-दुर्घटना में घायलों के इलाज के लिए नहीं करना होगा सीटी स्कैन, एमआरआई रिपोर्ट का इंतजार
-संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में लगा देशभर के न्यूरो सर्जन्स का जमावड़ा
सेहत टाइम्स
लखनऊ। दुर्घटना के बाद मस्तिष्क में लगी चोट का इलाज करने के लिए गोल्डेन आवर का महत्व तो डॉक्टर पहले से ही बताते आये हैं, इस अवधि में इलाज मिल सके इसका रास्ता भी अब आसान हो जायेगा। आमतौर पर अब तक दिमाग की चोट पता लगाने के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई जांच पर निर्भर रहना पड़ता था, चूंकि ये जांचें प्रत्येक अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं, ऐसे में मरीज को इलाज मिलने में विलम्ब होता है, लेकिन अब इंफ्रारेड टॉर्च से आंखों में रोशनी डालकर इसका पता लगाना भी संभव है।
यह जानकारी शनिवार को यहां संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में आयोजित न्यूरोट्रॉमा देखभाल में हालिया प्रगति पर अपडेट के दौरान नेशनश इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज के प्रो धवल शुक्ला ने दी। उन्होंने बताया कि इंफ्रारेड टॉर्च के जरिये मरीज की आंखों पर रोशनी डालकर सेरेब्रॉस्पाइनल फ्ल्यूड का आकलन कर चोट की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस आधार पर आगे के इलाज के लिए मरीज को बड़े सेंटर पर रेफर करना है अथवा उसी अस्पताल में इलाज किया जा सकता है, इसके बारे में तुरंत निर्णय लिया जाना संभव हो सकता है। चोट का अंदाजा बायो मार्कर जांच से भी लगाया जाना संभव है।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संस्थान के पूर्व निदेशक व एपेक्स ट्रॉमा सेंटर से संस्थापक प्रो एके महापात्रा शामिल रहे। प्रो महापात्रा के नेतृत्व में देश भर से आये न्यूरो ट्रॉमा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में न्यूरो ट्रॉमा क्षेत्र में नयी-नयी तकनीकियों के बारे में चर्चा की गयी।
चीफ एपेक्स ट्रॉमा सेंटर और विभागाध्यक्ष,न्यूरोसर्जरी विभाग प्रो राजकुमार ने बताया कि अपडेट में रीढ़ की चोट वाले रोगियों के लिए spinal cord stimulation विषयों पर भी चर्चा की गयी। इसके अतिरिक्त लम्बे समय तक कोमा में रहने वाले रोगियों के लिए न्यूरोमॉड्यूलेशन पर जानकारी दी गयी। इसके अतिरिक्त रोगी देखभाल को अनुकूलित करने में कृत्रिम बुद्धिमता(AI) की भूमिका पर भी चर्चा की गई। डायाफ्रामिक पक्षाघात वाले रोगियों और उन रोगियों के लिए, जो लंबे समय तक वेंटिलेटर पर निर्भर हैं, फ्रेनिक तंत्रिका उत्तेजना पर भी कार्यक्रम में विस्तार से चर्चा की गई।
उन्होंने बताया कि सत्रों में रीढ़ की चोट और परिधीय तंत्रिका चोट पर केस-आधारित चर्चाओं के साथ व्यावहारिक, इंटरैक्टिव सत्र थे और इंट्रा-क्रैनियल प्रेशर मॉनिटरिंग और स्पाइन इंस्ट्रूमेंटेशन पर प्रतिभागियों को “हैंड्स-ऑन अनुभव” प्रदान किया।