‘बेस्ट ऑफ चेस्ट’ में जुटे देशभर से दिग्गज, नये शोध कार्यों में सामने आयी बातों के बारे में दी गयी जानकारी
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिसीज (सीओपीडी) के इलाज में जबरदस्त बदलाव आया है। दुनिया भर में पिछले दो सालों में हुई नयी शोध में निकल कर आयीं नयी बातों की जानकारी रविवार को यहां होटल ताज में आयोजित बेस्ट ऑफ चेस्ट के अंतर्गत एक दिवसीय सेमिनार में दी गयीं। इसका आयोजन इंडियन चेस्ट सोसायटी यूपी चैप्टर के तत्वावधान में किया गया। इंडियन चेस्ट सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष तथा नेशनल कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियन के वर्तमान अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत ने कहा कि सीओपीडी के इलाज में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है।
विकासशील देशों में धूम्रपान नहीं, अन्य कारणों से ज्यादा होती है सीओपीडी
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि हमारे देश में लगभग 5 करोड़ लोग सीओपीडी से पीड़ित है। उन्होंने बताया कि सोशियो डेमोग्राफिक इन्डेक्स (एसडीआई) के तहत किये गये सर्वे में जो बात सामने आयी उसमें दुनिया के विकसित देशों में सीओपीडी होने की 75 प्रतिशत वजह धूम्रपान है जबकि इसके उलट विकासशील देशों में सीओपीडी होने के 75 प्रतिशत कारण धूम्रपान न होकर परोक्ष धूम्रपान व अन्य चीजें हैं जिनसे धुआं निकलता है। इनमें लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना, वायु प्रदूषण, घर के अंदर का प्रदूषण, घर के बाहर का प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, वाहन प्रदूषण, धूपबत्ती, अगरबत्ती का धुआं, हवन का धुआं, मच्छरों को भगाने वाला कॉइल, आरामशीन में काम, माली का कार्य, मिट्टी-धूल के बीच कार्य आदि कारण शामिल हैं। इन कारणों से सीओपीडी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है ऐसे कारणों से होने वाली सीओपीडी को नॉनस्मोकर सीओपीडी भी कहते हैं।
गंभीर रोगियों को तीन तरह की दवायें इन्हेलर थेरेपी से देने की सलाह
उन्होंने कहा कि सीओपीडी के इलाज में जो परिवर्तन आये हैं उनमें गंभीर रोगियों के लिए ट्रिपल इनहेलर थेरेपी का उपयोग प्रचलन में आया है। उन्होंने कहा कि अभी तक एक या दो तरह की दवाओं से इन्हेलर दिये जाते रहे हैं लेकिन अब तीन तरह की दवाओं के इन्हेलर दिये जाने की सलाह दी गयी है। इसके अलावा ऐसे रोगी जिनको बार-बार सीओपीडी की वजह से अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है उनके लिए होम नेबुलाइजेशन और होम ऑक्सीजन थेरेपी ज्यादा कारगर है।
सीओपीडी के साथ हृदय रोग हो तो सेलेक्टिव बीटा ब्लॉकर दवायें अवश्य दें
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि इसी प्रकार जिस व्यक्ति को सीओपीडी की शिकायत के साथ ही हृदय रोग की भी शिकायत है उसे अभी तक हृदय रोग में बीटा ब्लॉकर दवायें नहीं दी जाती हैं लेकिन नये शोध में ज्ञात हुआ है कि ऐसे रोगियों को कुछ सेलेक्टिव बीटा ब्लॉकर दवायें देना आवश्यक है। ऐसा इसलिए कि जब रोगियों को ये सेलेक्टिव बीटा ब्लॉकर दवायें दी गयीं तो ऐसे रोगियों की मृत्युदर 44 प्रतिशत घट गयी।
18 गुना ज्यादा होता है निमोनिया होने का खतरा
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि एक और नयी चीज यह सामने आयी है कि जिसे सीओपीडी की शिकायत होती है उसे निमोनिया होने का खतरा एक-दो नहीं बल्कि 18 गुना ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि सीओपीडी रोगियों के बचाव के लिए धूम्रपान धूल धुआं, से बचाव, सुबह शाम भाप लेना, प्राणायाम, पलमोनरी रिहैबिलिटेशन तथा टीकाकरण सहायक होते हैं।
इस कार्यक्रम में डॉक्टर अमिता नेने ने टीबी की आधुनिक जांचों के बारे में बताया। जयपुर से आए हुए डॉ वीरेंद्र सिंह ने अस्थमा के विभिन्न आयामों पर चर्चा की, पुणे से डॉक्टर नितिन अभयंकर, हैदराबाद से डॉ वी. नागार्जुनमतरू आदि ने भी विभिन्न विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। इस आयोजन में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं बिहार से लगभग 250 चिकित्सकों ने भाग लिया। इनमें एम्स नयी दिल्ली, एम्स पटना, पटना मेडिकल कॉलेज, एम्स ऋषिकेश, संजय गांधी पीजीआई, ऐरा मेडिकल कॉलेज, केजीएमयू के रेजीडेंट्स व अन्य चिकित्सक शामिल रहे।