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नोटीफि‍केशन सिर्फ फेफड़ों की टीबी के ही मरीजों का क्‍यों ?

-जिला क्षय रोग फोरम की बैठक में उठे सवाल, डीटीओ ने कहा, इस दिशा में कार्य जरूरी

-लॉकडाउन के बाद नवम्‍बर में चले अभियान में 10 फीसदी आबादी में मिले 300 टीबी रोगी

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन द्वारा टीबी उन्‍मूलन के लिए वर्ष 2030 तक का समय निर्धारित किया गया है, जबकि भारत में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस लक्ष्‍य को पांच साल और कम करते हुए 2025 निर्धारित किया है, लेकिन फि‍लहाल तो टीबी के सभी मरीजों का नोटीफि‍केशन ही नहीं हो रहा है, तो ऐसे में उन्‍मूलन की क्‍या कहें, हालांकि जिम्‍मेदार अधिकारियों का कहना है कि इस दिशा में अब कार्य करने की योजना है, वर्ष 2021 में 100 फीसदी नोटीफि‍केशन का लक्ष्‍य निर्धारित किया जा रहा है।

यह बात आज यहां विकास भवन स्थित सभागार में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत “टी बी हारेगा, देश जीतेगा” के उद्देश्य के साथ सम्‍पन्‍न जिला क्षय रोग फोरम की बैठक में कही गयी। बैठक में जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ एके चौधरी ने कहा कि उनकी जानकारी में आया है कि फेफड़े की टीबी के अतिरिक्‍त किसी और अंग की टीबी के मरीजों का नोटीफि‍केशन ही नहीं होता है, जबकि देखा जाये तो टीबी के सभी केस का नोटीफि‍केशन होना चाहिये, चाहे वे न्‍यूरो, हड्डी या किसी भी अंग की हो। इसी क्रम में बैठक में डीटीओ को बताया गया कि गायनीकोलोजी की डॉक्‍टर्स तक भी इसकी सूचना नहीं देती हैं। ये सभी डॉक्‍टर सीधे दवा लिख देते हैं, और मरीज खाता रहता है। आपको बता दें कि नियमानुसार सरकारी हो या प्राइवेट डॉक्‍टर, टीबीग्रस्‍त व्‍यक्ति के बारे में टीबी सेल को सूचना देना अनिवार्य है।

इस पर डीटीओ ने कहा कि गर्भधारण न कर पाने के लिए सबसे पहला कारण महिला को टीबी होना पाया गया है, और इसका इलाज करने से ही 60 फीसदी महिलाएं की संतान न होने की समस्‍या दूर हो जाती है।

उन्‍होंने कहा कि जो लोग स्‍ट्रॉयड लेते हैं, उन्‍हें अगर तीन-चार दिनों में खांसी ठीक न हो तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिये, डायबिटीज या अन्‍य बीमारियों के साथ भी टीबी होने का खतरा ज्‍यादा रहता है, इसलिए इसके लक्षण दिखने पर टीबी की जांच जरूर करानी चाहिये। उन्‍होंने कहा कि चेस्‍ट के डॉक्‍टरों के अतिरिक्‍त दूसरी विधा के डॉक्‍टरों के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिये जिससे उन्‍हें सभी तरह की टीबी के मरीजों के नोटीफि‍केशन अनिवार्य रूप से कराने की बात कहनी हो।   

डॉ चौधरी ने बताया कि अब टीबी केवल दो तरह की ही रह गयी  है – ड्रग रेसिस्टेंट और ड्रग सेंसिटिव। इसको लेकर लोगों में बहुत सी भ्रांतियां थीं जो अब धीरे-धीरे कम हो रही हैं|  उन्‍होंने कहा कि टीबी से ग्रस्‍त बच्‍चों का इलाज और खानपान प्रॉपर तरीकों से चलता रहे इसके लिए राज्यपाल की पहल पर टीबी ग्रस्‍त 18 वर्ष से कम आयु के 2199 बच्चों को विभिन्न लोगों,  विश्वद्यालयों, मेडिकल कॉलेज, गैर सरकारी संगठनों द्वारा गोद लिया जा चुका है जो उनके इलाज, पोषण से लेकर पढ़ाई के संसाधन मुहैया करा रहे हैं |  

