बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम- अंतिम भाग 5
शिशुओं, बच्चों और किशोरों में स्क्रीन टाइम और डिजिटल वेलनेस के लिए ‘इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ (आईएपी) ने गाइडलाइंस बनाई है, जिसमे उन्होंने बच्चों, उनके परिवार के लोगों, बाल रोग डाक्टरों, और स्कूलों के लिए नियम बनाएं हैं।
1. शिशु और 0-23 महीने की आयु के बच्चे
2 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के स्क्रीन के सामने नहीं लाना चाहिए। स्क्रीन मीडिया (जैसे, स्मार्टफोन, टैबलेट, टेलीविजन) का बच्चों को दूध पिलाते समय या खाना खिलाते समय अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। रोते हुए बच्चे को शांत करने के लिए स्क्रीन मीडिया को एक आसान विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। घर के लोगों को बच्चों के सामने कम से कम स्क्रीन मिडिया का उपयोग करना चाहिए। इतना ही नहीं जब बच्चा डे-केयर या किसी अन्य के द्वारा संभाला जा रहा हो तब भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। बचपन की अवस्था में बच्चों के विकास को बढ़ावा देने के लिए माता-पिता को बच्चे को शारीरिक खेल गतिविधियों, कहानी सुनाने, संगीत, डांस और आयु-उपयुक्त खिलौनों में शामिल करना चाहिए, जिससे इस उम्र में बच्चों का मानसिक विकास बेहतर हो सके। दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले करीबी परिवार के सदस्यों के साथ सामाजिक संपर्क के लिए न्यूनतम और कभी-कभी स्क्रीन समय की अनुमति दी जा सकती है।
2. 24-59 महीने के बच्चे
24-59 महीने (2 से 5 साल) के बच्चों के लिए स्क्रीन समय प्रति दिन अधिकतम 1 घंटे तक होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि एक घंटे लगातार नहीं, एक बार में 20-30 मिनट (जितना कम, उतना बेहतर होगा)। इसके अलावा एक समय में केवल एक स्क्रीन का उपयोग करें, मीडिया मल्टीटास्किंग की आदत न डालें। देखभाल करने वाले घर के लोंगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे जो कुछ भी स्क्रीन पर देख रहे हैं, वह सामग्री शैक्षिक, आयु-उपयुक्त, अहिंसक, स्वस्थ और स्वस्थ्य परक है। भोजन के दौरान, सोने से एक घंटे पहले या यात्रा के दौरान स्क्रीन मीडिया का उपयोग न करें। बच्चों को कम से कम 3 घंटे फिजिकल एक्टिविटीज करना चाहिए (मध्यम से तीव्रता की कम से कम एक घंटे की शारीरिक गतिविधि सहित), और प्रतिदिन 10-14 घंटे की अच्छी गुणवत्ता वाली नींद (जितने छोटे बच्चे उतनी अधिक नींद की अवधि)।
3. 5-10 वर्ष की आयु के बच्चे
5 से 10 वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए स्क्रीन समय प्रति दिन 2 घंटे से कम तक सीमित करें; (जितना कम, उतना बेहतर)। इन दो घंटों का ज्यादातर इस्तेमाल अपने पढ़ने-लिखने के कामों के लिए, शिक्षा, सीखने और सामाजिक संपर्क के उद्देश्य से होना चाहिए। मनोरंजक स्क्रीन समय को न्यूनतम ही रखा जाना चाहिए। माता-पिता को इस बात की निगरानी करनी चाहिए कि बच्चे शिक्षा के लिए स्क्रीन का उपयोग कितना कर रहे हैं, ताकि बच्चे गेम खेलने, ऑनलाइन सामग्री देखने या अन्य चीजों में न भटक जाएं। बोरियत दूर करने के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बोरियत एक भावना है, और इसे कल्पना और रचनात्मकता की ओर ले जाना चाहिए (जैसा कि ऊपर अर्नव कर रहे थे)। बच्चे द्वारा उपयोग किया जाने वाला उपकरण माता-पिता में से किसी एक का होना चाहिए, और बच्चे को एक स्वतंत्र फोन/टैबलेट/लैपटॉप नहीं मिलना चाहिए। स्क्रीन टाइम को अध्ययन के समय, खेलने के समय, सोने के समय, परिवार के समय की जगह नहीं लेना चाहिए। ध्यान रखें इस उम्र के बच्चों को 9-12 घंटे की नींद लेनी चाहिए और प्रतिदिन कम से कम एक घंटे की मध्यम-से-जोरदार तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि करनी ही चाहिए।
4. किशोर (10-18 वर्ष की आयु)
इस उम्र के बच्चों के लिए कम से कम एक घंटे की बाहरी शारीरिक गतिविधि (खेल का समय), 8-9 घंटे की रात की नींद आवश्यक है । इसके अलावा स्कूल का समय और होम वर्क, भोजन, शौक, साथियों के साथ बातचीत और परिवार के लोगों के साथ समय बिताना उनका मुख्य कार्य होना चाहिए। यदि उपरोक्त गतिविधियों में से कोई भी स्क्रीन समय के कारण समझौता किया गया है, तो उसे समायोजित करने के लिए स्क्रीन समय को उचित रूप से कम करने की आवश्यकता है। 10-18 वर्ष की आयु के किशोरों के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक अन्य गतिविधियों के साथ स्क्रीन समय को संतुलित करना चाहिए। स्क्रीन उपकरणों के सुरक्षित और स्वस्थ उपयोग के बारे में किशोरों को शिक्षित करना चाहिए। अधिकांश स्क्रीन समय शिक्षा, संचार, कौशल विकास और स्वस्थ जीवन शैली और सुरक्षा को बढ़ावा देने से संबंधित होना चाहिए। डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किशोरों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग की निगरानी करें और साइबर-बुलिंग या मीडिया की लत के किसी भी संकेत का पता लगाएं। सुनिश्चित करें कि स्क्रीन का उपयोग उनके शैक्षणिक प्रदर्शन, मानसिक स्वास्थ्य, प्रतिभा विकास और मूल्यों के अधिग्रहण में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। यदि ऐसा है, तो स्क्रीन के उपयोग को कम करें। यदि वह काम नहीं करता है, तो मार्गदर्शन के लिए बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें। माता-पिता को नई तकनीक के बारे में खुद को अपडेट करना चाहिए ताकि वे किशोरों द्वारा मीडिया के उपयोग की प्रभावी निगरानी कर सकें और किसी भी अनुचित गतिविधि का पता लगा सकें। युवाओं को उनके डिजिटल फुटप्रिंट के बारे में सिखाने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उनके पास किसी भी समय सभी ऑनलाइन खातों तक पहुंचने के लिए पासवर्ड और क्षमता होनी चाहिए। किशोरों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म/वीडियो गेम का उपयोग करने की अनुमति देने से पहले, माता-पिता को इससे परिचित होना चाहिए और केवल तभी अनुमति देनी चाहिए जब उन्हें लगता है कि यह उम्र के लिए उपयुक्त है। माता-पिता को पूरे परिवार में डिजिटल वेलनेस को बढ़ावा देने के लिए एक रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए।
5. स्कूलों के लिए मानक
स्कूलों के लिये भी कुछ नियम बनायें गए हैं जैसे कि हर क्लास के बच्चों के लिए प्रति दिन एक क्लास आउट डोर एक्टिविटीज (खेलकूद)के होने ही चाहिए । टीचर्स को पढ़ाते समय बहुत ज्यादा ऑनलाइन माध्यम से नहीं पढ़ाना चाहिए। बच्चों को ऐसा होम वर्क या असाइनमेंट्स नहीं देने चाहिए जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा समय के लिए स्क्रीन यूज़ करनी पड़े।
डिजिटल वेलबीइंग/वेलनेस के कुछ कारगर उपाय
• बच्चों के मानसिक और शारिरिक विकास के लिए बातचीत बहुत जरुरी है। छोटी उम्र में बच्चों की इमेजिनेशन बहुत तेज होती है, इसलिए लोगों कों बच्चों को कहानियां सुनानी चाहिए।
• सोने से 1 घंटे पहले स्क्रीन को बंद कर देना चाहिए क्योंकि उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी अच्छी नींद के लिए आवश्यक मिलेटोनिन हारमोन के स्राव को कम कर देती है।
• कंप्यूटर और मोबाइल फोन के सामने बैठकर सही मुद्रा अपनाएं। आंखों के तनाव और आंखों के सूखेपन को कम करने के लिए 20-20-20 नियम का पालन करना जरूरी है (20 मिनट के लिए स्क्रीन देखें, 20 सेकंड के लिए ब्रेक लें और 20 फीट दूर किसी वस्तु को देखें)। इससे आंखों को रिलैक्स मिलता है और मसल्स पर जोर भी नहीं पड़ता।
• कमरे की लाइट बेहतर होना चाहिए। जहां पर बैठे हैं उसके पीछे से रोशनी आनी चाहिए न कि सामने से। बड़ी स्क्रीन बेहतर है क्योंकि इससे व्यक्ति की दूरी कम से कम 5 फीट से ज्यादा हो जाती है। आई एक्सपर्ट कहते हैं कि जितनी छोटी स्क्रीन होगी, उतनी समस्या बढ़ेगी, बड़ी स्क्रीन की जगह मोबाइल पर काम करना आंखों पर ज्यादा प्रेशर डालता है।
• पढ़ने के लिए टेबल और चेयर का इस्तेमाल करें, सोफा या पलंग पर बैठकर न पढ़े। सही पॉश्चर में बैठना चाहिए।
• बेडरूम, डाइनिंग टेबल, किचन, बाथरूम और वाहनों को डिजिटल फ्री जोन चिह्नित करें, जहां परिवार का कोई भी सदस्य गैजेट का उपयोग नहीं करेगा।
• डिजिटल उपवास का समय तय करें जब परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी उपकरण का उपयोग नहीं करेगा है और उस समय का उपयोग परिवार के लोग एक-दुसरे के साथ व्यतीत करेंगे। ऐसे डिजिटल उपवास (छोटे दैनिक ब्रेक या/और लंबे सप्ताहांत ब्रेक) का कार्यक्रम परिवार के सदस्यों की आपसी सुविधा के माध्यम से तय किया जा सकता है।