-एफएमआरआई जांच की रिसर्च में पाया गया है मस्तिष्क में होते हैं बदलाव
-आईएमए में आयोजित सीएमई में डॉ प्रांजल अग्रवाल ने दिया प्रेजेन्टेशन
-राहत की बात यह कि इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर का इलाज संभव
सेहत टाइम्स
लखनऊ। कम्प्यूटर, मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग जरूरत से ज्यादा करने वालों की आदत नशे यानी एडिक्शन में बदल चुकी है, इसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर कहते हैं, यही नहीं फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) जांच की रिसर्च में पाया गया है कि जिस प्रकार से शराब, स्मैक जैसे नशों के आदी लोगों के मस्तिष्क में जो बदलाव आते हैं, वैसे ही बदलाव इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर से ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क में पाये गये हैं। इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर के नशे से ग्रस्त व्यक्ति का उपचार पूरी तरह से संभव है।
यह बात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ द्वारा 2 अप्रैल को यहां आईएमए भवन में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स और सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में अपना प्रेजेन्टेशन देते हुए आईएमए लखनऊ के ज्वॉइंट सेक्रेटरी व निर्वाण हॉस्पिटल के डॉ प्रांजल अग्रवाल ने कही। उन्होंने बताया कि मलेशिया जर्नल ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंसेज में जनवरी 2018 में छपी रिसर्च बताती है कि इंटरनेट एडिक्शन से ग्रस्त व्यक्ति के मस्तिष्क में वही बदलाव देखे गये हैं जो दूसरे नशे से ग्रस्त व्यक्ति के मस्तिष्क में होते हैं। डॉ प्रांजल ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि विशेषकर कोविड काल में कम्प्यूटर और मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल के चलते अब लोगों में इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर बढ़ गया है, लोग कम्प्यूटर, मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने में जो समय खर्च करते हैं, उसको कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। उन्होंने इसे डायग्नोज करने और उपचार के बारे में अपने प्रेजेन्टेशन में जानकारी दी।
डॉ प्रांजल ने बताया कि इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर का इलाज पूरी तरह संभव है, बस आवश्यकता इस बात की है कि इसे पहचान कर इसका इलाज किया जाये। उन्होंने कहा कि यह एक बड़ी समस्या है कि कई लोग इसे डायग्नोज नहीं कर पाते हैं कि क्योंकि वे यह समझ नहीं पाते हैं कि इंटरनेट की यह आदत एडिक्शन यानी नशा है अथवा नहीं, लेकिन आपको बता दें कि यह नशा है जिसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर कहते हैं और इसका इलाज दवाओं और साइकोथैरेपी से हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसकी दवाएं मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास उपलब्ध रहती हैं, जबकि साइकोथैरेपी से इसका इलाज सीबीटी प्रक्रिया से किया जाता है। डॉ प्रांजल ने कहा कि मरीज के सीबीटी यानी कॉग्नेटिव बिहैवियर थैरेपी के कई सेशन लेने पड़ते हैं जिससे यह डिस्ऑर्डर ठीक हो जाता है।