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‘मुख्‍यमंत्री जी, जिन मांगों को शासन ने जायज माना, उन्‍हें भी पूरा नहीं किया’

-राज्‍य कर्मचारी संयुक्‍त परिषद, उत्‍तर प्रदेश ने की मुख्‍यमंत्री से अपील
अतुल मिश्रा

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के महामंत्री अतुल मिश्रा ने कहा है कि जिन जायज मांगों को शासन में बैठे उच्च अधिकारियों ने स्वीकार किया था कि ये सुविधा कर्मचारियों को मिलनी चाहिए, उनका क्रियान्वयन वर्षों से लंबित है। यह अफसोसनाक है, उन्‍होंने मुख्यमंत्री से अपील की है कि प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों के दुख को समझें व कर्मचारियों की जायज मांगों पर बैठक कर निस्तारण कराएं जिससे प्रदेश के विकास की गति प्रदान हो।

श्री मिश्रा ने बताया कि वर्ष 1986 में सरकार के साथ केन्द्र के समान वेतन देने की सहमति बनी थी। केंद्र के समान प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को वेतन मुहैया कराया जाएगा परंतु वर्तमान सरकार द्वारा वेतन समिति की रिपोर्ट 2 वर्षों से रखी गई है। वेतन समिति द्वारा जिन संवर्ग के वेतनमान केंद्र से भिन्न थे उनका परीक्षण कर रिपोर्ट मुख्यमंत्री को प्रेषित की जा चुकी है, इसी में भत्ते भी सम्मिलित हैं, जो कर्मचारियों को मिलने हैं। इस मांग पर दिनांक 9 अक्टूबर 2018 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में संपन्न हुई बैठक में यह सहमति बनी थी कि 3 माह में इसको मंत्रिमंडल से अनुमोदन कराकर शासनादेश जारी कर दिया जाएगा पर 1 वर्ष के उपरांत अभी तक मंत्रिपरिषद के समक्ष भी प्रस्तुत नहीं की गई।

उन्‍होंने कहा कि उसी बैठक में संविदा/आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के लिए स्थायी नीति के निर्माण पर भी मुख्य सचिव द्वारा निर्णय लिया गया था और कमेटी का गठन किया गया, जिसके द्वारा ड्राफ्ट मॉडल दिनांक 13 फरवरी 2019 को तैयार कर लिया गया पर मंत्रिपरिषद के समक्ष प्रस्तुत नहीं हो पाया और प्रदेश के युवाओं के भविष्‍य के साथ खिलवाड़ करने जैसा उसके विपरीत जेम्स पोर्टल के माध्यम से नियुक्ति करने का शासनादेश निर्गत कर दिया गया।

इसी प्रकार संगठनों व परिषद की मांग कि सभी संवर्गों को पुनर्गठन किया जाए जो विगत दो दषक से नहीं किया गया, जिसमें समस्त बैठकों में मुख्य सचिव द्वारा निर्देशित किया गया कि कैडर पुनर्गठन सभी संवर्गें का समयबद्धता के साथ पूर्ण कर लिया जाए साथ ही कार्मिक विभाग इसकी मॉनिटरिंग करेगा, परंतु सभी पत्रावलि‍यां शासन स्तर पर मकड़जाल में फंसकर लंबित हैं। कई विभागाध्यक्ष द्वारा तो अभी इसकी शुरुआत ही नहीं की गई। विभागों में पदोन्नतियां नहीं की जा रही हैं जो कि विभागाध्यक्ष को समय समय पर कर लेना चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि संवर्गीय संगठनों के विषय पर देखा जाए तो विभागाध्यक्ष, प्रमुख सचिवों के साथ संपन्न हुई बैठकों में सहमतियां व्याप्त है पर क्रियान्वयन पर रुचि नहीं ली जा रही है जिसके कारण विवश होकर संगठनों को आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण वर्तमान में आंदोलनरत लेखपाल संघ। इनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में कोई नई मांग नहीं है, यह मांग है मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव राजस्व के साथ 1 वर्ष पूर्व बनी सहमति का क्रियान्वयन न होना। इसी तरह रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद की दिनांक 08 अप्रैल 2018 को प्रमुख सचिव परिवहन व प्रबंध निदेशक के साथ संपन्न हुई बैठक में जो सहमति हुई है उसका क्रियान्वयन आज भी लंबित है।

उन्‍होंने बताया कि इस संबंध में मुख्य सचिव द्वारा भी बैठक कर समयबद्ध निस्तारण के निर्देश दिए जा चुके हैं। प्रदेश के कर्मचारियों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार वचनबद्ध है। कर्मचारी क्योंकि अल्प वेतनभोगी है और किसी बड़ी बीमारी के लिए पैसा ना होने के कारण उसे जान भी गंवानी पड़ रही थी तथा एडवांस की प्रक्रिया भी काफी जटिल थी, जिस पर परिषद ने कैशलेस इलाज की मांग की और सरकार ने स्वीकार किया कि यह सुविधा कर्मचारियों को मिलनी चाहिए इसमें कोई वित्तीय भार भी नही पड़ना है। इसका निर्णय मंत्रीपरिशद से वर्ष 2016 में हो गया पर शासन में बैठे अधिकारियों द्वारा रुचि न लेने से आज तक इस सुविधा का लाभ सारी औपचारिकताओं को पूर्ण करने के बाद भी प्राप्त नहीं हो रहा है।

