Wednesday , October 11 2023

स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जरूरत से ज्‍यादा सतर्कता बरतने वाले लोग हो रहे बीमार

– क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी की सलाह- मस्‍त होकर जिन्‍दगी जीयें, बोझ समझकर ढोयें नहीं

सावनी गुप्‍ता, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। अपने स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति सतर्क रहना, जागरूक रहना अच्‍छी बात है, लेकिन सतर्कता को खौफ या डर नहीं बनने देना चाहिये, क्‍योंकि जब यह डर आपकी मन:स्थिति पर हावी हो जाता है तो आपको शारीरिक रूप से स्‍वस्‍थ होने के बाद भी बीमार बना देता है। ऐसे ही खौफ के शिकार लोगों की संख्‍या वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद बढ़ी है।

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र ‘फेदर्स’ की क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता बताती हैं कि पिछले दिनों से ऐसे मरीजों की संख्‍या उनकी क्‍लीनिक में बढ़ी है,  ऐसे लोगों में बड़ी संख्‍या युवाओं की है। सावनी ने बताया कि इस तरह के मरीजों की संख्‍या कोविड के बाद ज्‍यादा बढ़ी है। उन्‍होंने बताया कि ऐसे मरीज तरह-तरह की शिकायत लेकर आते हैं जैसे कोई कहता है कि उन्‍हें लगता है कि कहीं उन्‍हें कोई गंभीर बीमारी न हो जाये,  कहीं मृत्‍यु न हो जाये, हार्ट अटैक न आ जाये, ब्रेन स्‍ट्रोक न हो जाये आदि-आदि। सावनी ने बताया कि ऐसे लोग भी हैं जो थोड़ा सा भी महसूस होने पर अपना इलाज खुद शुरू कर देते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि रोग ज्‍यादा बढ़ गया तो मुझे डॉक्‍टर के पास जाना पड़ेगा इससे मैं और ज्‍यादा संक्रमण का शिकार हो सकता हूं।

सावनी ने बताया कि अपने स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति अतिजागरूक रहने वाले ये व्‍यक्ति घर पर रहते हुए ज्‍यादातर समय इसी को लेकर उधेड़-बुन में लगे रहते हैं। जरा सा भी महसूस होने पर ब्‍लड प्रेशर चेक करना, पल्‍स रेट चेक करना, एक छींक भी आ जाये तो यह उसे बड़ी बीमारी की शुरुआत समझना, गूगल करके बीमारी के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा पढ़ना, डॉक्‍टर्स के वीडियो देखना इनकी आदत बन जाती है। उन्‍होंने बताया कि यही नहीं कुछ मरीज तो ऐसे हैं कि उन्‍होंने एक ही जांच की कई-कई डिवाइस घर पर रख रखी हैं, उन सब पर बार-बार चेक करके देखते हैं। साफ-सफाई को लेकर बार-बार हाथ धोना, सेनिटाइजर से सेनिटाइज करना लोगों की आदत में शुमार होकर अपनी सीमा पार करते हुए लोगों के लिए बीमारी बन गया।

सावनी बताती हैं कि जब मरीज उनके पास आते हैं तो जो लक्षण बताते हैं वे एंग्‍जाइटी, ओसीडी, डिप्रेशन के लगते हैं लेकिन जब गहराई से जांच की जाती है तो कोई बीमारी डायग्‍नोज नहीं होती हैं। सावनी से जब पूछा गया कि ऐसे केस अभी क्‍यों ज्‍यादा हो गये हैं, तो उनका कहना था कि दरअसल कोविड के दौरान हर जगह एक ही तरह का माहौल हो गया था, चाहें टेलीविजन हो या रेडियो, कोविड की ही चर्चा, मोबाइल की कॉलर ट्यून हो, सोशल मीडिया के प्‍लेटफॉर्म सभी जगह एक ही चर्चा बार-बार होने से व्‍यक्ति के सोचने का दायरा बहुत सीमित हो गया था। इसमें खास तौर से दूसरी लहर में कोविड से ज्‍यादा संख्‍या में हुई मौतों ने इस पर होने वाली चर्चाओं और इससे डर को ज्‍यादा ही बढ़ा दिया।

क्‍या करें

इस विषय में सावनी का कहना है कि स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति सचेत तो रहना चाहिये, लेकिन इसके लिए जो कदम उठायें वे एक सीमा तक ही ठीक हैं। यह सीमा कैसे तय की जाये, इस प्रश्‍न के जवाब में सावनी का कहना था कि इसके लिए सरकार और प्रशासन द्वारा समय-समय पर सतर्कता और बचाव के लिए उठाये जाने वाले कदमों की सलाह का प्रचार-प्रसार होता रहता है, उसका पालन करें, वही काफी है।

उन्‍होंने कहा कि यह खूबसूरत जिन्‍दगी हमें जीने के लिए मिली है, बोझ समझकर ढोने के लिए नहीं, इसलिए बहुत ज्‍यादा सोच-विचार न करें, मस्‍त रहें, सतर्कता बरतें लेकिन अनावश्‍यक सतर्कता न बरतें। बीमारी को अपने ऊपर हावी न होने दें, अनावश्‍यक विचारों को अपने मस्तिष्‍क से निकालें। अगर कोशिश करने के बाद भी ये सब नहीं कर पा रहे हैं, परेशान करने वाले विचार मस्तिष्‍क से नहीं निकाल पा रहे हैं, तो किसी मनोचिकित्‍सक से मिलें, वे आपकी समस्‍या को अवश्‍य ही दूर करेंगे। 

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