-न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के रेडियो आइसोटोप्स निर्माण कार्य की सर्वत्र सराहना
-स्थापना दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में देशभर से जुटे विभिन्न विशेषज्ञ
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई का न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग कैंसर, हार्ट, मस्तिष्क और संक्रमण से सम्बन्धित वे बीमारियां जिनकी डायग्नोसिस नहीं हो पा रही है, उन बीमारियों का पता लगाने में न सिर्फ मदद कर रहा है, बल्कि इन बीमारियों के किये जा रहे उपचार से फायदा हो रहा है या नहीं इसकी जानकारी भी दे रहा है। इस तरह से देखा जाये तो बीमारियों की अबूझ पहेली को हल करने का कार्य करने वाला यह विभाग चिकित्सा जगत में किसी वरदान से कम नहीं है।
न्यूक्लियर मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो संजय गंभीर ने बताया कि बीती 10 और 11 सितंबर को विभाग के स्थापना दिवस पर यहां स्थित हर गोविंद खुराना सभागार, पुस्तकालय भवन में “साइक्लोट्रॉन उत्पादित रेडियोआइसोटोप्स: टूल्स, नीड्स एंड रोड अहेड” विषय पर एक स्थापना दिवस संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन संस्थान के अध्यक्ष और मुख्य सचिव यूपी सरकार दुर्गा शंकर मिश्रा द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में भारत के विभिन्न राज्यों के न्यूक्लियर मेडिसिन के लगभग 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें अकादमिक, शोध, उद्योग और निवेशकों के प्रतिनिधि शामिल थे।
संगोष्ठी के विषय साइक्लोट्रॉन निर्मित रेडियो आइसोटोप्स के बारे में उन्होंने बताया कि साइक्लोट्रॉन एक “मिनी-रिएक्टर” की तरह है जो रेडियो-आइसोटोप का उत्पादन करता है। ये रेडियो-आइसोटोप शरीर के अंदर बीमारी को पकड़ने का कार्य करते हैं, जिसे साधारण भाषा में पेट स्कैन कहा जाता है। उन्होंने बताया कि ये रेडियो-आइसोटोप कई प्रकार के बनते हैं, मुंबई, विदेश में बनने वाले ये रेडियो-आइसोटोप में कुछ ऐसे होते हैं जिनकी लाइफ कुछ घंटों की ही होती है, इन्हीं आइसोटोप का प्रयोग कैंसर, हार्ट, मस्तिष्क, संक्रमण संबंधी बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाता है, उन्होंने कहा कि इन्हीं आइसोटोप का निर्माण हमारे विभाग में होता है, जिससे हम मरीजों की बीमारी का पता लगाते हैं।
बीमारी ढूंढ़ने में ही नहीं उपचार की प्रगति भी पता करने में माहिर
प्रो गंभीर बताते हैं कि इन आइसोटोप की मदद से न सिर्फ बीमारी की डायग्नोसिस तैयार होती है बल्कि उपचार के फॉलोअप में भी प्रयोग में आती है, जिससे यह पता चलता है कि अमुक इलाज से मरीज को लाभ हो रहा है अथवा नहीं। जांच की प्रक्रिया के बारे में प्रो गंभीर ने बताया कि आइसोटोप तैयार करने के बाद संस्थान के भीतर मौजूद मरीज में इस रेडियो आइसोटोप को इंजेक्ट किया जाता है और फिर पीईटी-सीटी मशीन के साथ इमेजिंग की जाती है।
उन्होंने बताया कि इसका सर्वाधिक उपयोग कैंसर की बीमारी का पता लगाने और फिर उसके बाद मरीज के फॉलोअप में होता है, दूसरे नम्बर पर दिल की बीमारियों के उपचार का रास्ता चुनने के लिए दिल की स्थिति, वॉल की मजबूती देखने में किया जाता है। इसी प्रकार न्यूरोलॉजी में मस्तिष्क की स्थिति देख कर डिमेंशिया जैसी बीमारियों की संभावनाओं को इसी आइसोटोप से पता लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस रेडियो आइसोटोप का उपयोग संक्रमण का पता लगाने में भी किया जाता है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि अनेक प्रकार की जांच कराने के बाद भी संक्रमण पकड़ में नहीं आ पाता है, वहां पर इस आइसोटोप की भूमिका उस संक्रमण को पकड़ने की होती है।
एसजीपीजीआई बना केंद्र बिन्दु
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता, वरिष्ठ वैज्ञानिक और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के सलाहकार डॉ एन राममूर्ति थे। उन्होंने इस क्षेत्र में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारत में साइक्लोट्रॉन मशीनों की आवश्यकता और भारत में रेडियो-आइसोटोप के उत्पादन को बढ़ाने के दायरे के बारे में वरिष्ठ प्रशासकों की सभा को भी जानकारियां दीं। डॉ राममूर्ति ने एसजीपीजीआई द्वारा इस क्षेत्र में निभायी जा रही भूमिका और गई भूमिका और प्रगति की सराहना की। प्रो. एके मिश्रा, निदेशक इनमास, डीआरडीओ नई दिल्ली ने परमाणु इमेजिंग द्वारा कैंसर और अन्य बीमारियों का पता लगाने के लिए इन रेडियो-आइसोटोप को उपयोगी फार्मास्यूटिकल्स में बदलने पर बात की। महाप्रबंधक साइक्लोट्रॉन, आरएमसी मुंबई ने नए साइक्लोट्रॉन की स्थापना के चरणों के संबंध में जानकारी दी।
एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो. आर के धीमन ने न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के प्रयासों की सराहना की और इस क्षेत्र में एमएससी, न्यूक्लियर मेडिसिन टेक्नोलॉजी और एमएससी रेडियो फार्मेसी में जॉब ओरिएंटेड पैरामेडिकल कोर्स शुरू करने की दिशा में किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइक्लोट्रॉन बेचने वाले सभी प्रमुख विक्रेता उपस्थित रहे। इन सभी विक्रेताओं ने बाजार में क्या उपलब्ध है, इस बारे में प्रस्तुति दी। इस मौके पर साइक्लोट्रॉन के उपयोगकर्ताओं और ऑपरेटरों की भी एक बड़ी भागीदारी थी। इनके अतिरिक्त नियमित रूप से वितरण के लिए रेडियो-आइसोटोप के लिए साइक्लोट्रॉन आइसोटोप का संचालन और उत्पादन करने वालों ने साइक्लोट्रॉन के संचालन, इसके रखरखाव और मरम्मत की बारीकियों को समझाया। प्रो गंभीर ने बताया कि कुल मिलाकर यह साइक्लोट्रॉन पर देश में अपनी तरह की पहली बैठक थी जिसने पूरे भारत के वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया।