Wednesday , October 11 2023

जीवित मवेशियों के निर्जीव होते जीवन को उजागर कर रही यह रिपोर्ट

 

उत्तर प्रदेश सहित दस राज्यों की जांच रिपोर्ट कर रही श्वेत क्रांति की सच्चाई का पर्दाफाश

लखनऊ. दूध देने वाली गायों को मशीन समझा जाता है, उसका दूध निकालने के लिए उसके साथ क्या-क्या होता है इसे जानकर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति व्यथित हुए बिना नहीं रह पायेगा, यही नहीं पैसों की हवस के चलते इसका दूध पीने वालों के स्वास्थ्य के साथ भी खतरनाक खिलवाड़ हो रहा है. भारत के प्रमुख 10 दुग्ध उत्पादक राज्यों के 451 दुग्ध उत्पादक केंद्रों के पशुओं की भयावह स्थिति के बारे में भारतीय पशु रक्षा महासंघ के द्वारा आज जारी नई रिपोर्ट से इस बड़े रहस्य का पर्दाफाश हुआ है.

जिन राज्यों में यह जांच की गयी उनमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु शामिल हैं. उत्तर प्रदेश की जांच में राज्य के पांच जिलों बरेली, लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर और गाजियाबाद के 50 डेयरियों में 3264 पशुओं को शामिल किया गया। महासंघ की रिपोर्ट ‘जीवंत मवेशी-निर्जीव जीवनी’ स्पष्ट करती है कि केंद्र व राज्य सरकारों को दुग्ध उत्पादक केंद्रों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

 

गाय और मनुष्य दोनों की जिन्दगी से खिलवाड़   

जाँच रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह डेयरियों में अधिकांश गायों के साथ व्यवहार होता है, वो तंगहाली में जीती हैं, उन्हें उनकी मूल आवश्यकताओं से भी वंचित रखा जाता है, उन्हें अपने बछड़ों को दूध पिलाने से वंचित रखा जाता है, उनके साथ पशुपालक दूध बनाने वाली मशीन के समान व्यवहार करते हैं, आनुवांशिक बदलाव लाया जाता है, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए एंटिबायोटिक व हार्मोन का अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है। जाहिर सी बात है कि जब गायों को इस दुर्दशा से गुजरना पड़ता है तो उनका दूध पीने वाले मनुष्यों का भी तरह-तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इनमें हृदय से संबंधित बीमारी, मधुमेह, कैंसर और अन्य बीमारियों से ग्रस्त होने की सम्भावना अधिक होती जा रही है। इन पशुओं की अव्यवस्थित व अनियंत्रित देखभाल दूध और दूध उत्पादकों की सुरक्षा व वैश्विक स्तर पर भारत के दुग्ध उत्पादन क्षमता की स्थिरता पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर खड़ा है।

भारतीय पशु रक्षा महासंघ के निदेशक अर्पण शर्मा का कहना है कि इससे सिर्फ पशुओं का शोषण नहीं हो रहा है बल्कि दूध उत्पादों का प्रयोगकर्ता भी इसके शिकार हैं। पशुओं को जिस प्रकार से रखा जा रहा है उससे कहीं न कहीं उत्पाद अर्थात दूध की गुणवत्ता और सुरक्षा भी प्रश्न बनता है। जाँच के बाद प्राप्त नतीजों से दुग्ध व्यापार में दूध के सुरक्षा और गुणवत्ता पर प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा हो गया है। उनका कहना है कि हमने राज्य सरकारों से नगरपालिका के अधीन व अन्य क्षेत्रों मे आने वाली डेयरियों के लिए नियम बनाने की अपील की है।

 पशु रखने  की  शर्तों पर नियम लागू हों 

उनका कहना है कि केंद्र को भी पशु स्थल नियम 1978 के पंजीकरण के नियम में बदलाव लाकर व्यावसायिक डेयरी में पशु रखने के शर्तों पर नियम बनाना चाहिए। हमने इन सभी प्राधिकारी वर्गों को लिखा है और यकीन करते हैं कि वे संज्ञान लेंगे।

भारत में ‘श्वेत क्रांति’ की शुरूआत 1970 के दशक में शुरू ‘ऑपरेशन फ्लड’ नामक कार्य्रक्रम से हुई थी जिससे 1970 में जहाँ 22 मिलियन टन दूध उत्पादन था वहाँ से बढ़कर 2008 में 104 मिलियन टन हो गया। हरे भरे चारागाहों में खुशहाली में रहने वाली गायों का चित्र तंगहाल स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहे पशुओं के लिए मुखौटा मात्र है।

 श्वेत क्रांति की सच्चाई का पर्दाफाश

एफ.आई.ए.पी.ओ ने भारत के ‘श्वेत क्रांति’ के घृणित चेहरे का पर्दाफाश किया है जहाँ शहरी इलाकों के 78 प्रतिशत डेयरी के पशुओं को नर्म जमीन बहुत मुश्किल से प्राप्त होती है।  एक चौथाई से भी अधिक डेयरी में पशुओं को तंग, रोशनी और हवा की कमी के साथ जीना पड़ता है, जिसमें अपने ही मल-मूत्र में फिसल कर गिरने से आये दिनों चोटें लगती रहती हैं 64.1 प्रतिशत डेयरी के पशु, बीमार, चोटिल व अस्वस्थ हैं। पशु चिकित्सा की कमी व गैर कानूनी दवाओं का प्रयोग एवं दूध बढ़ाने के लिए ऑक्सिटोसिन जैसे हार्मोन के प्रयोग का प्रचलन व्याप्त है। इस प्रकार दूध और दूध के उत्पादों की नियमित बढ़ती हुई मांग के कारण पशुओं के साथ किये जाने वाले व्यवहार में पाशविकता की अधिकता होती जा रही है।

जांच में सामने आया है कि मवेशियों को बछड़ों से अलग कर दिया जाता है (25 प्रतिशत डेयरियों में पहले सप्ताह के भीतर ही बछड़ो की मौत हो जाती है), लगभग 50 प्रतिशत डेयरियों में न के बराबर पशु चिकित्सा प्रदान की जाती है एवं शीघ्रता से दूध प्राप्त करने के लिए गलत तरीके से इंजेक्शन व दवाओं का प्रयोग किया जाता है। 62.9 प्रतिशत डेयरी अनुत्पादक पशुओं से अंतिम समय में भी थोड़े से लाभ के लिए आर्थिक रूप से कमजोर किसानों को या फिर कसाईखानों में बेच देते हैं। यह स्थिति लगातार बनी हुई है क्योंकि डेयरी उद्योग में आर्थिक लाभ व अर्थ संरक्षण के लिए यह सभी कुरितियां‘सामान्य’ व सहज मानी जाती हैं।

 गायों को धोखा 

जांच में एक और चौंका देने वाली बात का पर्दाफाश हुआ, और वह है खालबच्चा का इस्तेमाल करना, एक पुतला जिसे बनाने के लिए मृत बछड़े में घास भर दिया जाता है। अगर बछड़ा‌ मर जाता है तो गहन मातृ प्रेम के कारण मां दूध देना बंद कर देती है। इसलिए दूध दुहने के लिए नियमित रूप से खालबच्चा का इस्तेमाल कर बछड़े की अनुपस्थिति में प्रयोग में लिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.