-इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर उच्चतम न्यायालय की पीठ ने दिया निर्णय, पिछले वर्ष भी बाबा रामदेव को दी गयी थी चेतावनी
सेहत टाइम्स
लखनऊ। उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाते हुए भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने से बचने की सलाह देते हुए कहा है कि पतंजलि को प्रेस में इस तरह के बयान देने से दूरी बनाकर रखें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि भ्रामक विज्ञापनों का प्रसारण जारी रहा तो एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जायेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 21 नवम्बर को न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह आदेश इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये। पीठ ने ऐलोपैथिक दवाइयां को लेकर पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर कंपनी को आधे हाथों लिया है आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन पब्लिश करने को लेकर फटकार लगाते हुए पीठ ने कहा है कि पतंजलि आयुर्वेद भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा साथ ही यह भी सुनिश्चित करेगा की प्रेस में उसकी ओर से इस तरह के बयान नहीं दिए जाएं।
कोर्ट ने इस मुद्दे को एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की बहस नहीं बनाने की भी चेतावनी दी है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन से एलोपैथी दवाओं की उपेक्षा हो रही है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 5 फरवरी 2024 को होगी। ज्ञात हो पिछले वर्ष भी पतंजलि आयुर्वेद ने दावा किया था कि उनका प्रोडक्ट कोरोनिल और स्वसारी से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। इस दावे के बाद कंपनी को आयुष मंत्रालय ने फटकार लगाई थी और इसके प्रमोशन पर तुरंत रोक लगाने को कहा था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने तब कहा था ‘बाबा रामदेव अपनी चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बना सकते हैं, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। हम सभी उनका सम्मान करते हैं, उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाया लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।’