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नमक का स्वाद

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 26 

डॉ भूपेंद्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 26वीं कहानी –नमक का स्वाद

एक बार एक परेशान और निराश व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला– “गुरूजी मैं जिंदगी से बहुत परेशान हूं।

 

मेरी जिंदगी में परेशानियों और तनाव के सिवाय कुछ भी नहीं है। कृपया मुझे सही राह दिखाइये।”

 

गुरु ने एक गिलास में पानी भरा और उसमें मुट्ठी भर नमक डाल दिया।

 

फिर गुरु ने उस व्यक्ति से पानी पीने को कहा। उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया।

 

गुरु– इस पानी का स्वाद कैसा है ? “बहुत ही ख़राब है” उस व्यक्ति ने कहा।

 

फिर गुरु उस व्यक्ति को पास के तालाब के पास ले गए। गुरु ने उस तालाब में भी मुठ्ठी भर नमक डाल दिया फिर उस व्यक्ति से कहा– इस तालाब का पानी पीकर बताओ कि‍ कैसा है।

 

उस व्यक्ति ने तालाब का पानी पिया और बोला– गुरूजी यह तो बहुत ही मीठा है।

 

गुरु ने कहा– “बेटा जीवन के दुःख भी इस मुठ्ठी भर नमक के समान ही है। जीवन में दुखों की मात्रा वही रहती है– न ज्यादा न कम।

लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों का कितना स्वाद लेते हैं और हम अपनी सोच एवं ज्ञान को गिलास की तरह सीमित रखकर रोज खारा पानी पीते हैं या फिर तालाब की तरह बनकर मीठा पानी पीते हैं।”

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