गर्भावस्था के दौरान तीन में से दो महिलायें हो जाती हैं डायबिटीज से ग्रस्त
लखनऊ. भारत में तेजी से अपने पैर पसार रहे डायबिटीज रोग से आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए आवश्यक है कि महिलाओं को डायबिटीज से बचाया जाये. विश्व में 20 करोड़ महिलायें डायबिटीज से ग्रस्त हैं. चिंताजनक बात यह है कि हर तीन में से दो महिलायें अपने प्रजनन काल यानी गर्भावस्था से ही डायबिटीज से ग्रस्त हो जाती हैं और ऐसे में उसके होने वाले शिशु को भी डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है. एक आंकड़े के अनुसार डायबिटीज से ग्रस्त माँ से पैदा होने वाले 7 में से 1 शिशु को डायबिटीज होने का खतरा रहता है. इस लिए महिलाओं को अगर डायबिटीज से बचा लिया गया तो उससे पैदा होने वाले शिशु को डायबिटीज से बचाया जा सकता है. यानी भावी पीढ़ी को हम जन्म से ही डायबिटीज के खतरे से बचा सकते हैं.
यह जानकारी केजीएमयू की प्रो. अमिता पाण्डेय ने देते हुए बताया कि 213 देशों में मनाये जाने वाले विश्व मधुमेह दिवस का इस वर्ष का शीर्षक ‘वीमेन एंड डायबिटीज आवर राईट टू हेल्थी फ्यूचर’ है. उन्होंने बताया कि भारत अब डायबिटिक लोगों की राजधानी बन चुका है. 15 से 45 वर्ष की आयु वाली महिलाओं में इसका खतरा ज्यादा देखा गया है. उन्होंने बताया कि गर्भाबस्था में होने वाली डायबिटीज में देखा गया है कि प्रसव के बाद यह अपने आप ठीक हो जाती है लेकिन 50 से 60 प्रतिशत महिलाओं की डायबिटीज ठीक नहीं हो पाती है. उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं को गर्भावस्था में डायबिटीज हो जाती है उनमें 50 से 60 प्रतिशत बच्चों को डायबिटीज हो जाती है.
उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में डायबिटीज की जांच करना जरूरी होता है इसके लिए गाइडलाइन्स भी बनी हुई हैं तथा उसी के अनुसार अस्पतालों में जांच कराई जाती है लेकिन आज भी करीब 30 से 40 प्रतिशत डिलीवरी घर में ही होती हैं इसलिए ऐसे लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि डायबिटीज अगर कण्ट्रोल न रही तो डिलीवरी के समय बच्चे और माँ दोनों की जान को खतरा हो सकता है. उन्होंने बताया कि आज भी प्रसूताओं की मौत का सबसे बड़ा कारण प्रसव के बाद ब्लीडिंग न रुक पाना है. उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में कम से कम दो बार के अलावा प्रसव के छह हफ्ते बाद भी महिला की डायबिटीज की जांच करानी चाहिए .