-अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस पर कल्याण सिंह कैंसर इंस्टीट्यूट में सिम्पोजियम का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। भारत में प्रतिवर्ष बच्चों के कैंसर के लगभग 50,000 से अधिक मामले सामने आते हैं। इसमें से हर पांचवा बच्चा उत्तर प्रदेश का होता है। इनमें से केवल आधे का इलाज हो पाता है और बाकी आधे अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते हैं। यह मुख्य रूप से जनता और यहां तक कि स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों में बच्चों के कैंसर की जागरूकता के अभाव से है। आवश्यकता इस बात की है कि जल्दी से जल्दी कैंसर की डायग्नोसिस की जाये जिससे समय रहते उपचार कर मरीज की जान बचायी जा सके।
ये विचार यहां कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान (केएसएसएससीआई) में आज 15 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस (आईसीसीडी) के अवसर पर बच्चों के कैंसर की जागरूकता पर आयोजित सिम्पोजियम में संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमन ने अपने सम्बोधन में व्यक्त किये। ज्ञात हो बच्चों के कैंसर के बारे में जनता और स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस मनाया जाता है।
प्रो राधा कृष्ण धीमन ने बच्चों के कैंसर के बारे में आवश्यक बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने यह भी बताया कि संस्थान में पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी विभाग कार्यरत है और विभाग द्वारा सर्जिकल और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के सहयोग से बच्चों के कैंसर का उपचार किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि भविष्य में बच्चों के कैंसर के इलाज के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट और इम्युनोथेरेपी पर काम करने की योजना है।
ल्यूकेमिया बचपन में होने वाला सबसे प्रमुख कैंसर
संस्थान के पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. गीतिका पंत ने बताया कि ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) बचपन में होने वाला सबसे प्रमुख कैंसर है। वे आमतौर पर लंबे समय तक बुखार, थकान, शरीर में चकत्ते पडना और खून की कमी से पीड़ित होते हैं। उन्होंने बताया कि ल्यूकेमिया कीमोथेरेपी से ठीक हो सकता है और अगर समय पर इलाज किया जाए तो इसके परिणाम अच्छे है। उन्होंने बताया कि दूसरा प्रमुख ब्रेन कैंसर है जो उल्टी और गंभीर सिरदर्द के साथ सुनने की कमी और दृष्टि को धुंधला करता है। तीसरा प्रमुख कैंसर लिम्फोमा है जिसमें लिम्फ नोड में सूजन और वजन कम होने के साथ बुखार भी आता है। बच्चों में होने वाले अन्य ट्यूमर में आंखॅ (रेटिनोब्लास्टोमा), हड्डियां (इविंग्स सार्कोमा और ओस्टियोसारकोमा), किडनी (विल्म्स ट्यूमर), एड्रेनल्स (न्यूरोब्लास्टोमा), लिवर (हेपेटोब्लास्टोमा), मांसपेशियां (रबडोमायोसार्कोमा) आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी, सर्जरी और रेडियोथेरेपी की मदद से इनमें से अधिकांश ट्यूमर का इलाज संम्भव हैं। उन्होंने कहा कि कैंसर की पहचान जल्दी हो सके इसमें चिकित्सकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मरीज अपनी परेशानी लेकर पहले अपने फैमिली फिजीशियन के पास ही जाता है, ऐसे में अगर चिकित्सक यह देखें कि अगर मरीज को आशातीत लाभ नहीं हो रहा है तो कैंसर की जांच भी अवश्य करा लें।
शीघ्र पहचान के लिए जागरूकता ही एकमात्र उपाय
पब्लिक हेल्थ के असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि बच्चों में होने वाले कैंसर को काफी हद तक रोका नहीं जा सकता है। इसलिए, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और जनता के बीच जागरूकता ही एकमात्र उपाय है, जिससे इन कैंसर की शीघ्र पहचान की जा सकती है। ऐसा करने के लिए कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान पहले से ही जागरूकता बढ़ाने के लिए कदम उठा रहा है। जनप्रचार के माध्यम से लखनऊ शहर के स्वास्थ्य केन्द्रों में अधिक से अधिक कैंसर ग्रसित बच्चों की प्रारम्भिक चरण में पहचान की जा सकेगी।
रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार गुप्ता ने संस्थान में बाल चिकित्सा कैंसर के इलाज के लिए उन्नत रेडियोथेरेपी तकनीकों के बारे में बताया। सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ अशोक कुमार सिंह ने संस्थान में बच्चों के कैंसर के इलाज के लिए उपलब्ध सर्जिकल विकल्पों का योगदान समझाया। एनेस्थिसियोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. हिमांशु प्रिंस यादव ने बाल चिकित्सा कैंसर में पेलिएटिव केयर की भूमिका के बारे में बताया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. आयुष लोहिया ने सभी की उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया।