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70+ में सबसे ज्यादा जरूरत होती है माता-पिता को अपने बच्चों की : डॉ नौसरान

-बुजुर्ग माता-पिता का खयाल बच्चों की तरह रखने की सलाह, छोटी-छोटी बातों के बड़े हो जाते हैं मायने

डॉ अनिल नौसरान

धर्मेन्द्र सक्सेना/सेहत टाइम्स

लखनऊ/मेरठ। साइकिल चलाकर स्वस्थ रहने का संदेश देने वाले साइक्लोमैड फिट इंडिया के संस्थापक डॉ अनिल नौसरान का कहना है कि आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हम अक्सर अपने माता-पिता और परिवार के बुजुर्गों की देखभाल को लेकर लापरवाह हो जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जब वे सत्तर वर्ष या उससे अधिक आयु में पहुँचते हैं, तब उन्हें हमारी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इस आयु में माता-पिता और बुजुर्ग रिश्तेदार बच्चों जैसे हो जाते हैं — उन्हें वही प्यार, धैर्य और देखभाल चाहिए जो हम अपने छोटे बच्चों को देते हैं।

डॉ नौसरान का कहना है कि बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर ध्यान रखने के लिए जिन बातों को ध्यान रखना चाहिये उनमें हैं

1. नियमित स्वास्थ्य परीक्षण – हर छह महीने में ब्लड टेस्ट अवश्य करवाएँ ताकि बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सके।
2. दवाइयों का सेवन – यदि बुजुर्ग दवाइयाँ ले रहे हैं तो उन्हें अपने हाथों से दें, ताकि वे समय पर और सही मात्रा में सेवन कर सकें।
3. हेल्थ ड्रिंक और फल – बीच-बीच में उन्हें ताज़े फल, हेल्थ ड्रिंक या कोई हल्का पौष्टिक आहार देते रहें।

उन्होंने कहा कि स्वस्थ रहने के लिए आहार एवं पोषण पर विशेष ध्यान देना आवश्यक हो जाता है। कई बार हम लोग यह ध्यान नहीं देते हैं कि बुजर्गों के लिए क्या स्वास्थ्यवर्धक भोजन है। ऐसे में आवश्यक है कि कोशिश कीजिये कि बुजुर्गों को पौष्टिक आहार मिल सके।

1. ताज़ा मौसमी फल-सब्जियाँ – बुजुर्गों को हमेशा मौसमी फल और ताज़ी सब्ज़ियाँ दें।

2. होममेड फूड – घर का बना हुआ खाना ही खिलाएँ, बाहर का और ऑनलाइन उपलब्ध फूड से बचाएँ, क्योंकि इनमें ज़्यादातर हानिकारक रसायन मिलाए जाते हैं।

3. मेन्टेनेंस डाइट
वृद्धावस्था में शरीर को “बॉडी बिल्डिंग डाइट” नहीं, बल्कि “मेंटेनेंस डाइट” चाहिए। इसमें पानी, खनिज और विटामिन से भरपूर संतुलित भोजन होना आवश्यक है।

4. कुपोषण की समस्या
मेरे 30 वर्षों के अनुभव से यह पाया गया है कि समाज के सम्पन्न परिवारों में भी बुजुर्ग पोषण की कमी से जूझ रहे हैं। इसलिए भोजन की गुणवत्ता और संतुलन पर विशेष ध्यान दें।

डॉ नौसरान बताते हैं कि एक और महत्वपूर्ण बिंदु बुजुर्र्गों के साथ किया जाने वाला व्यवहार एवं भावनात्मक सहयोग है।

1. बच्चों जैसा व्यवहार – सत्तर वर्ष के बाद माता-पिता को बच्चों की तरह समझें और उसी प्रेम से व्यवहार करें।
2. पैसे की सहायता – बिना पूछे समय-समय पर उन्हें पैसे दें ताकि वे आत्मनिर्भर और सुरक्षित महसूस करें।
3. खाने की पसंद – भोजन का चयन करने का अधिकार उन्हें दें।
4. गुणवत्ता समय – रोज़ कुछ समय उनके साथ बैठें, बातें करें, टीवी पर धार्मिक चैनल देखें और उनकी बातों को गंभीरता से सुनें।
5. परिजनों से मिलाना – समय-समय पर उन्हें उन रिश्तेदारों से मिलाएँ जिनसे वे मिलना चाहते हैं।
6. महत्व का एहसास – उन्हें हमेशा यह महसूस कराएँ कि वे हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं — क्योंकि यह सच है।

स्वच्छता एवं सुविधा

1. बिस्तर की सफाई – हर रविवार उनके बिस्तर और कमरे की सफाई अवश्य करें।
2. भोजन की आदतें – उनसे यह न पूछें कि क्या वे भूखे हैं, बल्कि उनके सामने हल्का भोजन और फल रख दें।
3. नियमित देखभाल – उनके रहने की जगह को साफ-सुथरा और आरामदायक बनाएँ।

डॉ नौसरान का कहना है कि बुजुर्गों की देखभाल सिर्फ़ एक कर्तव्य नहीं बल्कि आशीर्वाद है। जब हम उन्हें सम्मान और स्नेह देते हैं, तो वे हमें अनुभव और जीवन के अमूल्य संस्कार लौटाते हैं। उनका स्वास्थ्य, पोषण और मानसिक शांति हमारी जिम्मेदारी है।

याद रखें —
“रोकथाम इलाज से बेहतर है।”
यदि हम समय रहते अपने बुजुर्गों की देखभाल करेंगे तो वे लंबी आयु तक स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे।

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