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सोरियासिस की पीड़ा से कराहता बच्‍चा तीन माह में हो गया स्‍वस्‍थ

-गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथी रिसर्च की उपलब्धियों में एक और कड़ी 
बच्चे का चेहरा उपचार से पूर्व, उपचार के दौरान तथा उपचार के बाद (बायें से दायें)

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। दो माह की उम्र से सोरियासिस जैसी दर्दभरी बीमारी झेल रहे बच्चे के चेहरे पर विश्‍वास और खुशी भरी हंसी छह वर्ष की आयु में  आयी। पांच साल तक अनेक त्‍वचा रोग विशेषज्ञों के पास चक्‍कर लगा-लगा कर थक चुके उसके परिजनों ने बीती 25 जुलाई 2019 में होम्‍योपैथिक इलाज शुरू किया था, उसके बाद से उसकी सोरियासिस की स्थिति में बराबर सुधार आना शुरू हुआ और तीन माह बाद अक्‍टूबर तक वह इस रोग से पूरी तरह ठीक हो गया था। इसके बाद भी बच्‍चे पर निगरानी रखी गयी और अब करीब पांच माह बाद भी बच्‍चा सोरियासिस से मुक्‍त है।

डॉ गिरीश गुप्ता

बच्चे का इलाज करने वाले यहां लखनऊ में अलीगंज स्थित गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथी रिसर्च के संस्‍थापक और वरिष्‍ठ होम्‍योपैथिक विशेषज्ञ डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि बच्चे को पैदा होने के कुछ दिनों बाद से त्‍वचा पर रैशेज की शिकायत हो गयी थी, और दो माह होते-होते त्‍वचा रोग विशेषज्ञों ने साफ कर दिया कि बच्‍चे को सोरियासिस नामक बीमारी है। डॉ गुप्‍ता के अनुसार बच्‍चे के परिजनों ने बताया कि सोरियासिस बीमारी का पता चलने के बाद उन लोगों ने अलग-अलग कई त्‍वचा रोग विशेषज्ञों का इलाज किया लेकिन बच्‍चे को आराम नहीं मिला, इसके बाद उन्‍हें किसी ने हमारे सेंटर पर दिखाने की सलाह दी।

बच्चे के हाथ उपचार से पूर्व, उपचार के दौरान तथा उपचार के बाद (बायें से दायें)

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि 25 जुलाई, 2019 को जब पहली बार बच्चा उनके सेंटर पर आया था तो उसके पूरे शरीर पर सोरियासिस का असर था, और असर भी इतना गहरा कि उससे जब बैठने को कहा गया तो वह सिहर गया क्‍योंकि बैठने में भी उसे अत्‍यंत पीड़ा हो रही थी, सेंटर पर वह पूरे समय वह खड़ा ही रहा।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि‍ उनके सेंटर पर होने वाले इलाज की प्रकिया के तहत जब उसकी केस हिस्‍ट्री ली गयी तो अनेक लक्षणों का पता चला इनमें मुख्‍य लक्षण यह पता चला कि बच्‍चे को कॉकरोच से अत्‍यधिक डर लगता था। डॉ गुप्‍ता बताते हैं कि बच्‍चे का आईक्‍यू लेवल अच्‍छा था। उन्‍होंने बताया कि सभी लक्षणों को ध्‍यान में रखते हुए कॉकरोच से डर की दवा का चुनाव करते हुए बच्‍चे का इलाज शुरू किया गया। एक सप्‍ताह तक दवा खाने के बाद जब उसे 1 अगस्‍त को देखा गया तो त्‍वचा में फर्क आना शुरू हो गया था। इसके बाद दवा चलती रही और फि‍र अक्‍टूबर तक पूरी तरह ठीक हो गया। उन्‍होंने बताया इसके बाद भी बच्‍चे को निगरानी में रखा गया, दो दिन पूर्व (मार्च के पहले सप्‍ताह में) बच्‍चा आया था, अब पूरी तरह ठीक है।

दिव्‍यांश के पैर उपचार से पूर्व, उपचार के दौरान तथा उपचार के बाद (बायें से दायें)

डॉ गुप्‍ता कहते हैं कि दरअसल होम्‍योपैथी की यही खूबी है कि इसमें अनेक जटिल बीमारियों की दवायें उपलब्‍ध हैं और इलाज से वह बीमारी जड़ से समाप्‍त हो जाती है, इसीलिए दवा के चुनाव में मरीज के व्‍यवहार, उसकी केस हिस्‍ट्री का बहुत महत्‍व होता है। ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्‍ता ने अपने रिसर्च सेंटर में अनेक प्रकार के जटिल रोगों का इलाज किया है, उनके ये शोध अंतर्राष्‍ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं।