छिपे रोगियों को ढूंढ़ने के लिए एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान शुरू
आईएमए-एएमएस ने आयोजित किया सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम
लखनऊ। सर्वाधिक चिंता का विषय वे लापता ढाई लाख टीबी के मरीज हैं जिनके बारे में पिछले साल रिपोर्ट मिली थी, क्योंकि एक टीबी का मरीज अगर लापरवाही से रहता है तो वह साल भर में 15 नये टीबी के मरीज तैयार कर देता है, ऐसे में अगर आंकड़ों में देखा जाये तो इन मरीजों की जान के साथ ही उनके सम्पर्क में आने वाले 37 लाख 50 हजार लोगों पर पिछले एक साल से टीबी होने का खतरा है। ऐसे लोगों को ढूंढ़ने के लिए सरकार ने ऐसे मरीजों को ढूंढ़ने के लिए 7 जनवरी से एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान के तहत स्लम एरिया में जाकर जांच कर टीबी के मरीजों का पता लगाया जा रहा है।
मैं विशिष्ट से बन गया मुख्य अतिथि
यह जानकारी आज यहां इंडियन मेडिकल एसोसिएशन-एकेडमी ऑफ मेडिकल स्पेशियलिस्ट्स (आईएमए-एएमएस) द्वारा आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में बतौर मुख्य अतिथि डॉ सूर्यकांत ने दी। अपने सम्बोधन की शुरुआत में डॉ सूर्यकांत ने कहा कि मुझे तो इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होना था लेकिन आईएमए अध्यक्ष डॉ एएम खान के न आने से मुझे मुख्य अतिथि का दर्जा दे दिया गया है। एकेडमी ने इस साल के पहले साइंटिफिक कार्यक्रम के तहत टीबी पर सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन किया। रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में आयोजित इस सीएमई में एरा मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ राजेन्द्र प्रसाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ उमेश त्रिपाठी, केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ शीतल वर्मा सहित अनेक विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसके अतिरिक्त पदाधिकारियों में आईएमए-एएमएस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष तथा स्टेट टीबी कंट्रोल प्रोग्राम के हेड डॉ सूर्यकांत, आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ जीपी सिंह, आईएमए-एएमएस लखनऊ के अध्यक्ष डॉ राकेश सिंह, सचिव डॉ एचएस पाहवा ने हिस्सा लिया।
प्रति डेढ़ मिनट में टीबी के एक रोगी की मौत
डॉ सूर्यकांत ने कहा कि मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आज की सीएमई में अनेक वरिष्ठ चिकित्सक आये हैं, यह काफी महत्वपूर्ण बात है। इसी तरह अगर सबका सहयोग मिलता रहेगा तो प्रधानमंत्री का 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का सपना जरूर पूरा होगा। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1993 में टीबी को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित कर दिया था। डब्ल्यूएचओ द्वारा इसे दुनिया से मिटाने के लिए 2030 का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीबी उन्मूलन के लिए यह लक्ष्य 2025 रखा है। उन्होंने कहा कि भारत में टीबी की भयावहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रति डेढ़ मिनट में टीबी के एक रोगी की मौत हो रही है।
टीबी उन्मूलन का मैच जीतना है तो तेजी से खेलना होगा
उन्होंने कहा कि तय समय सीमा में टीबी का भारत से उन्मूलन वाकई बहुत चुनौती पूर्ण कार्य है। उन्होंने एक चौंकाने वाली जानकारी देते हुए कहा कि अगर अब तक किये जा रहे प्रयासों की गति के अनुसार देखा जाये तो भारत से टीबी उन्मूलन वर्ष 2181 में (लगभग 162 साल बाद) होगा। इसलिए अब हमें फटाफट क्रिकेट में प्रति ओवर अधिक रन बनाने के अंदाज में कार्य करना होगा जिससे भारत वर्ष टीबी उन्मूलन का मैच 2025 के लक्ष्य के अंदर जीत सके।
रेसिस्टेंट मरीजों को ज्यादा खतरा
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि सबसे ज्यादा चिंता टीबी के नोटिफिकेशन को लेकर है क्योंकि प्राइवेट चिकित्सकों, प्राइवेट अस्पतालों या किसी भी अन्य माध्यम से जो लोग टीबी का इलाज करा रहे हैं उनकी गिनती सरकारी आंकड़ों में होना आवश्यक है ताकि उनका पूरा इलाज होना सुनिश्चित किया जा सके। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि होता यह है कि बहुत से मरीज टीबी का इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं, इससे टीबी की जो दवायें वे तब तक खा चुके होते हैं, उन दवाओं के प्रति वे रेसिस्ट हो जाते हैं, और फिर बाद में दोबारा इलाज शुरू होने पर वे दवायें उन्हें फायदा नहीं करती हैं। यही नहीं आंकड़े बताते हैं कि एक टीबी का मरीज अगर लापरवाही से रहता है तो वह 15 नये टीबी मरीज तैयार कर देता है। उन्होंने बताया कि एक साल पहले के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में साढ़े सात लाख टीबी के मरीज थे, इनमें ढाई लाख सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे थे, ढाई लाख मरीज ऐसे थे जो प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज करा रहे थे लेकिन सर्वाधिक चिंता की बात यह थी ढाई लाख टीबी के मरीजों का कुछ पता ही नहीं था कि वे किस हाल में हैं और कहां इलाज करा रहे हैं। ऐसे मरीजों से दूसरों को टीबी होने का सर्वाधिक खतरा है। इसलिए ऐसे मरीजों को ढूंढ़ने के लिए 7 जनवरी से एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान के तहत स्लम एरिया में जाकर जांच कर टीबी के मरीजों का पता लगाया जा रहा है।
टीबी उन्मूलन में सभी का सहयोग जरूरी : डॉ जीपी सिंह
इससे पूर्व दीप प्रज्ज्वलन के बाद स्वागत भाषण में डॉ जीपी सिंह ने टीबी अब पूरी तरह ठीक हो सकती है। जरूरत है इसका पूरा इलाज करने की। रेसिस्टेंट टीबी जरूर एक बड़ी दिक्कत है, इसके उन्मूलन के लिए सभी का सहयोग जरूरी है।
सीएमई में विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ उमेश त्रिपाठी ने टीबी के नोटिफिकेशन के बारे में जानकारी दी तथा बिगटेक लैब्स के मेडिकल डाइरेक्टर डॉ बीके अय्यर ने भारत में बनी पहली पीसीआर मशीन ट्रूनेट के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वर्षों शोध करने के बाद उनके द्वारा तैयार की गयी इस मशीन से विदेशी मशीन के मुकाबले किया जाने वाला वायरस को पहचानने का टेस्ट आधी से भी कम कीमत में किया जाना संभव है। अन्त में धन्यवाद भाषण डॉ राकेश सिंह ने दिया। मंच का संचालन डॉ एचएस पाहवा ने किया। इस कार्यक्रम का आयोजन जेईईटी ( ज्वाइन्ट एफर्ट फॉर ऐलिमिनेशन ऑफ ट्यूबरकुलोसिस) के सहयोग से किया गया।