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स्पेशल बच्चों की थैरेपी अब और आसान

-अत्याधुनिक और आकर्षक उपकरणों के साथ फेदर्स ने किया सेंटर का विस्तार

-बच्चों और वयस्कों के लिए ऑकुपेशनल, स्पीच थैरेपी आदि की अलग-अलग व्यवस्था

सेहत टाइम्स

लखनऊ। अलीगंज में गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के भवन में वर्ष 2022 में स्थापित हुआ मानसिक स्वास्थ्य केंद्र-फेदर्स FEATHERS अब उसी भवन की पहली मंजिल पर ढाई हजार स्क्वॉयर फीट में विस्तारित कर दिया गया है। मोटे-मोटे गद्दों वाले फर्श पर विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे झूलों से सुसज्जित सेंटर पर स्पेशल बच्चे थैरेपिस्ट की देखरेख में खेल-खेल में बहुत कुछ सीखते दिखे। एक बच्चा रंग बिरंगे शूट, जिस पर सीढ़ी-रोलर और प्लैट पट्टियों से चढ़ने की सुविधा है, पर चढ़ रहा था, फिसल रहा था, दो-तीन बार में वह ऊपर तक चढ़ने में सफल हो गया, इसके बाद वह वहां बने रस्सियों के जाल पर चढ़ने लगा। पूछने पर पता चला कि इस बच्चे को खेल-खेल में ही ऑक्यूपेशनल थैरेपी दी जा रही थी। ‘फेदर्स’ की संस्थापक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता अपने कमरे में एक मरीज की काउंसिलिंग कर रही थीं। काउंसिलिंग सेशन की गम्भीरता को समझते हुए हमने सावनी गुप्ता से बात करने के लिए काउंसिलिंग सेशन समाप्त होने का इंतजार किया।

सेंटर के विस्तार को लेकर ‘सेहत टाइम्स’ ने सावनी गुप्ता से बात की। हमारे यह पूछने पर कि सेंटर के विस्तार के बाद अब नयापन क्या है, क्या बदलाव हुआ है। इसका जवाब देते हुए सावनी गुप्ता ने बताया कि मुख्य बदलावों में अब बच्चों और बड़ों दोनों के ट्रीटमेंट देने का सेटअप अलग-अलग कर दिया गया है। बच्चों के सेटअप में ऑक्यूपेशनल थैरेपी, सेंसरिंग इंटीग्रेशन, स्पीच थैरेपी, स्पेशल एजूकेशन, ऑडियोलॉजी रूम के साथ ही डे केयर और डे क्रेच की सेवाएं शुरू की हैं। बच्चों की अन्य थैरेपी में साइकोमैटिक एसेसमेंट, बिहैवियर थैरेपी के साथ ही ऑटिज्म के बच्चों के लिए एप्लाइड बिहैवियर एनालिसिस जिसे एबीएन कहा जाता है, भी दी जा रही है। इसके अतिरिक्त सप्ताह में एक दिन बच्चों की ग्रुप थैरेपी, प्ले थैरेपी भी शुरू की है। प्ले थैरेपी के लिए अलग रूम है जिसमें बैक यार्ड है, सेंसरिंग यानी अहसास से सम्बन्धित सामान हैं।

स्पेशल एजूकेशन के बारे में सावनी ने बताया कि बच्चा जब नॉर्मल कोर्स में आने लगता है तब स्पेशल एजूकेशन प्रारम्भ की जाती है। इसके तहत रोजाना के कार्यों को अच्छे ढंग से करने के लिए इस एजूकेशन को दिया जाता है या लर्निंग डिसेबिलिटी के बच्चे होते हैं उनमें इस एजूकेशन को इस्तेमाल किया जाता है । बिहैवियरल मॉडीफिकेशन थैरेपी प्रत्येक बच्चे की जरूरत के अनुसार दी जाती है। जैसे ऑटिज्म, हाईपरएकि्टव बच्चे हैं, उनमें बिहैवियरल थैरेपी की ज्यादा जरूरत होती है। जो बच्चे इमोशनल दिक्कतों से ज्यादा जूझते हैं उसके लिए हम आर्ट और प्ले थैरेपी को इस्तेमाल करते हैं। जो बच्चे भावनाओं को नहीं समझ पाते हैं, या अपने अंदर की भावनाओं को प्रकट नहीं कर पाते हैं, अपने परिवार में हुए आघात के चलते अपनी बात क्लीयर नहीं कर पाते हैं, उनमें हम आर्ट थैरेपी का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बच्चा भावनाओं को प्रकट करना, भावनाओं को समझना सीखें।

