-शिशु के उपचार के समय मां से शिशु को अलग करना मां और बच्चे दोनों के लिए बढ़ाता है तनाव
-केजीएमयू के बाल रोग विभाग के स्थापना दिवस समारोह पर व्याख्यान का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। वर्तमान में देखा गया है कि प्रीमेच्योर या कम वजन के होने या शिशु के बीमार होने पर उसे मां से अलग कर शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में रखकर इलाज किया जाता है जबकि मां प्रसवोत्तर वार्ड में रहती है, और समय-समय पर ही शिशु से मिल पाती है, यह ठीक नहीं है, भले ही शिशु बीमार हों और आईसीयू में भर्ती हों। नवजात शिशुओं को उनकी माताओं के करीब ही रखकर शिशु को कंगारू मदर केयर देते हुए मां से शिशु को अलग न करें तो वैश्विक स्तर पर हर वर्ष करीब डेढ़ लाख शिशुओं की मौतों को बचाया जा सकता है।
यह जानकारी शनिवार को किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के बाल रोग विभाग के स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में नियोनेटोलॉजिस्ट और शोधकर्ता सफदरजंग अस्पताल नयी दिल्ली के बाल रोग विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो. हरीश चेलानी द्वारा “जीरो सेपरेशन ऑफ स्मॉल एंड सिक न्यूबॉर्न्स फ्रॉम द मदर्स: एविडेंस टू प्रैक्टिस” विषय पर स्व प्रो. पी.के. मिश्रा व्याख्यान में दी। उन्होंने नवजात शिशुओं को उनकी माताओं के करीब रखने के महत्व के बारे में बताया, भले ही वे बीमार हों और आईसीयू में भर्ती हों।
उन्होंने कहा कि नवजात की मौतों में 70 फीसदी मौतें प्रीमेच्योर या 2.5 किलोग्राम से कम वजन वाले शिशुओं की होती हैं। उन्होंने कहा कि शिशु के उपचार के समय मां से शिशु को अलग करना मां और उसके बच्चे दोनों के लिए तनाव बढ़ाता है। अपने नवजात शिशुओं की नियमित देखभाल में माताओं और परिवारों का शून्य अलगाव बच्चे के अस्तित्व और दीर्घकालिक न्यूरोडेवलपमेंट परिणामों में सुधार के लिए आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि 2021 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध में सुझाव दिया गया है कि जीरो सेपरेशन और जन्म के तुरंत बाद कंगारू मदर केयर (केएमसी) शुरू करना और उसके बाद वर्तमान दिशानिर्देशों की तुलना में 20 घंटे/दिन से अधिक के लिए निरंतर कंगारू मदर केयर से 25 फीसदी नवजातों की जान बचायी जा सकती है इसका अर्थ यह है कि हर साल वैश्विक स्तर पर कम से कम 1,50,000 नवजात मौतों को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि जीरो सेपरेशन के नए साक्ष्य और हाल ही में नवंबर 2022 में जारी किए गए डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश में भी कहा गया है कि प्रीमेच्योर या कम वजन के शिशु के लिए नवजात गहन देखभाल के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे।
स्थापना दिवस समारोह के मुख्य अतिथि केजीएमयू के कुलपति डॉ बिपिन पुरी तथा विशिष्ट अतिथि एसजीपीजीआई, लखनऊ में क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर बनानी पोद्दार थे। समारोह की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो शैली अवस्थी ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में विभाग ने रोगी देखभाल, अनुसंधान और शिक्षण में सक्रिय भूमिका निभाई है। विभाग में 35,877 बच्चे ओपीडी में देखे गए और 4,841 मरीज विभिन्न बीमारियों के लिए भर्ती हुए। विभाग के संकाय और रेजीडेंट्स ने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 30 से अधिक शोध पत्र और 6 अध्याय प्रकाशित किए। विभाग में वर्तमान में बाह्य रूप से वित्तपोषित 38 अनुसंधान परियोजनाएं चल रही हैं। उन्होंने बताया कि बाल रोग विभाग में लायंस क्लब के अध्यक्ष विश्वनाथ चौधरी द्वारा आउटडोर प्ले एरिया का उद्घाटन किया गया। लायंस क्लब द्वारा झूलों, आरी और अन्य खिलौनों के दान की मदद से इस खेल क्षेत्र को विकसित किया गया है। कुलपति ने अपने सम्बोधन में अनुसंधान, रोगी देखभाल और शिक्षण के क्षेत्र में विभाग के योगदान के लिए बधाई दी।
केजीएमयू के पूर्व छात्र और वर्तमान में टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी हेल्थ साइंसेज, टेक्सास, यूएसए में कार्यकारी एसोसिएट डीन प्रोफेसर सुरेंद्र वर्मा द्वारा स्वर्गीय प्रोफेसर एनएल शर्मा व्याख्यान दिया गया। उन्होंने “बाल चिकित्सा एंडोक्राइनोलॉजी में नैतिक मुद्दों” के बारे में बात की। उन्होंने नैतिकता के 4 स्तंभों – उपकारिता, गैर-हानिकारकता, स्वायत्तता, न्याय को व्यावहारिक मामलों में लागू करने के बारे में चर्चा की।