जिला क्षय रोग अधिकारी कहा – लॉक डाउन के कारण सभी स्वास्थ्य  सेवाओं में जहाँ एक ठहराव आ गया था उस दौरान भी हमने ऐसे रोगी जो दूसरे जिलों /प्रदेशों के थे उनके यहाँ से संपर्क  कर उन्हें दवाएं उनके घर पर मुहैया करायीं | लॉकडाउन के बाद नवम्बर में हमने सक्रिय क्षय रोगी खोज (एसीएफ) अभियान चलाया जिसमें हमने जनपद की 10 फीसद आबादी की स्क्रीनिंग कर 300 लोगों को टीबीग्रस्‍त पाया गया। इनका इलाज शुरू किया गया है। इलाज पर ले  आये | जिले में सभी शहरी 13 बड़े अस्पतालों और सभी ग्रामीण ब्लाक सहित 24 ट्रीटमेंट यूनिट हैं जहां 24 घंटे टीबी की जांच व इलाज निःशुल्क सुविधा उपलब्ध है | साथ ही 51 शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य  केन्द्रों पर ड़ेसिग्नेटेड मेडिकल सेंटर हैं जहाँ बलगम की जाँच की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध है और  निक्षय पोषण योजना के तहत, इलाज के दौरान पोषण के लिए सरकार द्वारा 500 रूपये की धनराशि  लाभार्थी के खाते में प्रतिमाह सीधे भेजी जाती है |

डीटीओ ने बताया- टीबी रोग को समाप्त  करने में सबसे महत्वपूर्ण है टीबी के रोगियों का नोटिफिकेशन | इसके लिए अब सरकार द्वारा सरकारी और निजी चिकित्सकों द्वारा टीबी रोगियों का नोटिफिकेशन कराना अनिवार्य कर दिया गया है साथ ही निजी चिकित्सकों को टीबी रोगियों की सूचना देने पर 500 रूपये की प्रोत्साहन राशि तथा यदि टीबी से ग्रसित मरीज अपना इलाज पूरा कराता है तो 500 रूपये की अतिरिक्त प्रोत्साहन धनराशि दी जाती है।  इस क्रम में सभी चिकित्सकों द्वारा टीबी रोगियों की सूचना देनी चाहिए। साथ ही ही केमिस्ट और डायग्नोस्टिक सेंटर्स को भी टीबी रोगियों के नोटिफिकेशन के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत दिसम्बर में 300 टीबी रोगियों का नोटिफिकेशन केमिस्ट्स द्वारा किया गया है |

उन्‍होंने बताया कि  यह मायक्रोबैक्टीरियम ट्युबरकुलोसिस बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। ऐसे लोग जिन्हें लम्बे समय तक खांसी रहती है, एचआईवी के मरीज, मधुमेह के मरीज, ऐसे लोग जिन्होंने लम्बे समय तक स्‍टूराइड का सेवन किया है, ऐसे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण टीबी होने की सम्भावना अधिक होती है। इस मौके पर मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी के प्रतिनिधि अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. अजय राजा ने कहा- समय से दवाएं ली जाएं, दवाओं का पूरा कोर्स किया जाए तथा उचित पोषण लिया जाये तो टीबी पूरी तरह से ठीक हो सकती है। बैठक में जिला टीबी फोरम के सदस्‍य पत्रकार धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना ने कहा कि छिपे हुए टीबी रोगियों की पहचान बहुत जरूरी है।

6 जनवरी, 2021 को विकास भवन, लखनऊ में जिला टीबी फोरम की बैठक को सम्‍बोधित करते जिला क्षय रोग अधिकारी, डॉ एके चौधरी।

 इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से डॉ अल्पना एस चौधरी, जीत संस्था से अंजुला सचान, एनटीईपी के पब्लिक प्राइवेट मिक्स कॉअॅर्डिनेटर, रामजी वर्मा, फहीम अहमद, मनोज यादव व अन्य कर्मचारी उपस्थित थे |

इस मौके पर टीबी को मात दे चुके दो रोगी भी शामिल हुए। 22 वर्षीया लड़की ने बताया कि उसे पहले टीबी होने पर छह माह इलाज किया लेकिन बीच-बीच में दवा छोड़ दी थी, इसके बाद दिक्‍कत होने पर जांच की गयी तो उसकी टीबी मल्‍टी ड्रग रेजिस्‍टेंट (एमडीआर) में परि‍वर्तित हो गयी थी, एमडीआर टीबी का इलाज 24 महीने चला, अब वह टीबी मुक्‍त है, लेकिन उसका वजन नहीं बढ़ा है, इस पर डीटीओ ने उसे राजेन्‍द्र नगर टीबी हॉस्पिटल आने की सलाह दी। एक दूसरा करीब 30 वर्षीय युवक सीधे एमडीआर टीबी की चपेट में आ गया था। डीटीओ ने बताया कि एमडीआर टीबी से ग्रस्‍त व्‍यक्ति इस टीबी का वाहक हो सकता है, ऐसे मरीज के सम्‍पर्क में आने वाले व्‍यक्ति एमडीआर टीबी से ग्रस्‍त हो जाते हैं। मरीजों ने बताया कि उन्‍हें किसी कर्मचारी या डॉक्‍टर से किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। |