सावनी ने बताया कि नये सेटअप में स्पीच थैरेपी के दो कमरे हैं, एक वयस्कों के लिए तथा दूसरा बच्चों के लिए, इसी प्रकार ऑडियोलॉजी का रूम, जो साउंड प्रूफ होता है, इसमें जिन बच्चों को सुनने से सम्बन्धित दिक्कतें होती हैं, जिन्हें हियरिंग एड, कॉकलियर इम्प्लांट की जरूरत होती है, उनकी टेसि्टंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है, या फिर जो बच्चे आवाज को लेकर बहुत सेंसिटिव होते हैं, तो उनको स्पीच थैरेपी का कार्य भी हम इसी साउंड प्रूफ कमरे में कराते हैं।

सीसीटीवी से बच्चे की थैरेपी देखने की अभिभावकों को सुविधा

सावनी ने बताया कि कई माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे को कैसे थैरेपी करायी जा रही है, ऐसे में बच्चे के साथ थैरेपी के समय मौजूद रहने में कई बार यह समस्या आती है कि बच्चा थैरेपी को आसानी से नहीं करता है, उसका ध्यान साथ में आये माता-​पिता पर लगा रहता है। इसलिए सेंटर पर सीसीटीवी की सुविधा भी दी गयी है जिससे अभिभावक अपने बच्चे की एकि्टविटी देख सकते हैं।

काउंसिलिंग करतीं सावनी गुप्ता

सावनी बताती हैं कि सेंटर के दूसरे भाग में वयस्कों के लिए आवश्यक थैरेपी की व्यवस्था की गयी है। उन्होंने कहा कि यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूं कि जरूरी नहीं है कि वयस्क जब किसी बीमारी से ग्रस्त हो तभी आ सकते हैे, उम्र के चलते रोजाना के कार्यों को करने में जो दिक्कतें आती है, या फिर डिप्रेशन, चिंता, पर्सनालिटी दिक्कतें या बड़ों में अगर बचपन से बच्चों की एडीएचडी जैसी बीमारी वाली दिक्कतें हैं तो उनके लिए अलग से एक कमरा है, जहां थैरेपी दी जा सकती हैे जिससे कि वे बच्चों के सामने इस थैरेपी को लेने में झिझक न करें।

इस प्रकार कुल मिलाकर अगर कहा जाये तो बच्चों के हकलाने, तुतलाने, जन्म से ही कटे होठ व तालू वाले बच्‍चे, ऑटिज्‍म, सेरेब्रल पाल्‍सी, डाउन सिंड्रोम, हाइपरएक्टिविटी डिस्‍ऑर्डर, अटेन्‍शन डेफि‍शिट, डेवलेपमेंटल डिले वाले बच्‍चों की समस्याओं का इलाज विभिन्न थैरेपी के माध्यम से करने के लिए यह सेंटर पूरे समर्पण के साथ तैयार है। स्पीच थैरेपी की उपयोगिता के बारे में बताते हुए सावनी ने कहा कि मानसिक रूप से मंद बच्‍चों अर्थात ऐसे बच्‍चे जिनका विकास अन्य बच्चों की तुलना में धीमी गति से हो रहा हो, देर से चलना, देर से बैठना, देर से बोलना शुरू करना, किसी भी कार्य व कुशलता को धीमी गति से सीख पाना या बहुत अधिक समझाने पर ही समझ पाना, अपनी उम्र के अनुसार सामान्य कार्यों (जैसे भोजन करना, बटन लगाना, कपड़े पहनना, समय देखना आदि) को कुशलता से न कर पाना, भाषा का सही प्रयोग न कर पाना, पढ़ाई में कमजोर, अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल न पाना, अपनी उम्र से कम उम्र के बच्चे की तरह व्यवहार करना, दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना जैसे लक्षणों वाले बच्‍चों का स्‍पीच थैरेपी के माध्‍यम से उपचार किया जाता है।

सावनी ने कहा कि इसी प्रकार बुजुर्गों में अल्‍जाइमर्स यानी भूलने की, निर्णय न ले पाने की दिक्‍कत, डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश, आवाज में खराबी आना, पार्किन्‍सन जैसी अनेक बीमारियों से होने वाली सामान्‍य दिक्‍कतों को दूर करने में भी स्‍पीच थैरेपी का महत्‍वपूर्ण योगदान है। सावनी ने बताया कि स्‍पीच थैरेपी की भूमिका बहुत सी परेशानियों के समाधान में महत्‍वपूर्ण है। उन्‍होंने कहा कि किसी भी उम्र के लोगों को यदि उच्‍चारण में दिक्‍कत, साफ बोलने में दिक्‍कत, बोलते-बोलते मुंह से लार गिरना, श और स जैसे अक्षरों को साफ तरह से न बोल पाने की परेशानी, किसी से बात करने में हिचक हो, या फि‍र कम सुनने वाले या कॉकलियर इम्‍प्‍लांट प्रत्‍यारोपित व्‍यक्ति, हकलाकर बोलने वालों, भोजन निगलने की कठिनाई वाले व्‍यक्तियों, मस्तिष्‍क में चोट या स्‍ट्रोक्‍स से ग्रस्‍त व्‍यक्ति हों, उनके लिए भी स्‍पीच थैरेपी उपयोगी है।

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