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कोविड मरीजों में स्टेरॉयड का इस्‍तेमाल विवेकपूर्ण ढंग से करने की सलाह

-म्यूकरमाइकोसिस के प्रबंधन और उपचार विषय पर संजय गांधी पीजीआई में चर्चा का आयोजन

-ऑनलाइन आयोजित चर्चा में काला फंगस संक्रमण के रोगियों के उपचार पर महत्‍वपूर्ण चर्चा

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि म्‍यूकरमाइकोसिस यानी काला फंगस से मरीजों को बचाने तथा संक्रमित होने पर उनके उपचार के लिए आवश्‍यक है कि हाई रिस्क मरीजों की पहचान की जाए, ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जाए, कोविड मरीजों में स्टेरॉयड का विवेकपूर्ण इस्तेमाल किया जाए, एयर क्वालिटी इंडेक्स को बेहतर किया जाए।

“म्यूकरमाइकोसिस के प्रबंधन और उपचार ” विषय पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा जूम प्लेटफार्म पर वर्चुअल  कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसे उत्तर प्रदेश के 52 मेडिकल कॉलेज के साथ जोड़ा गया। चर्चा में विशेषज्ञों ने कहा कि म्यूकरमाइकोसिस एक प्रकार का घातक फंगल संक्रमण है, जो अधिकांशत इम्यूनोसप्रेस्ड रोगियों को होता है। अनियंत्रित मधुमेह के रोगी भी इस संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। यह कवक बीजाणु ( fungal spores) हवा में रहते हैं, जो सांस के जरिए हमारी नाक से होते हुए साइनस और फिर फेफड़ों तक भी पहुंच जाते हैं। कोविड 19 संक्रमित उस रोगी को जिसका डायबिटीज अनियंत्रित हो और जो स्टेरॉइड पर भी रहा हो इस संक्रमण के होने का खतरा अधिक होता है।

चर्चा की शुरुआत में संजय गांधी पीजीआई के निदेशक प्रोफेसर आर के धीमन ने प्रतिभागियों और वक्ताओं का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस संक्रमण का निदान और उपचार करने में एक माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट, नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ और मधुमेह विशेषज्ञों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अतः विभिन्न विभागों के सहयोग से ही इस संक्रमण का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जा सकता है।

इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ आर के सिंह ने म्यूकरमाइकोसिस के अनेक प्रकारों के बारे में बताते हुए कहा कि ROCM (राइनो ऑर्बिटल सेरेब्रल मयूकरमायोसिस)  सबसे सामान्य संक्रमण है और मधुमेह के रोगियों में यह सबसे उग्र रूप में दिखाई पड़ता है।  इसका प्रभावी प्रबंधन और उपचार के लिए त्वरित निदान अत्यंत आवश्यक है। Antifungal treatment के साथ साथ सुप्रशिक्षित नाक कान गला रोग विशेषज्ञ द्वारा शल्यक्रिया के साथ ही इसका उपचार संभव है।

नाक, कान गला रोग विशेषज्ञ डॉ अमित केसरी ने कहा कि मधुमेह के रोगी जिनका ब्लड शुगर अनियंत्रित होता है, अधिक खतरे में रहते हैं। Microbiology, रेडियोलाजी और ENT परीक्षण से इस बीमारी को प्रारंभिक अवस्था में पहचाना जा सकता है। MRI से भी इसको पहचाना जा सकता है। पहली या दूसरी अवस्था में कोई भी प्रशिक्षित ENT surgeon इसकी surgery कर सकता है।

इसके पश्चात नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर रचना अग्रवाल ने “फंगल संक्रमण का आंखों पर प्रभाव” विषय पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि इस संक्रमण का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लग जाने से उपचार संभव है।

माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ रोमी एस मारक ने इस संक्रमण को पहचानने के लिए आवश्यक खून की जांच और टिश्‍यू बायोप्सी की तकनीक के विषय में अपने विचार रखे। इसके पश्चात एन्‍डोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ सुभाष यादव ने अनियंत्रित मधुमेह के रोगियों में इस घातक फंगल संक्रमण से बचाव से संबंधित उपचार पद्धतियों पर चर्चा की।

इस सत्र में 546 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनके द्वारा 176 प्रश्न भी पूछे गए। प्रतिभागियों ने सत्र को पुनः रखने की मांग की। 19 मई बुधवार को इस सत्र को फिर से आयोजित किया जाएगा, जहां पर केस पर आधारित चर्चा होगी।