लखनऊ। अल्जाइमर मस्तिष्क की वह बीमारी है जिसमें व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है, उसे बोलने में, लिखने में कठिनाई महसूस होने लगती है तथा उसका व्यवहार बदलने लगता है। लगभग 65 वर्ष की उम्र में होने वाली इस बीमारी से बचने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति नियमित व्यायाम करें और साथ ही मस्तिष्क का भी व्यायाम करें यानी ऐसे कार्य करें जिसमें उसे दिमाग जरूर लगाना पड़े।
केजीएमयू में अल्जाइमर बीमारी पर एक व्याख्यान आयोजित
यह बात 8 जून को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेण्टर में अल्जाइमर रोग के ऊपर एक व्याख्यान में कही गयी। यह व्याख्यान टेक्सासटेक यूनिवर्सिटी हेल्थ साईंस सेण्टर के वृद्धावस्था आंतरिक मेडिसिन विभाग के सहअचार्य डॉ0 रविन्द्र ‘रवि’ भारद्वाज द्वारा दिया गया। डॉ भारद्वाज ने बताया कि अल्जाइमर डिमेंशिया का ही एक भाग है। इस बीमारी के लक्षणों को सर्वप्रथम 3 नवम्बर 1906 को एलोइस अल्जाइमर द्वारा पहचाना गया। अल्जाइमर के लक्षण समान्यत: 60-80 साल के उम्र के लोगों मे देखा जाता है। उन्होंने डिमेंशिया के कारणों को बताते हुए कहा कि 60 से 80 प्रतिशत डिमेंशिया अल्जाइमर की वजह से होता है, वैस्कुलर डिमेंशिया 10 प्रतिशत अन्य कारणों में डिमेंशिया लेवी बाडी के साथ मिक्स डिमेंशिया, पार्किंसन डिजीज और अन्य है। उन्होंने अल्जाइमर डिजीज के बारे में बताया कि इसका कारण न्यूरोडीजनरेशन, प्रोग्रेसिव डिमेंशिया, न्यूरोनल डेथ, एमालोइड प्लाक, न्यूरोफिब्रिलरी टैंगल्स और मुख्यत: न्यूरो कार्टीक्स, लिम्बिक सिस्टम और सब कार्टिकल रेंज ब्रेन की वजह से होता है।
इन लोगों को होता है ज्यादा खतरा
उन्होंने बताया कि अल्जाइमर रोग उन व्यक्तियों में होने का ज्यादा खतरा रहता है जो मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा से पीडि़त हो साथ में ही जिन व्यक्तियों के सिर में चोट लगी हो। अल्जाइमर अनुवांशिक बीमारी भी है। उन्होंने बताया कि अल्जाइमर मस्तिष्क का एक मन्द घातक रोग है जो 65 वर्ष से अधिक आयु के दस में से एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। यह रोग धीरे-धीरे लगता है जब प्लैक और टैंगल कहे जाने वाले दो असामान्य प्रोटीन खण्ड मस्तिष्क में जमा हो जाते हैं और मस्तिष्क के कोषाणुओं को नष्ट कर देते हैं। यह हिप्पो कैम्पस में शुरू होते हैं और धीरे-धीरे हिप्पो कैम्पस को नष्ट कर देते हैं।
ये हैं लक्षण
इस बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों की देख भाल बहुत जरूरी है। इससे व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है, शब्दों के बोलने या लिखने में मुश्किल आना, व्यवहार में बदलाव आदि आने लगता है। इससे बचने के लिए शारीरिक श्रम करें, शरीर और दिमाग का व्यायाम करें, दिमाग के व्यायाम का अर्थ है अपने दिमाग को चलाते रहे यानी ऐसे कार्य करें जिनमें दिमाग पर जोर देना पड़े, साथ ही धूम्रपान न करें, मदिरापान न करें, व्यस्त रहें और सामाजिक क्रियाकलाप में भाग लें। ऐसे मरीजों की देखभाल बहुत जरूरी है।
इस अवसर पर चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट द्वारा डॉ. भारद्वाज को एक प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।