इसके अतिरिक्‍त प्रदेश के कर्मचारियों को केन्द्रीय कर्मचारियों की भांति कल्याण निगम कैन्टीन से कर मुक्त सामान प्राप्त हो जाता था जिससे कर्मचारियों को कुछ पैसे की बचत हो जाती थी, परन्तु प्रदेश सरकार द्वारा उसे भी समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है जबकि अक्टूबर 2018 में मुख्य सचिव के साथ सम्पन्न हुयी बैठक में यह सहमति बनी थी कि प्रदेश सरकार अपने हिस्से का जीएसटी छोड़ दी देगी जिससे कर्मचारियों को इसका लाभ प्राप्त होता रहेगा, परन्तु रुचि न लेकर सुविधा समाप्ति की ओर अग्रसर है।

इसी तरह सिंचाई विभाग के महत्वपूर्ण संवर्ग सींचपाल, सींचपर्यवेक्षक, जिलेदार, सेवानियमावली 1954 संशोधन के लिए विगत कई वर्षों से लम्बित है, इस नियमावली को शीघ्र प्रख्यापित कराएं जाने के निर्देष दिये गये, परन्तु 1 वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी लम्बित है। तकनीकी पर्यवेक्षक (नलकूप) सेवा नियमावली 2018 प्रख्यापन के लिए विगत वर्ष 2008 से लम्बित है, इसपर भी मुख्य सचिव द्वारा कई बार प्रमुख सचिव सिंचाई को षीघ्र प्रख्यपित कराए जाने हेतु निर्देष दिए गये परन्तु रुचि न लेने के कारण आज भी लम्बित है। इसी भांति वन विभाग के अधीनस्थ वन सेवा नियमावली प्रख्यापन के लिए विगत 6 वर्षों से लम्बित है इसपर भी मुख्य सचिव द्वारा प्रमुख सचिव वन को शीघ्र प्रख्यापन कराने के कई बार निर्देश दिए, परन्तु कोई आपेक्षित कार्यवाही नहीं हुयी। इन तीनों नियमावलियां सभी औपचारिकताओं को पूर्ण कर चुकी है और इसकी वजह से अधीनस्थ सेवा चयन द्वारा नियुक्ति नहीं हो पा रही है और कर्मचारी सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं।

पशु चिकित्सा फार्मासिस्‍ट संघ की सेवा नियमावली का प्रख्यापन व चीफ वेटनरी फार्मासिस्‍ट के पद पर पदोन्नति कई वर्षों से लम्बित है। इस सम्बन्ध में प्रमुख सचिव पशुधन के साथ सहमति बनी है व क्रियान्वयन न होन की दशा में मुख्य सचिव द्वारा कई बार समयबद्ध निर्देश दिए गये परन्तु कार्यवही शून्‍य है। उपरोक्त नियमावलियां समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण कर विभागीय स्तर पर लम्बित हैं। स्वास्थ्य परिवार कल्याण में कार्यरत बेसिक हेल्थ वर्कर का प्रशिक्षण एक वर्ष से बढ़ाकर 2 वर्ष किये जाने पर अप्रैल 2018 में प्रमुख सचिव परिवार कल्याण के साथ सहमति होने के उपरान्त समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण कर शासन स्तर पर लम्बित है, जिसके कारण बीती 16 दिसम्बर को प्रदेश के हजारों कर्मचारियों ने मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन भी किया।

श्री मिश्र ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा परिषद के कई बार अनुरोध के उपरान्त भी ध्यान न देने के कारण आज कर्मचारी अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है। आज यह स्थिति है कि कर्मचारी सरकार से कोई नई सुविधा नहीं मांग रहा पर जो सुविधाएं पूर्व से मिलती हुयी चली आ रही हैं या जिसपर सरकार यह मान रही है कि यह कर्मचारी को मिलनी चाहिए, उसपर आश्‍वस्त कर चुकी है, उसका क्रियान्वयन तो होना ही चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि मुख्य सचिव द्वारा सभी प्रमुख सचिवों, विभागाध्यक्षों को कई बार सख्त निर्देश जारी किये गये कि संगठनो के साथ प्रत्येक माह बैठक कर विभाग स्तर की समस्याओं का निस्तारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाये परन्तु कोई भी अधिकारी मासिक बैठक नही कर रहें है, जिससे मजबूरन कर्मचारियों को सड़क पर उतरना पड़ रहा है, इससे जनमानस को असुविधा का सामना तो करना ही पड़ रहा है साथ ही प्रदेश का विकास भी प्रभावित हो रहा है।

परिषद ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों के दुख को समझें व कर्मचारियों की जायज मांगों पर बैठक कर निस्तारण कराएं जिससे प्रदेश को विकास की गति प्रदान हो। आज अगर गहराई से समीक्षा की जाये तो कर्मचारियों के उपर कार्य का बोझ बढ़ रहा है व सुविधायें अनुमन्य नहीं हो रही है, जिससे निश्चित रूप से प्रदेश के विकास की गति प्रभावित हो रही है।