-फेदर्स की संस्थापक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता से खास बातचीत
सेहत टाइम्स
लखनऊ। स्पीच थैरेपी सिर्फ बच्चों को बोलना सिखाना ही नहीं है, स्पीच थैरेपी वयस्कों और बुजुर्गों की कई प्रकार की बीमारियों के चलते उत्पन्न हुई परेशानियां दूर करने का माध्यम भी है। इस थैरेपी के माध्यम से व्यक्ति की रोजमर्रा की जिन्दगी, उसके कार्य व्यवहार में आने वाली दिक्कतों को दूर किया जाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बीमारियों को लेकर की जाने वाली काउंसिलिंग के साथ इस थैरेपी से उपचार अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। यह कहना है अलीगंज स्थित ‘फेदर्स’ (सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ) की फाउंडर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता का।
‘सेहत टाइम्स’ जब सावनी गुप्ता के फेदर्स सेंटर पहुंचा तो देखा कि वहां स्पीच थैरेपिस्ट मयंक शेखर एक बच्चे के साथ थैरेपी में व्यस्त थे। उस समय वे विभिन्न प्रकार के कार्ड के माध्यम से बच्चे को सिखा रहे थे, बोलवा रहे थे। उन्होंने बच्चे से एक कार्ड में बने कंधे के चित्र के बारे में पूछा, इसका जवाब मिलने पर उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान और बोलने के दृष्टिकोण से अपने और बच्चे के कंधे के बारे में भी बच्चे से पूछा, इस पर बच्चे ने हाथ से अपने कंधे की ओर इशारा करते हुए अपनी अस्पष्ट आवाज में उत्तर दिया, यानी बच्चा अभिव्यक्ति की कोशिश कर रहा था। (सामाजिक गोपनीयता की दृष्टि से बच्चे का फोटो और नाम नहीं दिया जा रहा है)
‘श’ और ‘स’ में फर्क नहीं कर पाते हैं लोग
बातचीत में सावनी ने बताया कि स्पीच थैरेपी की भूमिका बहुत सी परेशानियों के समाधान में महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि किसी भी उम्र के लोगों को यदि उच्चारण में दिक्कत, साफ बोलने में दिक्कत, बोलते-बोलते मुंह से लार गिरना, श और स जैसे अक्षरों को साफ तरह से न बोल पाने की परेशानी, किसी से बात करने में हिचक हो, या फिर कम सुनने वाले या कॉकलियर इम्प्लांट प्रत्यारोपित व्यक्ति, हकलाकर बोलने वालों, भोजन निगलने की कठिनाई वाले व्यक्तियों, मस्तिष्क में चोट या स्ट्रोक्स से ग्रस्त व्यक्ति हों, उनके लिए भी स्पीच थैरेपी उपयोगी है।
तुतलाना, हकलाना जैसी दिक्कत हो तो
उन्होंने कहा कि बच्चों में हकलाने, तुतलाने, कटे होठ व तालू वाले बच्चे, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, डाउन सिंड्रोम, हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर, अटेन्शन डेफिशिट, डेवलेपमेंटल डिले वाले बच्चों के लिए भी यह थैरेपी अत्यन्त उपयोगी है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार मानसिक रूप से मंद बच्चों अर्थात ऐसे बच्चे जिनका विकास अन्य बच्चों की तुलना में धीमी गति से हो रहा हो, देर से चलना, देर से बैठना, देर से बोलना शुरू करना, किसी भी कार्य व कुशलता को धीमी गति से सीख पाना या बहुत अधिक समझाने पर ही समझ पाना, अपनी उम्र के अनुसार सामान्य कार्यों (जैसे भोजन करना, बटन लगाना, कपड़े पहनना, समय देखना आदि) को कुशलता से न कर पाना, भाषा का सही प्रयोग न कर पाना, पढ़ाई में कमजोर, अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल न पाना, अपनी उम्र से कम उम्र के बच्चे की तरह व्यवहार करना, दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना जैसे लक्षणों वाले बच्चों का स्पीच थैरेपी के माध्यम से उपचार किया जाता है। सावनी ने कहा कि इसी प्रकार बुजुर्गों में अल्जाइमर्स यानी भूलने की, निर्णय न ले पाने की दिक्कत, डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश, आवाज में खराबी आना, पार्किन्सन जैसी अनेक बीमारियों से होने वाली सामान्य दिक्कतों को दूर करने में भी स्पीच थैरेपी का महत्वपूर्ण योगदान है।