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मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को डॉ गिरीश गुप्‍ता से सीख लेने की सलाह

-स्‍त्री रोगों पर डॉ गिरीश गुप्‍ता के सफल होम्‍योपैथिक शोध के लिए सराहना

-‘सेमिनार ऑन यूनिक वे ऑफ प्रिसक्राइबिंग इन होम्योपैथीका आयोजन

सेहत टाइम्‍स  

लखनऊ। बैक्सन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ सतिन्‍दर पाल सिंह बक्‍शी ने लखनऊ स्थित गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च के चीफ कंसल्‍टेंट डॉ गिरीश गुप्‍ता के शोध कार्य के लिए उनकी सराहना की है। उन्‍होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि जब लगन हो तो व्‍यक्ति सफलता की राह ढूंढ़ ही लेता है, इसके लिए डॉ गिरीश गुप्‍ता से सीख लेने की जरूरत है।

भारत सरकार के सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्‍योपैथी में 18 साल अध्‍यक्ष रह चुके डॉ बक्‍शी ने यह बात ग्रेटर नोएडा स्थित बैक्सन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में आयोजित सेमिनार में डॉ गिरीश गुप्‍ता द्वारा महिलाओं के जटिल रोग यूटराइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम पर राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय जनर्ल्‍स में प्रकाशित शोध पत्रों के केसेज को प्रस्‍तुत करने के उपरान्‍त कही। डॉ गिरीश गुप्‍ता को द लंदन कॉलेज ऑफ़ होम्योपैथी यूके के सहयोग से 18, 19 दिसंबर को आयोजित ‘सेमिनार ऑन यूनिक वे ऑफ प्रिसक्राइबिंग इन होम्योपैथी’ शीर्षक वाले इस सेमिनार में वक्‍ता के रूप में आमंत्रित किया गया था।

डॉ बक्‍शी ने डॉ गिरीश गुप्‍ता को सम्‍मानित करते हुए कहा कि यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि डॉ गिरीश गुप्‍ता जैसी शख्सियत आज हमारे कॉलेज में उपस्थित हुई है। उन्‍होंने समारोह में उपस्थित विद्यार्थियों से कहा कि आप लोगों को डॉ गुप्‍ता से सीख लेनी चाहिये कि किस तरह अकेले व्‍यक्ति ने अपनी मेहनत और लगन से आज न सिर्फ भारत बल्कि भारत के बाहर भी अपनी शोध का लोहा मनवाया है। उन्‍होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि जब डॉक्‍टर गुप्‍ता अपने खुद के एक छोटे से सेंटर से शोध कर सकते हैं तो आप लोगों को यह इंस्‍टीट्यूट मिला हुआ है, आपको भी ऐसे ही नये-नये शोध करते हुए होम्‍योपैथी की विधा का नाम आगे बढ़ाने में अपना योगदान देना चाहिये।

इस सेमिनार को सम्‍बोधित करते हुए डॉ गिरीश गुप्‍ता ने अपने अनुभव को बताते हुए कहा कि वे भी अपने कॅरियर की शुरुआत में ज्‍यादातर होम्‍योपैथिक चिकित्‍सकों की तरह नॉन क्‍लासिकल तरीके से मरीजों का इलाज करते थे, लेकिन इसके परिणाम बहुत संतोषजनक नहीं होते थे।

डॉ गुप्‍ता ने बताया कि फि‍र 1995 के बाद जब उन्‍होंने होम्‍योपैथी के क्‍लासिकल यानी साइकोसोमेटिक तरीके से इलाज करना शुरू किया तो इसके परिणाम पहले के मुकाबले कहीं ज्‍यादा अच्‍छे मिले। क्‍लासिकल तरीके से इलाज करने में होलिस्टिक एप्रोच यानी शरीर और मन:स्थिति के साथ ही मरीज की प्रकृति को ध्‍यान में रखकर मरीज से पूछी गयी हिस्‍ट्री के बाद रोग विशेष की सैकड़ों दवाओं में एक दवा का चुनाव किया जाता है और उसी एक सटीक दवा से मरीज को लाभ हो जाता है।

डॉ गिरीश गुप्‍ता ने इस मौके पर यूटराइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम के कुछ केस के बारे में स्‍लाइड के जरिये उपस्थित मेडिकल विद्यार्थियों, विदेश से आये डेलीगेट्स व अन्‍य लोगों को सम्‍बोधित करते हुए बताया कि किस तरह से मरीज के पहुंचने पर उससे कैसे-कैसे प्रश्‍न पूछ कर उसकी केस हिस्‍ट्री तैयार की गयी। उन्‍होंने बताया कि आप लोग शायद आश्‍चर्य करेंगे लेकिन इन रोगों के पीछे-पीछे ऐसी वजहें भी सामने आयीं जिनका यूं तो रोग से कोई कनेक्‍शन नहीं दिखता था लेकिन चूंकि मस्तिष्‍क से पूरे शरीर का कनेक्‍शन रहता है इसलिए इन कारणों की अहमियत बहुत अधिक होती है। उन्‍होंने कहा कि चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ाहट, उदासी जैसे मानसिक कारणों के साथ ही जेनेटिक कारणों के चलते इन रोगों की उत्‍पत्ति होती है।

ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्‍ता ने जिन महिला रोगों पर रिसर्च कर दवा खोजी हैं उनका विवरण उनकी पुस्‍तक एवीडेंस बेस्‍ड रिसर्च ऑफ होम्‍योपैथी इन गाइनीकोलॉजी Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology में दिया गया है। इस पुस्‍तक में रोगों के होम्‍योपैथिक से सफल इलाज के बारे में सबूत सहित विवरण दिया गया है। पुस्‍तक में महिलाओं में होने वाले रोग यूटराइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्‍ट लीजन्‍स, नाबोथियन सिस्‍ट, सर्वाइ‍कल पॉलिप के रोगियों पर की गयी स्‍टडी के परिणाम के बारे में बताया गया है।

पुस्‍तक में इन रोगों के कुछ मॉडल केस के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गयी है। रोग से पहले, उपचार के दौरान व उपचार के बाद की स्थिति का परीक्षण करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से अल्‍ट्रासाउन्‍ड जैसी जांचें करायी गयीं हैं। आपको बता दें कि आधुनिक चिकित्‍सा पद्धति एलोपैथी में इलाज के नाम पर इन रोगों का इलाज सर्जरी ही है।

इस सेमिनार में डॉ गिरीश गुप्‍ता के अतिरिक्‍त दो और वक्‍ताओं डॉ हर्ष निगम और डॉ मुक्तिन्‍दर सिंह ने प्रेजेन्‍टेशन दिया। सेमिनार में करीब 200 लोग भौतिक रूप से उपस्थित थे जबकि इसे ऑनलाइन देखने की भी सुविधा थी।

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