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प्रोसैस्‍ड फूड, अल्‍कोहल व नशीली वस्‍तुएं पाचन तंत्र के लिए हैं अत्‍यंत घातक

-एसजीपीजीआई में इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के बारे में मरीजों को किया गया जागरूक

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ स्वस्थ पाचनतंत्र उत्तम स्वास्थ्य की प्राथमिक आवश्यकता है और सुचारु पाचन के लिए अच्छी जीवनशैली, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और तनाव रहित रहना चाहिए। प्रोसैस्ड फूड और अल्कोहल व अन्य मादक पदार्थ पाचन तंत्र के लिए अत्यंत घातक हैं।

यह जानकारी आज संजय गाँधी स्नातकोत्तर चिकित्सा संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा “ग्रुप अवेयरनेस फ़ॉर पेशेंट्स (गैप)” के अंतर्गत दी गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (आईबीएस) के बारे में जनजागरूकता को बढ़ाना था।  कार्यक्रम में  जानकारी दी गई कि इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम एक सामान्य विकार है, जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। इसके लक्षणों में ऐंठन, पेट में दर्द, सूजन, गैस और दस्त या कब्ज अथवा ये सब शामिल हैं। आईबीएस में कब्ज व दस्त दोनों होना भी असामान्य नहीं  है। अप्रैल को इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (आईबीएस) जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। इस जागरूकता माह का उद्देश्य आईबीएस, इसके लक्षणों और इससे प्रभावित लोगों पर इसके प्रभाव के बारे में लोगों की समझ को बढ़ाना है। इसकी व्यापकता के बावजूद, बहुत से लोग विकार से परिचित नहीं हैं। इस विकार से ग्रसित अधिकांश लोग दूसरों के साथ अपने लक्षणों पर चर्चा करने संकोच करते हैं। आईबीएस जागरूकता माह का उद्देश्य इस विकार के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इससे जुड़ी भ्रांतियों को समाप्त करने में मदद करना है।

इस अवसर पर बोलते हुए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिकित्सक एवं शोधकर्ता प्रो. उदय घोषाल ने बताया कि “आई बी एस” एक दीर्घकालिक स्थिति है, जिसे लंबे समय तक प्रबंधन करने की आवश्यकता पड़ सकती है। तनाव आपके पाचन तंत्र को अति सक्रिय करके हानि पहुंचा सकता है इसलिए “आईबीएस” रोगियों को तनाव से बचना चाहिए। कोविड का संक्रमण भी “आईबीएस”का कारण बन सकता है।

कोविड संक्रमण के बाद “आई बी एस” पर हुए विश्व के पहले शोध में शामिल रहे विभाग के सहायक आचार्य डॉ. आकाश माथुर ने बताया कि ‘कुछ लोगों में इस रोग के लक्षण लगातार होते हैं जबकि कुछ में रुक-रुक कर। काफी लोग आहार, जीवन शैली और तनाव का प्रबंधन करके अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिक गंभीर लक्षणों का इलाज डॉक्टर के परामर्श और दवाओं के साथ किया जा सकता है। यदि आई बी एस के लक्षण जीवन शैली या आहार परिवर्तन से नहीं सुधरते हैं तो डॉक्टर के सुझाव के अनुसार उपचार लेना चाहिए। 

इंग्लैंड से भारत शोध करने आईं एरिका ने भी इस गोष्ठी में भाग लिया तथा मरीज़ों से संवाद किया। इस अवसर पर डॉ. अंकुर यादव एवं डॉ. पीयूष मिश्रा भी उपस्थित रहे। आई बी एस के रोगियों में कम गैस बनाने वाले “लो फोडमैप” खाद्य पदार्थों पर भी चर्चा हुई। फ़ोडमैप (FODMAP) का अर्थ है फ़रमेंटेबल, ऑलिगोसैकेराइड, डिसैक्राइड, मोनोसैकेराइड और पॉलीओल्स। ये कुछ फलों और सब्जियों, दूध और गेहूं में पाए जाने वाले सरल और कॉम्प्लेक्स शुगर का एक संग्रह हैं, जिन्हें आंत को पचाने और अवशोषित करने में कठिनाई होती है।लो फ़ोडमैप डाइट (FODMAP diet) आहार में जठिल शुगर  की मात्रा को सीमित करने के लिए इनमें से कुछ या सभी खाद्य पदार्थों को हटा देता है। यह पाचन क्रिया के दौरान पेट के बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित गैस की मात्रा को कम करता है जिससे वायु, सूजन, और दर्द सहित इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (आईबीएस) से जुड़े लक्षणों में सुधार लाने में मदद कर सकता है। कार्यक्रम में आईबीएस विकार से ग्रस्त लोगों को “लो फोडमैप” सब्जियां जैसे गाजर, ककड़ी, सलाद, बैंगन, तुरई, ब्रोकोली, हरी बींस, पालक आदि और फलों में अनन्नास, संतरा, केला, अंगूर आदि के उपयोग की सलाह दी गई। गोष्ठी के अंत में “लो फोडमैप” फल केले एवं संतरे आमजन में वितरित किए गए ।

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