यूपी के साथ ही आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, के कुछ क्षेत्र भी प्रभावित
लखनऊ। सरकार के अनेक प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में मस्तिष्क ज्वर से होने वाली मौतों का सिलसिला जारी हैै अभी गोरखपुर मेडिकल कालेज में 68 बच्चों की एक साथ मौत ने सभी हिला कर रख दिया है। आरोपों प्रत्यारोपों के बीच बच्चों की मौत का सिलसिला भी जारी है। प्रदेश एवं केन्द्र सरकार जापानी इन्सेफेलाइटिस के कहर से परेशान है और जनता भी भयभीत है।
वरिष्ठ होम्योपैथिक विशेषज्ञ डॉ. अनुरुद्ध वर्मा ने बताया कि जापानी इन्सेफेलाइटिस जिसे मस्तिष्क ज्वर या दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है का कहर केवल उप्र में ही नहीं है बल्कि इससे आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, के कुछ क्षेत्र भी प्रभावित हैं लेेकिन उ0प्र0 में इसका कहर कुछ ज्यादा ही है। पिछले 35 वर्षों में लगभग 40000 से अधिक नन्हें-मुन्ने इस बीमारी से असमय मौत का शिकार हो चुके है।
आखिर क्या है जापानी इन्सेफेलाइटिस
न्होंने बताया कि जापानी इन्सेफेलाइटिस एक भयावह बीमारी है जो फ्लेवी वायरस द्वारा होती है यह क्यूलेक्स विसनोई मच्छर के काटने से फैलता है। यह विशिष्ट मच्छर इस रोग को पक्षियों तथा जानवरों विशेषकर सुअरों के माध्यम से फैलता है। यह सभी प्राणि एक कैरियर (संवाहक) का कार्य करते हैं। इसका सर्वाधिक प्रकोप पूर्वी भारत में मई से अक्टूबर तक तथा दक्षिण भारत में अब्टूबर से दिसम्बर तक होता है। वर्षा ऋतु तथा मच्छरों की अत्याधिक संख्या इसके फैलने से मददगार साबित होती है यह रोग 15 वर्ष से कम बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है और वह बच्चे इसके ज्यादा शिकार होते हैं जो कम प्रतिरोधक क्षमता वाले तथा अतिसंवेतदनशील एवं अस्वास्थ्यकर स्थितियों में रहने वाले होते हैं।
जापानी इन्सेफेलाइटिस के लक्षण
तेज बुखार के साथ सिरदर्द
मांस-पेशियों में ऐंठन
मेरूदण्ड एवं गर्दन की मांस पेशियों में ऐंठन
अत्यधिक बदन दर्द
आंखों के सामने अंधेरा
उल्टी होना
अत्यधिक कमजोरी
मानसिक असंतुलन
बेहोशी
दृष्टि संबंधी परेशानी
चक्कर
पक्षाघात आदि
लक्षण-
डॉ अनुरुद्ध वर्मा बताते हैं कि रोगी में मच्छर काटने के 5 से 15 दिन के बीच लक्षण प्रकट होते हैं जापानी इन्सेफेलाइटिस से ग्रसित रोगियों की मृत्युदर बहुत अधिक है। यदि इसके प्रकोप के बाद रोगी किसी प्रकार से बच भी जाता है तो उसमें अनेक प्रकार की जटिलतायें उत्पन्न हो जाती है व इससे रोगी मानसिक व शारीरिक रूप से अपंग हो जाता है। रोगी में मतिभ्रम या लकवा जैसी अनेक प्रकार स्नायुविक गड़बडिय़ां उत्पन्न हो जाती है। गंभीर रोगियों को तत्काल चिकित्सालय में भर्ती करा देना चाहिये।
बचाव एवं रोकथाम-
आस पास साफ सफाई रखे, गन्दगी ना होने दें तथा मच्छर ना पनपने दे।
मच्छरो से बचें। सुअरों को आबादी से बाहर रखें।
रोकथाम का होम्योपैथिक प्रयास
जापानी इन्सेफेलाइटिस या मस्तिष्क ज्वर की रोकथाम में होम्योपैथिक दवाइयों की कारगरता को प्रमाणित करने के लिए आन्ध्र प्रदेश सरकार ने भारत सरकार की सहायता से प्रदेश में इस रोग से प्रभावित जिलों के समस्त एक से 15 वर्ष बच्चों को होम्योपैथिक दवाइयां वितरित कराई। पल्स पोलियो की तरह आन्ध्र प्रदेश में चलाये गये इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, भारतीय चिकित्सा पद्धतियां एवं होम्योपैथिक विभाग एवं अन्य विभागों के समन्यवय से कार्यक्रम संचालित किया गया। आन्ध्र प्रदेश में लगातार इस अभियान को जारी रखने के बाद मौतों में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयी और आन्ध्रप्रदेश में लगभग यह संख्या शून्य के बराबर हो गई इस अभियान में बेलाडोना 200 कैलकेरिया कार्ब 200 तथा ट्यूबरकुलिनम 10एम का वितरण कराया गया। होम्योपैथिक औषधियां जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम में कारगर तो हो ही सकती है साथ ही जटिलताओं को दूर करने में भी सहायक सिद्ध हो सकती है। उ0प्र0 में केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद द्वारा बी0आर0डी0 मेडिकल कालेज गोरखपुर में एक नैदानिक परीक्षणिक इकाई स्थापित की गयी है जिसमें मरीजों की भर्ती कर एवं होम्योपैथिक औषधियों के माध्यम से उपचार किया जाता है इसके साथ ही गोरखपुर जनपद के एक ब्लाक चरगांवा को सघन कार्य के लिये चुना गया है। जिसमें औषधियों की कारगरता प्रमाणित करने के लिये कार्य किया जा रहा है।
रोकथाम के लिए कुछ सुझाव-
डॉ वर्मा बताते हैं कि इसकी रोकथाम के लिए कुछ उपाय किये जाने की जरूरत है। इनमें
-राज्य सरकार इस रोग के रोकथाम के लिए आन्ध्र प्रदेश की भांति प्रभावित क्षेत्रों में होम्योपैथिक औषधियां का वितरण कराये।
-रोग के लक्षण, बचाव, उपचार एवं होम्योपैथी के माध्यम से बचाव की जानकारी का प्रचार-प्रसार पर्चों, समाचार-पत्रों एवं अन्य माध्यमों से कराये।
-अभियान को सफल बनाने के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए। समान्वित प्रयास से जापानी इन्सेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है परन्तु इसके लिये सरकार को आगे आना होगा तभी यह प्रयास मूर्त रूप प्राप्त कर सकेगा और बच्चों की असमय मौतों को रोका जा सकेगा।