-जौनपुर में तीन बहनों की आत्महत्या की घटना ने झकझोर दिया
-मुफलिसी ऐसी कि मरने के बाद अलग चिता भी नसीब नहीं हुई
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के बदलापुर क्षेत्र में घटी हृदय विदारक घटना में तीन सगी बहनों ने आर्थिक तंगी के चलते एक साथ ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। इस 21वीं सदी में सरकारों द्वारा गरीबों के लिए बनायी गयी ढेर सारी योजनाओं के बावजूद इस तरह से तीन जिंदगियों का अपने आपको खत्म कर लेना वाकई शर्मनाक है। विडम्बना है कि इतना क्रूर फैसला लेने वाली इन बहनों का अंतिम संस्कार भी कम दुखदायी नहीं रहा। शनिवार को तीनों का अंतिम संस्कार एक ही चिता पर किया गया। अफसोस है कि जनता का हितैषी बनने की होड़ दिखाने वाला कोई भी जनप्रतिनिधि पीड़ित परिवार की सुध लेने नहीं पहुंचा।
बताया जाता है कि दाने-दाने के लिए मोहताज परिवार के पास दाह संस्कार तक के लिए पैसा नहीं था। इतना ही नहीं, जिम्मेदारों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। आखिर में रिश्तेदारों की मदद से एक ही चिता पर तीनों का शव रखकर अंतिम संस्कार किया गया। जब भाई गणेश ने मुखाग्नि दी तो वहां मौजूद रिश्तेदारों की आंखें नम हो गईं। नेत्रहीन मां आशा देवी अपनी बेटियों के लिए तड़प रही थीं। बहन रेनू और ज्योति का रो-रोकर बुरा हाल है।
ज्ञात हो महराजगंज थाना क्षेत्र के अहिरौली गांव निवासी निवासी प्रीति (16), आरती(14) और काजल (11) ने बदलापुर थाना क्षेत्र के फत्तूपुर रेलवे क्रॉसिंग पर गुरुवार रात ट्रेन के आगे कूदकर खुदकुशी कर ली थी। शुक्रवार को शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया। गरीबी का आलम ये रहा कि परिजनों के पास शवों के घर ले जाने के लिए भी पैसे नहीं थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार परिवार से जुड़े लोगों के मुताबिक रिश्तेदारों की मदद से 600 रुपये में एक एंबुलेस तय की गयी। शनिवार को शवों को रामघाट ले जाया गया। जहां रिश्तेदारों ने लकड़ी की व्यवस्था की और एक ही चिता पर तीनों बहनों का अंतिम संस्कार कर किया गया।
शनिवार को गांव में मातमी सन्नाटा पसरा रहा। तीन-तीन मौत के बाद भी गांव में कोई जनप्रतिनिधि शोक जताने नहीं पहुंचा। मन-मस्तिष्क को झकझोरने वाली इस घटना के बाद जो जानकारियां सामने आ रही हैं कि उनके अनुसार घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय थी, यही नहीं नेत्रहीन मां अपनी नेत्रहीनता के चलते कहीं मजदूरी भी नहीं कर पा रही थी। घर में पैसे थे नहीं, ऐसे में किशोरावस्था की तीनों बहनों का लिया गया यह खौफनाक फैसला सरकार, सरकारी व्यवस्था और जनप्रतिनिधियों सभी के लिए एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
पता चला है कि पीड़ित परिवार के घर संवेदना जताने पहुंचे महराजगंज के खंड विकास अधिकारी शशिकेश सिंह ने एक बोरी अनाज, कंबल व नकद सहायता दी। उन्होंने आशा देवी को स्वीकृत प्रधानमंत्री आवास की छत शीघ्र बनवाने का निर्देश दिया है। परिवार को लाल कार्ड देने का प्रस्ताव ग्राम पंचायत की बैठक में पारित कर भेजा जा चुका है। यह भी कहा जा रहा है कि मां आशा देवी को कृषि योग्य भूमि का पट्टा दिया जाएगा। इसके लिए प्रशासनिक स्तर से कवायद भी शुरू हो गई है। शनिवार को एसडीएम लाल बहादुर भी अहिरौली की इस दलित बस्ती में पहुंचे, उन्होंने कुछ आर्थिक सहयोग किया।
यह विडम्बना ही तो है कि जिन्हें जिन्दा रहते अपने हिस्से का भोजन नहीं मिला और मरने के बाद भी अपने-अपने हिस्से की एक अदद चिता भी नहीं मिली, एक ही चिता पर तीनों का अंतिम संस्कार किया जाना पीछे की स्थितियों की कहानी स्वत: बयान करता है।
यहां सवाल यह उठता है कि तीनों बहनों की मौत के बाद अब जो यह कवायद की जा रही है, क्या यह पहले नहीं की जा सकती थी ? क्या जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी मरने के बाद ही निभायेंगे ? क्या इस परिवार की गरीबी की हालत का अहसास तीनों बहनों के जिन्दा रहते नहीं हो सकता था ? गुड्डा-गुडि़या खेलने, शिक्षा प्राप्त करने और खुशहाल जीवन के सपने बुनने के दिनों में गरीबी की चादर में लिपटी इन बेटियों द्वारा मौत जैसा खौफनाक रास्ता चुनने का जिम्मेदार आखिर कौन है… सोचिये…