-देश-विदेश के करोड़ों भक्त बने इस ऐतिहासिक घड़ी के साक्षी
अयोध्या/लखनऊ। लगभग पांच शताब्दियों से चले आ रहे संघर्ष के बाद अंतत: अयोध्यानगरी में श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला के भव्य मन्दिर का निर्माण की शुरुआत शिलान्यास पूजा के साथ हो गयी। देश के साथ दुनिया भर के करोड़ों रामभक्त टेलीविजन के जरिये इस बेहद भावनात्मक, ऐतिहासिक, भक्तिमय, श्रद्धामय, आस्थामय घड़ी के साक्षी बने, वाकई हमसब अत्यन्त भाग्यशाली हैं जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इस ऐतिहासिक मंदिर निर्माण के शिलान्यास समारोह को भौतिक रूप से या फिर टेलीविजन के माध्यम से देख पाये। इस पूजा में यजमान के रूप में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी शामिल हुए। कोरोना महामारी के चलते सीमित संख्या में लोगों को आमंत्रित किया गया था। हालांकि पूजन के समय शिलान्यास स्थल पर प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12.44 पर श्रीराम जन्मभूमि में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन करने के साथ ही आधार शिला भी रखी। विद्वानों ने एक मिनट का मुहूर्त निकाला था, यह वही मुहूर्त है जिसमें श्रीरामलला पैदा हुए थे। इससे पहले प्रधानमंत्री दिल्ली से लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट पहुंचे और फिर वहां से हेलिकॉप्टर से अयोध्या रवाना हुए। अयोध्या में साकेत महाविद्यालय के हेलीपैड पर उनका स्वागत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। इसके बाद प्रधानमंत्री सबसे पहले हनुमानगढ़ी मंदिर पहुंचे। यहां पहुंचकर उन्होंने राम के भक्त हनुमान जी की पूजा-आरती की। उनके साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे। इसके बाद वह श्रीराम जन्मभूमि पहुंचे और विराजमान रामलला के दरबार में साष्टांग दंडवत की। इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ उन्होंने शिलान्यास पूजन किया।
इसके पश्चात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री सहित आये हुए सभी साधु-संतों व अन्य हस्तियों का अपने सम्बोधन में स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने मंच पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
सुनहरे बॉर्डर वाली क्रीम कलर की धोती के साथ सुनहरे रंग के कुर्ते की वेशभूषा में आये प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्रभु राम सभी के हैं। वह सभी के मन में बसते हैं। उन्होंने राममंदिर के भूमिपूजन की तिथि को उन्होंने स्वतंत्रता दिवस जैसा बताया और कहा कि अस्तित्व मिटाने का बहुत प्रयास हुआ लेकिन जैसे देश की स्वतंत्रता के लिए पीढ़ियों से अपना सबकुछ समर्पित किया, वैसे ही कई सदियों और पीढ़ियों ने राममंदिर के लिए प्रयास किया और रामजन्मभूमि मुक्त हुई। यह दिन सत्य, अहिंसा और न्यायप्रिय भारत की अनुपम भेंट है। यह मंदिर तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक बनेगा। शाश्वत मंदिर आस्था और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा। कोई काम करना हो तो हम भगवान राम की ओर देखते हैं। भगवान राम की देखते हैं। राम हमारे मन में बसे हैं। राम संस्कृति के आधार हैं। उन्होंने आंदोलन में बलिदान हुए लोगों को भी नमन किया।
उन्होंने कहा कि राम मंदिर निमार्ण से समूचे अयोध्या क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी संस्कृति पूरी दुनिया के लिए अध्ययन और शोध का विषय भी है। राम समय और परिस्थिति के अनुसार कहते हैं, सोचते हैं, करते हैं। भगवान राम ने अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करें, यह भी सीख दी है। उन्होंने कहा कि श्रीराम जैसा नीतिवान शासक कभी नहीं हुआ। मानस की चौपाइयों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राम शरण में आने वालों की रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि इसी के साथ भगवान राम की नीति भय बिनु होई न प्रीति वाली है, इसलिए जब देश ताकतवर होगा तब शांति भी स्थापित होगी। राम की यह नीति सदियों से भारत का मार्गदर्शन करती रही है।
उन्होंने कहा कि राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था, तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था। जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, मैं उन सबको आज 130 करोड़ देशवासियों की तरफ से नमन करता हूं। उन्होंने कहा कि भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए, इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। श्रीराम भारत की मर्यादा हैं, श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भूमि पूजन का कार्यक्रम अनेक मर्यादाओं के बीच हो रहा है. श्रीराम के काम में मर्यादा का जैसे उदाहरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए, वैसा ही उदाहरण देश ने पेश किया है। यह उदाहरण तब भी पेश किया गया था, जब उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा कि देशभर के धामों और मंदिरों से लाई गई मिट्टी और नदियों का जल, वहां के लोगों, वहां की संस्कृति और वहां की भावनाएं, आज यहां की शक्ति बन गई हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि श्रीरामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया है। श्रीराम का चरित्र सबसे अधिक जिस केंद्र बिंदु पर घूमता है, वो है सत्य पर अडिग रहना, इसलिए ही श्रीराम संपूर्ण हैं।