह है कि थायरॉयड का मूल कारण क्या है, उसके आधार पर तय होता है लेकिन चूंकि इसे जानने का टेस्ट बहुत महंगा है इसलिए लोग यह टेस्ट नहीं कराते हैं, वे यह सोचते हैं कि दवा खानी ही है, तो कारण जानने का क्या लाभ, ऐसे में वे टेस्ट नहीं कराते हैं, जिससे कारण ज्ञात नहीं हो पाता, इसीलिए थायरॉयड वाले लोगों का भी ब्लड नहीं लिया जाता है।
 
 

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